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अन्नमय कोष क्या है? स्थूल शरीर क्या है? और अन्नमय कोष का स्थूल शरीर से क्या सम्बंध है? क्या अन्नमय कोष ही स्थूल शरीर है? और यह कैसे प्रभावित होता है? इस आलेख में इन प्रश्नों पर विचार करेंगे।

विषय सुची :-
  • कोष क्या है?
  • अन्नमय कोष क्या है?
  • स्थूल शरीर क्या है?
  • स्थूल शरीर का निर्माण।
  • स्थूल शरीर कैसे प्रभावित होता है?
अन्नमय कोष

अन्नमय कोष व स्थूल शरीर क्या हैं?

हमारे शरीर का आत्म-अस्तित्व पाँच कोषिय आवरण (Five Layers) से ढका हुआ है। अन्नमय कोष बाहरी आवरण है। क्या इसका सम्बंध स्थूल शरीर से है? यह जानने के लिए पहले यह देख लेते है कि अन्नमय कोष क्या है? तथा स्थूल शरीर क्या है?  

कोष क्या है?

कोष का शाब्दिक अर्थ 'घर' या 'खोल' होता है। किसी वस्तु को ढकने के लिए Layer होती है उसे कोष कहा जाता है। हमारे शरीर मे स्थित आत्मा पाँच परतों से ढकी है। इन ही को 'कोष' कहा गया है।

पाँच कोष क्या हैं?

हमारा आत्म स्वरूप जिन पाँच परतों से ढका हुआ है, इन ही को पँचकोष कहा गया है। ये पाँच कोष  इस प्रकार हैं :--

  1. अन्नमय कोष।
  2. प्राणमय कोष।
  3. मनोमय कोष।
  4. ज्ञानमय कोष।
  5. आनन्दमय कोष।

अन्नमय कोष क्या है?

यह बाहरी आवरण (Outer Layer) है। यह अन्न द्वारा निर्मित है। और अन्न द्वारा पौषित है। इसका निर्माण अन्न, जल तथा वायु से होता है। इसी लिए इसे अन्नमय कोष कहा गया है।

अन्नमय कोष का निर्माण व पोषण :- माँ के गर्भ मे सर्वप्रथम इसी का निर्माण होता है। माँ के द्वारा खाये गये अन्न से इसका पोषण होता है। यही स्थूल शरीर है। यही जन्म लेता है। और जन्म लेने के बाद इसका पोषण होता है। और वृद्धि होती है। 

स्थूल शरीर क्या है?

जैसा कि आप जानते है,  शरीर तीन प्रकार के हैं :--  स्थूल, शूक्ष्म और कारण शरीर। यहाँ हम स्थूल शरीर की बात करेंगे। स्थूल शरीर क्या है? क्या यह अन्नमय कोष है? और यह कैसे प्रभावित होता है?

स्थूल शरीर :-- यह तीनो शरीरों मे यह मुख्य है। यह दृष्य (दिखाई देने वाला) शरीर है। अन्य दोनों शरीर अदृष्य (दिखाई न देने वाले) हैं। स्थूल शरीर ही जन्म लेता है, वृद्धि करता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। 

सभी आंतरिक व बाह्य अंग जो देखे जा सकते है वे सभी स्थूल शरीर के भाग हैं। अस्थियाँ, हृदय, रक्त वाहिकाएँ, तथा सभी दिखाई देने योग्य अंग स्थूल शरीर है। इन सब को कैसे प्रभावित किया जा सकता है? आगे इस लेख में इस की चर्चा करेगे। लेकिन पहले यह देखते हैं कि स्थूल शरीर का निर्माण कैसे होता है?    

स्थूल शरीर का निर्माण।

इस शरीर का निर्माण पाँच तत्वों से होता है। इस ब्रह्माण्ड का निर्माण भी इन ही पाँच तत्वों से हुआ है। शरीर का निर्माण करने वाले इन तत्वों को पँचतत्व कहा गया है।

पँचतत्व :--

  1. आकाश।
  2. वायु।
  3. अग्नि।
  4. जल।
  5. पृथ्वि।
ये स्थूल शरीर का निर्माण करने वाले तत्व हैं।यही स्थूल शरीर जन्म लेता है। नाम से जाना जाता है। पोषण से इसकी वृद्धि होती है। यह सुख-दुख को अनुभव करता है। तथा यह शरीर ही मृत्यु को प्राप्त होता है।

स्थूल शरीर कैसे प्रभावित होता है?

सभी सांसारिक कार्य इसी शरीर से किये जाते हैं। ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, मोह आदि का प्रभाव इसी शरीर पर पङता है। यह मौसम के प्रभाव को तथा सुख-दुख को अनुभव करता है। रोगग्रस्त भी यही शरीर होता है। 

कोन सी क्रियाएँ हैं जो स्थूल शरीर को प्रभावित करती है और स्वस्थ रखती है?

1. शुद्धि क्रियाओं का प्रभाव।

स्थूल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सब से पहले शुद्धिकरण जरूरी है। इसके लिए योग मे षट् कर्म का प्रावधान किया गया है। शरीर की शुद्धि के लिए 6 क्रियाएँ बताई गई हैं। इन 6 शुद्धि क्रियाओ को षट् कर्म कहा गया है।

ये शुद्धि क्रियाएँ शरीर को प्रभावित करती हैं। ये क्रियाएँ शरीर में आने वाले अवरोधो को दूर करती हैं। अवरोध दूर होने से शरीर के आंतरिक अंग सुचारू होते हैं। तथा क्रियशील रहते हैं।

षट् कर्म क्या हैं :-- शरीर के शुद्धिकरण के लिए योग मे शुद्धि क्रियाएँ बताई गई हैं।

  1. धोति :-- कण्ठ से आहार नली की स्वच्छता के  लिए।
  2. वस्ति :-- बङी आँत की स्वच्छता के लिए।
  3. नेति :-- नासिका व कण्ठ क्षेत्र की  शुद्धता के लिए।
  4. त्राटक :-- नेत्र तथा नेत्र की पेशियों का व्यायाम।
  5. नौली :-- उदर व आँतो का व्यायाम। पाचनतंत्र को सुदृढ करने की क्रया।
  6. कपालभाति :-- कपाल भाग का शुद्धिकरण। श्वसनतंत्र को प्रभावित करने वाली क्रिया।

2. आहार का प्रभाव।

क्योकि यह शरीर अन्न से निर्मित और पोषित है। इसलिए आहार का इस पर विशेष प्रभाव पङता है। उचित आहार शरीर का पोषण करता है तथा वृद्धि करता है। गलत आहार शरीर को रोग ग्रस्त कर देता है।

संतुलित आहार शरीर की पुष्टि करता है। अत: संतुलित आहार लेना उत्तम है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए सात्विक आहार ले।

3. यम-नियम का प्रभाव।

आचरण, विचार शरीर को प्रभावित करते हैं। ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, मोह आदि शरीर पर सीधा प्रभाव डालते हैं। ये सब शरीर को हानि पहुचाने का कारण बनते हैं। जिस प्रकार दुख शरीर के लिए हानिकारक है, उसी प्रकार सुख भी हानिकारक है।

ईर्ष्या-द्वेष तथा क्रोध आने पर शरीर प्रभावित होता है। ऐसा होने पर रक्त-संचार पर प्रभाव पङता है। रसायनिक संतुलन बिगङ जाता है।

यम-नियम का पलन करके इन से बचा जा सकता है। यम-नियम मे इसके बारे मे विस्तार से बताया गया है।

4. आसन व प्राणायाम का प्रभाव।

आसन व प्राणायाम से स्थूल शरीर को प्रभावित किया जा सकता है।

आसन :-- स्थूल शरीर को योगासनों से प्रभावित किया जा सकता है। आसन शरीर के आंतरिक व बाह्य अंगो सक्रिय करते हैं। रीढ शरीर का आधार है। इस पर आसनो का विशेष प्रभाव पङता है। आसनों से शरीर की अस्थियाँ व मासपेशियाँ प्रभावित होती हैं।

कोन से आसन करें :-- सरलता से किये जाने वाले आसन करने चहाएँ। कठिन आसन न  करें। यदि कोई अंग पीङित है, तो उसे प्रभावित करने वाला आसन न करें।

प्राणायाम :-- प्राणायाम शूक्ष्म शरीर को प्रभावित करने वाली क्रिया है। लेकिन यह स्थूल शरीर को भी प्रभावित करती है। इस क्रिया से शरीर का श्वसनतंत्र तथा फेफङे सक्रिय होते हैं। इस क्रिया से हृदय को पुष्टि मिलती है।

प्राणायाम से श्वसनतंत्र तथा प्राण शक्ति सुदृढ होती है। श्वसन और प्राण शरीर के लिए जरूरी है। इनके बिना शरीर का अस्तित्व नही है। अत: यह क्रिया स्थूल शरीर को प्रभावित करती है।

प्राणायाम कोन से करें :-- यह श्वासों पर आधारित क्रिया है। अत: प्राणायाम करते समय अपने श्वासों की स्थिति का ध्यान रखें। अपनी क्षमता के अनुसार ही प्राणायाम करें। 

सारांश :--

अन्नमय कोष ही स्थूल शरीर है। यह अन्न द्वारा निर्मित व पोषित है। अत: अन्न (आहार) इसे अधिक प्रभावित करता है। वृतियाँ शरीर को प्रभावित करती है। यम, नियम, आसन तथा प्राणायाम अन्नमय कोष के लिए प्रभावी हैं।

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