योग भारतीय ऋषियों द्वारा बताई गई एक प्राचीन विधि है। आज पूरा विश्व इसी विधि को स्वास्थ्य के लिए अपना रहा है। यह केवल एक शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि शरीर-विज्ञान पर आधारित क्रिया है। आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान भी इसको मान्यता देता है। किए गए शोध इसके प्रभाव तथा स्वास्थ्य-लाभ को स्वीकारते हैं। योग क्या है? इसके प्रभाव तथा लाभों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है? प्रस्तुत लेख में आगे इसका विस्तार से वर्णन किया जाएगा।
![]() |
| pexels photo |
योग : एक विज्ञान
ये योग के प्रभावी अभ्यास हैं। शरीर पर इनके प्रभाव बहुआयामी होते हैं। ये शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायी होते हैं।इनका अभ्यास कैसे किया जाता है? इनका वैज्ञानिक तथ्य क्या है? आइए इसको विस्तार से समझ लेते हैं।
1. आसन का अभ्यास : वैज्ञानिक तथ्य
यह योग का एक शारीरिक अभ्यास है। यह शरीर को सीधा प्रभावित करता है। कई बार योगासन को व्यायाम समझ लिया जाता है। लेकिन यह सही नहीं है। इन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। व्यायाम के प्रभाव सीमित होते हैं। योगासन के प्रभाव व्यापक तथा विज्ञान सम्मत होते हैं। "योगासन" व्यायाम से अधिक प्रभावी होते हैं।
आसन पतंजलि योग के अनुसार :- महर्षि पतंजलि आसन को परिभाषित करते हुए एक सूत्र देते हैं :- स्थिर: सुखमासनम। अर्थात् किसी पोज में "स्थिरता व सुखपूर्वक रुकना" आसन है। इस सूत्र का अर्थ यह है कि जो आसन "स्थिरता" और "सुखपूर्वक" किए जाते हैं वे ही लाभकारी होते हैं।
आसनों का शरीर पर वैज्ञानिक प्रभाव
आधुनिक शोधों के अनुसार, आसन का नियमित अभ्यास शरीर पर कई सकारात्मक प्रभाव डालता है। आसनों के मुख्य वैज्ञानिक प्रभाव इस प्रकार हैं :-
- शरीर को मजबूती : यह अभ्यास शरीर के सभी अंगों को सक्रिय और मजबूत करता है। शरीर के अस्थि जोड़ों को तथा मांसपेशियों को सुदृढ़ करता है।
- हृदय प्रणाली पर प्रभाव : आसन का अभ्यास रक्त संचार को व्यवस्थित करता है। यह रक्तचाप को संतुलित करता है। संतुलित रक्तचाप से हृदय को मजबूती मिलती है, और हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है।
- पाचन तंत्र पर प्रभाव : आसन का नियमित अभ्यास पेट के आंतरिक अंगों को प्रभावित करता है। यह इन अंगों (किडनी, लीवर और पैंक्रियाज) को सक्रिय करता है। ये पाचन क्रिया को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं। यह अभ्यास आंतों को सुदृढ़ करता है, और कब्ज जैसे रोगों से राहत देता है।
- नाड़ी तंत्र पर प्रभाव : योगासन में रीढ़ को विशेष महत्व दिया गया है। शरीर का पूरा नाड़ी-तंत्र रीढ़ से जुड़ा हुआ है। आसन के अभ्यास रीढ़ को लचीला बनाते हैं और नाड़ी तंत्र को स्वस्थ बनाए रखते हैं।
- हार्मोन्स का संतुलन : यह अभ्यास अंत:स्रावी ग्रंथियों को प्रभावित करता है। ये ग्रंथियां शरीर के हार्मोन्स को संतुलित करने में सहायक होती हैं।
कौन से आसन लाभकारी होते हैं
योग के सभी आसन लाभदाई होते हैं। लेकिन हम सब के शरीरों की स्थिति अलग-अलग होती है। इसलिए इनके प्रभाव सभी व्यक्तियों पर अलग अलग होते हैं। एक अभ्यास किसी के लिए लाभकारी होता है, तो वही अभ्यास दूसरे व्यक्ति के लिए हानिकारक भी हो सकता है।
- क्षमता अनुसार किया गया अभ्यास : आपके शरीर की क्षमता अनुसार किए गए सभी अभ्यास लाभकारी होते हैं।
- सरलता से किया गया अभ्यास : सरल आसन हमेशा लाभकारी होते हैं। जिस आसन का अभ्यास करने से कष्ट का अनुभव हो, उसका अभ्यास न करें।
- स्थिरता से किया गया अभ्यास : जिस आसन की स्थिति में आप स्थिरता से अधिक देर तक रुक सकते हैं, उसका अभ्यास अवश्य करें।
- सुखपूर्वक किया गया अभ्यास : जिस अभ्यास को करने से शरीर के अंगों को आराम मिलता है, वह अवश्य करें। ऐसा अभ्यास लाभकारी होता है।
सावधानियां
योगासन लाभदाई अभ्यास है। लेकिन यह अभ्यास सावधानी से करना चाहिए। असावधानी से किया गया अभ्यास कई बार हानिकारक भी हो जाता है। इसलिए अभ्यास करते समय इन बातों को ध्यान में रखें :-
- बलपूर्वक अभ्यास न करें : आसन का अभ्यास सरलता से करें। आरामदायक अभ्यास लाभकारी होते हैं। बलपूर्वक तथा कष्ट देने वाले अभ्यास हानिकारक हो सकते हैं।
- खाना खाने के तुरंत बाद आसन न करें : योग की सभी क्रियाएं खाली पेट से की जानी चाहिए। भोजन करने के तुरंत बाद अभ्यास न करें।
- जल्दबाजी में अभ्यास न करें : बिना रुके, जल्दी-जल्दी, लगातार किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है। एक आसन का अभ्यास करने के बाद कुछ देर विश्राम करें। उसके बाद अगला आसन करें।
- रोग की अवस्था में : रोग की स्थिति में योगासन न करें। स्वस्थ होने के बाद चिकित्सक की सलाह से अभ्यास करें।
- सर्जरी के बाद : यदि हाल ही में शरीर के किसी अंग की सर्जरी हुई है, तो योगासन न करें।
- गर्भवती महिलाएं : गर्भकाल की आरंभिक अवस्था में कुछ सरल अभ्यास अपने चिकित्सक की सलाह से कर सकती हैं। लेकिन पूर्ण अवस्था में आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
2. प्राणायाम का अभ्यास और विज्ञान
प्राणायाम योग का श्वसन अभ्यास है। योगासन के बाद इसका अभ्यास अवश्य करना चाहिए। चिकित्सा-विज्ञान के शोध बताते हैं कि यह श्वसन तंत्र को सुदृढ़ करने वाला, ऊर्जादायी अभ्यास है।
प्राणायाम का अर्थ पतंजलि के अनुसार : प्राण और आयाम दो शब्दों को मिला कर प्राणायाम बनता है। प्राण का अर्थ है "ऊर्जा" और आयाम का अर्थ है "निश्चित ऊंचाई" या "स्थिति"। अर्थात् प्राण ऊर्जा को एक निश्चित आयाम देना ही प्राणायाम है। महर्षि पतंजलि इस को परिभाषित करते हुए एक सूत्र देते हैं :- तस्मिन सति श्वास-प्रश्वासयोर्गति विच्छेद: प्राणायाम:।योगसूत्र।
अर्थ :- श्वास की सामान्य गति को कुछ देर (क्षमता अनुसार) रोकना प्राणायाम है।
अर्थात् श्वास लेने, छोड़ने और रोकने की वैज्ञानिक तकनीक को प्राणायाम कहा जाता है।
प्राणायाम के वैज्ञानिक प्रभाव
- श्वसन प्रणाली पर प्रभाव : प्राणायाम का नियमित अभ्यास श्वसन तंत्र के अवरोधों को हटाता है। फेफड़ों को सक्रिय करता है। ऑक्सीजन अवशोषण की क्षमता बढ़ता है। यह श्वसन रोगों से बचाव करने में सहायक होता है।
- हृदय-स्वास्थ्य पर प्रभाव : इस अभ्यास से शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में होती है। यह शरीर के रक्तचाप को संतुलित करता है। इसका नियमित अभ्यास हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
- शरीर के रसायन तंत्र पर प्रभाव : यह अभ्यास शरीर के सभी तत्वों, रसायनों तथा हार्मोन्स को संतुलित करता है। यह कफ, वात तथा पित्त में संतुलन बनाए रखता है। ये सभी तत्व शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं।
- नर्वस सिस्टम पर प्रभाव : प्राणायाम का अभ्यास तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) को सक्रिय करता है। यह तनाव को कम करता है और मानसिक शांति देता है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता : प्राणायाम-अभ्यास शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) की वृद्धि करता है। यह इम्यूनिटी शरीर को रोगों से बचाव करने में सहायक होती है।
- स्मृति पर प्रभाव : वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार प्राणायाम अभ्यास से एकाग्रता बढ़ती है। यह स्मृति को विकसित करने में सहायक होता है।
लाभदाई प्राणायाम
- श्वास की क्षमता अनुसार : प्राणायाम का अभ्यास श्वास की क्षमता अनुसार करना चाहिए।
- नए अभ्यासी : नए अभ्यासी आरम्भ में केवल सरल अभ्यास करें। नए अभ्यासी के लिए सरल प्राणायाम लाभदाई होते हैं।
- रोग की स्थिति में : श्वास के गंभीर रोगी इस अभ्यास को न करें।
सावधानियां
- क्षमता से अधिक अभ्यास न करें : अपने श्वास की क्षमता से अधिक अभ्यास न करें। प्राणायाम की आवृत्तियां अपनी क्षमता अनुसार करें।
- बलपूर्वक श्वास न रोकें : नए अभ्यासी बल पूर्वक अधिक देर तक श्वास न रोकें। अधिक देर तक श्वास रोकना हानिकारक हो सकता है।
- श्वास रोगी तथा हृदय रोगी : श्वास रोगी और हृदय रोगी इस अभ्यास को न करें। आरम्भिक रोगी अपने चिकित्सक की सलाह से सरल अभ्यास करें।
- उच्च रक्तचाप में : उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति तेज गति वाले अभ्यास न करें। ऐसे व्यक्ति केवल धीमी गति वाले अभ्यास ही करें
- मौसम के अनुकूल प्राणायाम करें : प्राणायाम का अभ्यास सभी प्रकार के मौसम में लाभदाई होता है। लेकिन कुछ अभ्यास मौसम के अनुसार करने चाहिए। क्योंकि कुछ प्राणायाम-अभ्यास किसी एक मौसम में हानिकारक हो सकते हैं। (देखें :- मौसम के अनुसार प्राणायाम कैसे करें?)
- सही क्रम से अभ्यास करें : प्राणायाम का अभ्यास सही क्रम से करना चाहिए। सही क्रम से किया गया अभ्यास लाभकारी होता है। प्राणायाम का सही क्रम :-
- कपालभाति
- अनुलोम विलोम
- भ्रामरी
- शीतली या शीतकारी (गर्मी के मौसम में)
- भस्त्रिका (सर्दी के मौसम में)
- नाड़ी शोधन
3. ध्यान का अभ्यास (Meditation)
ध्यान या Meditation योग की एक सर्वोच्च अवस्था है। यही योग का मुख्य उद्देश्य है। यह मन-मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला अभ्यास है। आसन और प्राणायाम के बाद यह अभ्यास करना चाहिए।
ध्यान क्या है और कैसे करें?
इस सूत्र में महर्षि पतंजलि ने चित्तवृत्ति-निरोध को योग कहा है। 'ध्यान' योग की यही अवस्था है। यह व्यक्ति की आत्म-चेतना और मानसिक शांति की स्थिति है।
ध्यान की विधि : आसन और प्राणायाम के बाद शांत मन तथा एकाग्रता से कुछ देर बैठना 'ध्यान' की स्थिति है। मानसिक शांति के लिए मनोविज्ञान भी इस अवस्था को उत्तम मानता है। यह अभ्यास करते समय इन बातों को ध्यान में रखें :-
- किसी भी आरामदायक पोज में बैठें। पद्मासन की स्थिति में बैठने उत्तम है।
- रीढ़ व गर्दन को सीधा करके बैठें।
- दोनों हाथों को घुटनों पर ज्ञान मुद्रा में रखें।आँखें कोमलता से बंध करें।
- श्वासों को सामान्य रखें।
- ध्यान को कुछ देर श्वासों पर केंद्रित करें।
- उसके बाद ध्यान को आज्ञाचक्र (माथे के बीच) में केंद्रित करें। कुछ देर निर्विचार (मन में बिना कोई विचार आए) भाव में रुकें।
- कुछ देर स्थिति में रुकने बाद ध्यान की अवस्था से बाहर आ जाएं। लेट कर विश्राम करें।
ध्यान के वैज्ञानिक प्रभाव
- मानसिक शांति : यह मन को शांत करता है और मानसिक शांति देता है।
- अवसाद से राहत : यह तनाव को दूर करता है और अवसाद से राहत देता है।
- मन की एकाग्रता : यह अभ्यास मन को एकाग्र करता है।
- मस्तिष्क के लिए प्रभावी : यह मस्तिष्क को प्रभावित करने वाला अभ्यास है।
- रक्तचाप का नियंत्रण : यह शरीर के रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक होता है।
सारांश
स्वास्थ्य के लिए योग एक प्राचीन विधि है। यह विज्ञान पर आधारित अभ्यास है। इसमें आसन शरीर को, प्राणायाम श्वास को तथा ध्यान मन-मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।
Disclaimer
योग एक विज्ञान सम्मत और लाभदाई अभ्यास है। लेकिन यह अपने शरीर की क्षमता अनुसार करना चाहिए। क्षमता से अधिक अभ्यास हानिकारक हो सकते हैं। नए अभ्यासी प्रशिक्षक के निर्देशन में अभ्यास करें। यह लेख चिकित्सा हेतु नहीं है। केवल योग की एक सामान्य जानकारी है।
