योग सभी के लिए लाभकारी क्रिया है। सभी स्त्री-पुरुष अपनी शारीरिक अवस्था के अनुसार योगाभ्यास कर सकते हैं। यह सरल है, सुरक्षित है। लेकिन प्रश्न यह पूछा जाता है कि क्या गर्भवती महिलाएँ योग आसन, प्राणायाम कर सकती हैं? Yoga For Pregnants क्या हैं? गर्भावस्था (Pregnancy) में कोन से आसन व प्राणायाम करने चाहिए और कौन से नही करने चाहिए? अभ्यास करते समय कोन सी सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए? प्रस्तुत लेख में यह विस्तार से बताया जायेगा।
विषय सुची :-
- गर्भवती महिलाओ के लिये योग।
- Pregnancy मे "आसन" की विधि, लाभ व सावधानियाँ।
- "प्राणायाम" की विधि, लाभ व सावधानियाँ।
'योग' गर्भवती महिलाओं के लिये| Yoga In Pregnancy.
एक नया जीवन देने जा रही माँ की प्रत्येक क्रिया शिशु को प्रभावित करती है। गर्भ मे स्थित शिशु पर माँ के आहार, विचार तथा मानसिक स्थिति का प्रभाव पड़ता है। इस लिये एक गर्भवती महिला को संतुलित आहार लेना चाहिए, विचारों की शुद्धता रखनी चाहिए तथा तनाव मुक्त रहना चाहिए। ये सब योग के ही अंग हैं।
माँ एवम् शिशु दोनो के लिये योग एक प्रभावी क्रिया है।यह क्रिया शारीरिक व मानसिक स्थिति को सुदृढ करती है। यह माँ व शिशु दोनो के लिए लाभदायी क्रिया है। लेकिन Pregnants को आसन व प्राणायाम कुछ सावधानियों के साथ करने चाहिए। गर्भवती महिलाओ को कोन से आसन करने चहाएं तथा कोन सी क्रियाओं से बचना चाहिए, यह इस लेख मे आगे बताया जायेगा।
आसन व प्राणायाम गर्भवती महिलाओं (Pregnant) के लिये।
गर्भवती महिलाओ के लिए आसन व प्राणायाम दोनो लाभकारी हैं। Pregnancy के आरम्भिक समय मे केवल सरल आसन व सरल प्राणायाम ही करने चाहिये। गर्भकाल की पूर्ण अवस्था में आसन का अभ्यास न करें। पूर्ण अवस्था मे पैदल टहलना अच्छा अभ्यास है। वाकिंग के बाद सरल प्राणायाम करें।
Pregnancy में आसन कैसे करें?
गर्भावस्था मे आसन करते समय विशेष ध्यान रखें। सरल आसन करें। सुविधाजनक व सुखपूर्वक स्थिति मे बैठें। आसन करते समय इन सावधानियों का ध्यान रखें।
- सरल आसन करें। कठिन आसन न करें।
- अधिक झुकने वाले आसन न करें।
- पेट पर दबाव डालने वाली कोई क्रिया न करें।
- आराम दायक व सुख पूर्वक स्थिति मे बैठें।
- अपने शरीर की क्षमता के अनुसार आसन करें।
- एक क्रिया करने के बाद कुछ देर विश्राम करें।
सरलता से किए जाने वाले कुछ आसन इस प्रकार हैं। ये आसन केवल आरम्भिक अवस्था मे ही किये जाने चाहिये।
- सूक्ष्म क्रियाएँ
- ताड़ासन
- तितली आसन
- वज्रासन
आईए इनके बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
1. सूक्ष्म क्रियाएँ :
'सूक्ष्म क्रियाएँ' खड़े होकर तथा बैठ कर दोनो स्थितियों मे की जा सकती हैं। इन क्रियाओं को सुखासन, वज्रासन या किसी आरामदायक स्थिति मे बैठ कर कर सकते हैं।
अभ्यास, खड़े हो कर :-
- बिछाये गये आसन पर खड़े हो जाएं।
- दोनों पैरों मे उचित दूरी बनाएं।
कंधों के लिए :--- धीरे से हाथों को कंधों पर रखें। मुड़ी हुई कोहनियों को गोलाई मे घुमाएं। 4-5 आवर्तियां करने के बाद वापिस पूर्व स्थिति मे आ जाये।
दोनों हाथों को गरदन के पीछे ले जाएं। हाथो की उंगलियों को आपस में फंसा कर ज्वाइंट कर लें। बांई तरफ हाथों को खींचते हुए बांई कोहनी को बांई पसली के साथ तथा दांई कोहनी को ऊपर की ओर रखें। कुछ देर रुकें।
अब दाई ओर खींचाव रखते हुए दांई कोहनी को दांई पसली के पास तथा बांई कोहनी को ऊपर की ओर रखें। यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार अन्य आवर्तियाँ क्षमता के अनुसार करें। पूर्व स्थिति मे वापिस आ जाएं।
गरदन के लिये :--- दोनो हाथों को कमर पर रखें। धीरे से गरदन को थोड़ा आगे-पीछे, दांए-बांए और गोलाई मे घुमाएं। अपनी क्षमता के अनुसार क्रिया करने के बाद वापिस पूर्व स्थिति में आ जाएं।
2. ताड़ासन :
ताड़ासन एक सरल आसन है। सुविधा पूर्वक खड़े होकर इस का अभ्यास करें।
विधि :-
- सुविधा पूर्वक स्थिति में खड़े हो जाएं।
- पैरो को सुविधा जनक स्थिति में रखें।
- धीरे-धीरे दोनो हाथों को सामने की तरफ से ऊपर उठाये।
- हाथों के ऊपर उठने के बाद श्वास भरते हुए, हाथों को ऊपर की ओर खींचें।
- श्वास छोड़ते हुए हाथो को नीचे ले आये।
- श्वास सामान्य रखते हुए विश्राम करें।
3. तितली आसन :
यह सरलता से किया जाने वाला आसन है। इस से पैर की जंघाएँ, पिंडलियाँ व घुटने प्रभावित होते हैं।
विधि :-
- बिछे हुए आसन पर बैठ जाएं।
- दोनों पैरों को घुटनो से मोड़ कर पँजे मिलाये।
- दोनों हाथ पंजों पर रखें। मिले हुए पंजे, एडियाँ मध्य भाग के पास ले आये।
- घुटनों को तितली के पंख की तरह ऊपर नीचे करे।
- क्षमता के अनुसार क्रिया करने के बाद वापिस आ जाएं।
- पैरों को सीधा करें। दोनो पैरो मे थोड़ा गैप रखें। दोनों हाथ पीछे टिकाएँ। गरदन को पीछे ढीला छोड़ दे। कुछ देर विश्राम करें।
4. वज्रासन :
पैरों मे होने वाले दर्द को ठीक करने के लिये यह उत्तम आसन है। यह पाचन क्रिया को बढाने वाला आसन है। इस को करने से कमर से नीचे का भाग प्रभावित होता है। यह भी एक सरल आसन है। इस आसन को दिन मे किसी समय भी किया जा सकता है।
विधि :-
- दोनो पैरों को मोड़ कर घुटनों के बल बैठ जाएं।
- घुटने व पँजे मिला कर रखें।
- दोनो एड़ियों मे गैप रखे।
- दोनो एड़ियों के बीच मे मध्य भाग को टिका कर बैठ जाएँ।
- दोनो हाथ घुटनों पर रखें।
- कमर से ऊपर का भाग, रीढ व गरदन को सीधा रखें। आँखें कोमलता से बँध रखें।
- आराम से सुखपूर्वक जितनी देर इस स्थिति में बैठ सकते है, बैठें।
- अपनी क्षमता के अनुसार आसन मे रुकने के बाद वापिस आ जाएं।
- दांई तरफ हाथो का सहारा लेकर दोनो पैरों को सीधा करें।
- हाथो को पीछे टिका कर विश्राम करें।
5. अश्विनी मुद्रा :
योग मे "अश्विनी मुद्रा" एक विशेष क्रिया है। यह स्त्री व पुरुष सभी के लिये लाभकारी है। प्रेग्नेन्सी मे यह क्रिया महिलाओ के लिये विशेष लाभकारी है। अश्विनी-मुद्रा "अपान-प्राण" को मजबूत करती है। 'अपान प्राण' (Apana Prana) जननांग को प्रभावित करता है। 'शिशु को जन्म' देने का काम यही 'प्राण-शक्ति' करती है।
(इस क्रिया को केवल गर्भावस्था के आरम्भिक समय मे ही करें।)
(विशेष :- हमारे शरीर में प्राण 5 प्राण होते है। शरीर मे इन "पाँचों प्राणों" के कार्य और स्थितियाँ अलग-अलग है। अपान प्राण की स्थिति नाभी के नीचे वाले अंगों पर होती है। "प्रजनन अंग" व "मल निष्कासन अंग" पर नियंत्रण इसी प्राण से होता है। अधिक जानकारी के लिये देखें :- प्राण क्या है? )
क्रिया को करने की विधि :-
इस क्रिया को आप आसन व प्राणायाम दोनो मे कर सकते हैं।
- सुखासन, वज्रासन या किसी भी आराम दायक स्थिति मे बैठें।
- रीढ व गरदन को सीधा रखें। दोनो हाथ घुटनो पर रखें।
- 'प्रजनन अंग' व 'मल-निष्कासन अंग' पर दबाव डालते हुए ऊपर की तरफ खींचे और ढीला छोड़े। इसी प्रकार अंगों को संकुचित करना व ढीला छोड़ना बार-बार करें। तीन-चार बार या क्षमता अनुसार इस क्रिया को करें।
- क्षमता अनुसार क्रिया करने के बाद सामान्य स्थिति मे आ जाएं।
Pregnancy में प्राणायाम कैसे करें?
यह तो हम जानते ही हैं कि माँ के द्वारा लिया गया आहार शिशु को प्रभावित करता है। उसी प्रकार गर्भ मे स्थित शिशु की "श्वसन क्रिया" भी माँ की "श्वसन प्रणाली" से जुड़ी होती हैं। अत: शिशु को जन्म देने वाली माँ का Oxygen Level सही मात्रा मे होना जरूरी है।
प्राणायाम श्वांसों पर आधारित क्रिया है। यह श्वसन प्रणाली को सुदृढ करता है। यह Oxygen Level बढाने वाली क्रिया है। अत: गर्भवती महिलाओ को प्राणायाम अवश्य करने चहाएं। लेकिन प्राणायाम सावधानी के साथ करने चाहिये।
- प्राणायाम करने के लिये आराम से और सुख पूर्वक स्थिति मे बैठें। बैठने की स्थिति का चुनाव अपने शरीर की स्थिति के अनुसार करें।
- मैट या कपड़े की सीट बिछा कर सुखासन मे बैठें। यदि नीचे बैठने मे परेशानी लगे तो कुर्सी पर बैठ कर प्राणायाम करें। कुर्सी पर बैठते समय यह ध्यान रहे कि रीढ को सीधा रखें। आगे झुक कर न बैठें।
- सरल प्राणायाम करें।
- यदि आप नियमित प्राणायाम की साधक है, तो कुम्भक का प्रयोग करे। क्षमता के अनुसार करे।
- यदि प्राणायाम पहली बार कर रही हैं, नई प्राणायाम-अभ्यासी (Beginner) हैं तो कुम्भक का प्रयोग न करे। बिना श्वास रोके सरल प्राणायाम करें।
- यदि श्वास रोग या हृदय रोग है तो चिकित्सक की सलाह लें।
- अपनी क्षमता का ध्यान रखें।
सरलता से किए जाने वाले प्राणायाम लाभकारी होते हैं। यह एक उत्तम क्रिया है। माँ तथा शिशु दोनो के Oxygen Level को बनाये रखने मे सहायक है। अत: एक गर्भवती महिला को सरल प्राणायाम करने चाहिएं। कुछ सरलता से किये जाने वाले प्राणायाम इस प्रकार हैं।
- श्वांस-प्रश्वांस
- कपालभाति
- अनुलोम-विलोम
- भ्रामरी
- ॐ ध्वनि (ओम ध्वनि)
- ध्यान
आईए इनके बारे मे विस्तार से समझ लेते हैं।
1. श्वांस-प्रश्वांस :
श्वांस-प्रश्वांस एक सरल क्रिया है। लेकिन बहुत ही लाभकारी है। यह प्राणायाम का मुख्य आधार है। इसको सरलता से किया जा सकता है।
प्राणायाम विधि :-
- सुविधा पूर्वक स्थिति मे बैठें।
- दोनों हाथो को ज्ञान मुद्रा या सुविधा जनक स्थिति मे रखें।
- रीढ को सीधा रखें।
- लम्बा-गहरा श्वास भरें।
- पूरा श्वास भरने के बाद, श्वास को पूरी तरह खाली करें। यह एक आवर्ती पूरी हुई।
- इसी प्रकार लम्बे-गहरे श्वास ले और छोड़ें। 5 -10 या अवश्यकता अनुसार आवर्तियाँ करे।
- अंत मे श्वास सामान्य करें।
2. कपालभाति :
यह कपाल भाग की शुद्धि के लिये उत्तम क्रिया है। इसको करने से मस्तिष्क प्रभावित होता है। सिर दर्द की परेशानी दूर होती है।
सावधानी :-
- गर्भवती महिलाओ के लिये उत्तम क्रिया है। लेकिन इस क्रिया को केवल अरम्भिक दिनों मे ही किया जाना चाहिये। गर्भकाल (Pregnancy) की पूर्ण अवस्था के दिनो मे इसे नही करना चाहिए।
- उच्च रक्तचाप वाले, हृदय- रोग से प्रभावित तथा योग के नए अभ्यासी (Beginner) इस क्रिया को धीमी गति से करें।
- क्रिया करते समय पेट पर दबाव न डालें। पेट को प्रभावित किये बिना इस क्रिया को करें।
क्रिया की विधि :-
- बैठने की स्थिति का चयन अपने अनुसार करें। सुविधा पूर्वक स्थिति में बैठें।
- दोनो हाथों से घुटने पकड़ लें।
- रीढ को सीधा रखें।
- नासिका से श्वास को गति से बाहर छोड़ें और सामान्य गति से श्वास भरें। ध्यान केवल श्वास छोड़ने पर केंद्रित करे। सामान्य गति से पूरक करें।
- यह सुनिश्चित करे कि क्रिया करते समय पेट पर कोई तनाव न आने पाये।
- क्रिया अपनी क्षमता के अनुसार करे।
- वापिस आ जाये और श्वास सामान्य करें।
- श्वास सामान्य करने के बाद अनुलोम विलोम करे।
3.अनुलोम-विलोम :
यह सरलता से किये जाने वाला प्रभावकारी प्राणायाम है। यह सूर्य नाड़ी व चंद्र नाड़ी दोनो को संतुलित करता है। यह कपालभाति के लाभ को बढाने वाला प्राणायाम है।
- सुविधा जनक स्थिति मे बैठें।
- बांया हाथ बांए घुटने पर ज्ञान मुद्रा मे रखें।
- दांया हाथ नासिका के पास ले जाएं। दांए हाथ की पहली दो उंगलियाँ मोड़ लें। अंगूठे को नासिका के दांई तरफ और तीसरी उंगली नासिका के बांई तरफ रखें।
- अंगूठे से दाई नासिका को बंध करें।
- बांई नासिका से श्वास भरें। (श्वास का पूरक)
- पूरा श्वास भरने के बाद उंगली से बांई नासिका को बंध करें। दांई तरफ से श्वास को खाली करें। (श्वास का रेचक)
- पूरी तरह श्वास खाली करने के बाद, दांई नासिका से श्वास का पूरक करे। बांई नासिका से रेचक करें।
- यह एक आवर्ती (एक चक्र) पूरी हुई।
- इसी प्रकार क्षमता के अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें। और वापिस आ जाये। श्वास सामान्य करें।
4. भ्रामरी।
यह मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला उत्तम प्राणायाम है। इस को करने से श्रवण (सुनने की) शक्ति बढ़ती है।
प्राणायाम विधि :-
- आराम दायक स्थिति में बैठें।
- आँखें कोमलता से बंध करें।
- दोनों हाथो को कोहनियों से मोड़ें। हथेलियाँ चेहरे के पास ले आएं।
- दोनो हाथों की पहली दो उंगलियाँ आँखों के पास रखें। दूसरी दो उंगलियां होंठों के पास रखें।
- अंगूठों से दोनो कान बंध करें।
- लम्बा गहरा श्वास भरें।
- मुंह को बंध रखते हुए कण्ठ से उ-उ--- की ध्वनि करे।
- बंध कानों से केवल अपनी गुंजन की ध्वनि सुनाई देनी चाहिए।
- श्वास खाली होने के बाद फिर श्वास भरे, और फिर गुंजन करे।
- 4-5 आवर्ती करने के बाद वापिस आ जाँये
5. ॐ ध्वनि (ओमकार की ध्वनि) :
प्राणायाम के अंत में ॐ ध्वनि करें। लम्बा-गहरा श्वास भरें। "ओम" की लम्बी ध्वनि करें। ध्वनि करते समय 'ओ' की ध्वनि को लम्बा (2/3) रखे और 'म' को (1/3) छोटा रखें।
श्वास खाली होने पर फिर से श्वास भरें। फिर से 'ओम' ध्वनि करें। तीन आवर्तियाँ अवश्य करें।
ध्यान (Meditation) :-
गर्भवती महिलाओं के लिये ध्यान (Medtation) बहुत महत्वपूर्ण है। ध्यान की क्रिया माँ और शिशु दोनो को प्रभावित करती है। गर्भावस्था (Pregnancy) मे माँ के विचार शिशु को प्रभावित करते हैं। अत: माँ को विचारो की शुद्धता व एकाग्रता बनाये रखनी चाहिए। ध्यान विचारों को एकाग्र बनाये रखता है।
विधि :-
आसन प्राणायाम के बाद कुछ देर ध्यान की स्थिति मे बैठें।
- सुखासन या सुविधा जनक स्थिति मे बैठें।
- आँखें कोमलता से बंध रखें।
- हाथ ज्ञान मुद्रा या सुविधा जनक स्थिति मे रखें।
- श्वांसों को सामान्य रखें।
- पहले ध्यान को श्वासो पर केंद्रित करें। आती-जाती श्वासो को अनुभव करें।
- ध्यान को श्वासो से हटा कर आज्ञा चक्र मे केंद्रित करें। (आज्ञा चक्र :- माथे के मध्य मे तिलक लगाने वाले स्थान के पीछे आज्ञा चक्र स्थित है।)
- आज्ञा चक्र मे स्थित होने के बाद अपने किसी आराध्य का ध्यान करें।
- कुछ देर स्थिति मे रुकें।
- ध्यान की स्थिति से वापिस आये। शवासन मे लेट कर विश्राम करें।
गर्भवती महिलाओ के लिये योग लाभकारी है। माँ और शिशु दोनो के लिये यह प्रभावी क्रिया है। लेकिन इसे कुछ सावधानी के साथ किया जाना चाहिए।
Disclaimer :-
यह लेख योग विशेषज्ञो की जानकारी के अनुसार लिखा गया है। लेकिन सलाह दी जाती है कि कोई भी योग क्रिया करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य लें। इस आलेख बताई गई क्रियाएँ केवल "स्वस्थ गर्भवती महिलाओं" के लिये हैं। आलेख मे बताये नियम व सावधानियों का पालन करें। यदि कोई अस्वस्थता है तो चिकित्सक की सलाह के बिना योगाभ्यास न करें।