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पाचनतंत्र हमारे शरीर के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। खराब पाचनतंत्र अधिकतर रोगों का कारण बनता है। "गलत खान-पान" तथा "अनियमित जीवनशैली" हमारी पाचन-क्रिया को प्रभावित करते हैं। पाचन-क्रिया के खराब होने से कब्ज, गैस, एसिडिटी होने लगती है। ये अन्य रोगों का कारण बनते हैं। इसलिए सन्तुलित आहार लें और नियमित योग करें। इसके लिए योगाभ्यास मे कई आसन बताये गये हैं। पवनमुक्तासन कब्ज व पेट रोगों के लिए एक प्रभावी आसन है। प्रस्तुत लेख मे इसकी सही विधि, लाभ व सावधानियों के बारे मे बताया जायेगा।

विषय सुची :

• पवनमुक्तासन की विधि।
• सावधानियाँ।
• लाभ।

pawanmuktasna

पवनमुक्तासन - पेट रोगों के लिये लाभदायी आसन

पवनमुक्तासन एक लाभदायी आसन है। इस आसन के अभ्यास से शरीर के कई अंग प्रभाव में आते हैं। यह रीढ, कमर, पेट तथा तथा पैरों को प्रभावित करने वाला आसन है। इसका मुख्य प्रभाव पेट के सभी अंगों पर पङता है। यह किडनी, लीवर,पैनक्रियाज तथा आँतों को प्रभावित करता है। इसके अभ्यास से आँतों मे जमा हुआ मल बाहर आता है। यह कब्ज दूर करने मे सहायक होता है।

पवनमुक्तासन की विधि, लाभ व सावधानियाँ

पवनमुक्तासन क्या है? :- "पवनमुक्तासन" तीन शब्दो, 'पवन' 'मुक्त' 'आसन' से मिल कर बना है। "पवन" का अर्थ है वायु (दुषित वायु)। "मुक्त" का अर्थ है, बाहर निकालना। "आसन" का अर्थ है स्थिति या पोज। अर्थात् दुषित वायु को बाहर निकालने मे जो आसन सहायक होता है, उसे पवनमुक्तासन कहा जाता है।

यह पीठ के बल लेट कर किया जाने वाला आसन है। यह एक लाभदायी आसन है। इसके कई लाभ है, इसका वर्णन आगे किया जायेगा। लेकिन इस आसन का अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ करना चाहिए। पहले इस आसन की विधि को समझ लेते हैं।

आसन की सही विधि

इस आसन को तीन चरणों मे करना अधिक लाभदायी होता है। पहले चरण में बाँये पैर से, दूसरे चरण में दाँये पैर से तथा तीसरे चरण मे दोनों पैरों से अभ्यास करें।

पहला चरण :

• पीठ के बल सीधे लेट जाएँ।
• दोनों पैरों को एक साथ रखें। दोनों हाथ शरीर के साथ रखें।
• बाँया घुटना मोड़ें। दाँया पैर सीधा रखें।
• श्वास भरते हुए बाँया घुटना पेट की ओर दबाएँ।
• श्वास छोड़ते हुये सिर या नासिका बाँये घुटने के पास ले जाएँ।
• श्वास सामान्य करके कुछ देर रुकें।
• कुछ देर रुकने के बाद वापिस आ जाएँ। बाँया पैैर सीधा करे और धीरे से नीचे टिकाएँ।

दूसरा चरण :

• दाँया पैर मोड़ें। बाँया पैर सीधा रखें।
• श्वास भरते हुए दाँया घुटना पेट की ओर दबाएँ।
• श्वास छोड़ते हुए नाक या सिर दाँये घुटने के पास ले जाएँ।
• श्वास सामान्य करके कुछ देर रुकें।
• स्थिति में कुछ देर रुकने के बाद वापिस आ जाएँ। दाँया पैर सीधा करे और धीरे से नीचे टिकाएँ।

तीसरा चरण :

• दोनों पैर मोड़ें।
• श्वास भरते हुए हाथों से दोनों घुटनों को पेट की ओर दबाएँ।
• श्वास छोड़ते हुए सिर या नाक घुटनों के पास ले जाएँ।
• कुछ देर खाली श्वास रुकें। स्थिति मे अधिक देर रुकने के लिए श्वास सामान्य करे।
• श्वास को सामान्य करके क्षमता अनुसार इस स्थिति 
में रुके, और धीरे से वापिस आ जाएँ।
• हाथों की ग्रिप घुटनों से हटाएँ। पीठ व सिर को नीचे टिकाएँ।
• दोनों पैरों को सीधा करें। धीरे से दोनो पैरों को नीचे टिकाएँ। विश्राम करें।

पवनमुक्तासन की सावधानियाँ

इस आसन का अभ्यास करते समय कुछ सावधानियों को ध्यान मे अवश्य रखें। यह आसन कुछ अवस्थाओ मे वर्जित है। अत: इन स्थितियों मे यह अभ्यास न करें।

1. क्षमता अनुसार अभ्यास करें :- इस आसन का अभ्यास अपने शरीर की क्षमता अनुसार करें। पैरों को पेट की ओर अपनी क्षमता अनुसार दबाएँ। सिर को घुटनों के समीप ले जाने के लिए अनावश्यक बल प्र्योग न करें।

2. आसन को सरलता से करें :- सरलता से किया गया आसन लाभदायी होता है। बलपूर्वक किया गया अभ्यास हानिकरक हो सकता है। यदि आसन की पूर्ण स्थिति मे पहुँचना सम्भव नहीं है, तो अनावश्यक बल प्रयोग न करे। सरलता से आसन को जितना कर सकते हैं, उतना ही करें।

3. पैरों को धीरे से नीचे टिकाएँ :- पैरों को सीधा करने के बाद धीरे-धीरे नीचे लेकर आएँ। धीरे से नीचे टिकाएँ। पैरों को जोर से नीचे न गिराएँ।

4. वर्जित :- यह आसन कुछ व्यक्तियों के लिए वर्जित है। इसलिए ये व्यक्ति इस आसन का अभ्यास न करें :-
• आँत के गम्भीर रोगी।
• हार्निया या पेट मे कोई फोड़ा (घाव) होने पर।
• पेट की शाल्यक्रिया (सर्जरी) होने के बाद।
• रीढ के क्षतिग्रस्त होने पर।
• गर्भवती महिलाएँ।

पवनमुक्तासन के लाभ

• यह आसन दुषित वायु को बाहर करने में सहायक होता है।
• कब्ज, गैस व एसिडिटी को दूर करता है।
• पैनक्रियाज, लीवर तथा पेट के आन्तरिक अगों को सक्रिय करता है।
• यह कमर, रीढ, गर्दन तथा पैरों के लिए लाभदायी है।

लेख सारांश :

पवनमुक्तासन पेट के आन्तरिक अंगो के लिए लाभदायी आसन है। इसका अभ्यास अपने शरीर की क्षमता अनुसार करना चाहिए।

Disclaimer :

यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार हेतू नही है। इस लेख का उद्देश्य केवल योग की जानकारी देना है। रोग की अवस्था मे योगासन न करें तथा अपने चिकित्सक से सलाह अवश्य लें। लेख में बताया गया आसन अपनी क्षमता अनुसार ही करें। क्षमता से अधिक तथा बलपूर्वक किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है।

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