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योगाभ्यास मे प्राणायाम शरीर को ऊर्जा देने वाली क्रिया है। हमारे ऋषियो ने कई प्रकार की प्राणायाम विधियाँ बताई हैं। इनमे चंद्रभेदी प्राणायाम का विशेष महत्व है। यह बहुत सरलता से किया जाने वाला लाभदायी प्राणायाम है। इस ऊर्जदायी अभ्यास के अनेकों लाभ हैं। चंद्रभेदी प्राणायाम का महत्व क्या है? इसकी विधि, लाभ व सावधानियाँ क्या हैं? ये सब प्रस्तुत लेख मे वर्णन किया जायेगा।

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लेख की विषय सुची :-

• चंद्रभेदी प्राणायाम क्या है?
• विधि।
• लाभ।
• सावधानियाँ।
• चंद्रभेदी का अभ्यास कब नही करना चहाए?

चंद्रभेदी प्राणायाम क्या है?

हमारी नासिका के दो द्वार (छिद्र) हैं। दोनो का अपना-अपना महत्व है। हमारा बाँया नासिका द्वार चंद्रनाङी से तथा दाँया नासिका द्वार सूर्यनाङी से जुङा है। चंद्रनाङी शरीर को शीतलता तथा सूर्यनाङी शरीर को गर्मी देने वाली होती हैं। इस प्राणायाम मे चंद्रनाङी प्रभाव मे आती है। इसलिये इस अभ्यास को चंद्रभेदी कहा गया है। आईये इस को विस्तार से समझ लेते हैं।

चंद्रभेदी का अर्थ है चंद्रनाङी का भेदन करना। इस अभ्यास से चंद्र नाङी प्रभावित होती है इसलिये इस को चंद्रभेदी या चंद्रभेदन कहा गया है। यह शरीर को शीतलता देने वाला अभ्यास है। इसलिये यह गर्मी के मौसम मे अधिक लाभदायी होता है। यह प्राणायाम कब करना चहाये? इसकी सही विधि तथा लाभ क्या हैं? ये सब आगे इस लेख मे विस्तार से बताया जायेगा।

देखें :- सूर्यभेदी व चंद्रभेदी प्राणायाम मे अन्तर।

चंद्रभेदी प्राणायाम की विधि,लाभ तथा सावधानी।

यह सरलता से किया जाने वाला लाभदायी प्राणायाम है। इसकी विधि बहुत सरल है। लेकिन इसका अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चहाये। यह अभ्यास कुछ व्यक्तियों के लिये वर्जित है। अत: उनको यह प्राणायाम नही करना चहाये। पहले इसकी विधि के बारे मे समझ लेते हैं।

चंद्रभेदी की सही विधि क्या है?

जैसा कि पहले बताया गया है कि इस अभ्यास मे "चंद्र नाङी" को प्रभावित किया जाता है। यह एक ऊर्जादायी प्राणायाम है। लेकिन इसका विधिपूर्वक किया गया अभ्यास ही लाभदायी होता है। इस प्राणायाम की सही विधि क्या है, इसको विस्तार से समझ लेते हैं।

 पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें। रीढ व गर्दन को सीधा रखें। आँखे कोमलता से बंध करें।

बाँया हाथ बाँये घुटने पर ज्ञान मुद्रा* मे, तथा दाँया हाथ प्राणायाम मुद्रा* में नासिका के पास रखें।

(*ज्ञान मुद्रा :- पहली उँगली व अंगूठे की पोर को मिलाने की स्थिति को ज्ञानमुद्रा कहा गया है। 
*प्राणायाम मुद्रा :- दाँये हाथ की अंगूठे के साथ वाली दो उँगलियाँ मोङ कर हाथ को नासिका के पास रखें। अंगूठा नासिका के दाँयी तरफ तथा तीसरी उंगली नासिका के बाँयी तरफ रहे।)

अंगूठे से दाँयी नासिका बंध करें। बाँयी नासिका से धीरे-धीरे लम्बा-गहरा श्वास भरें।

पूरा श्वास भरने के बाद उँगली का दबाव डाल कर बाँयी नासिका को बंध करें। यथा शक्ति भरे श्वास मे कुछ देर रुकें।

क्षमता अनुसार रुकने के बाद धीरे-धीरे दाँयी नासिका से श्वास खाली करें। यह चंद्रभेदी की एक आवर्ती पूरी हुई।

दूसरी आवर्ती के लिये फिर से बाँयी नासिका से धीरे-धीरे श्वास भरें। दाँयी नासिका से श्वास खाली करें। इसी प्रकार 10-15 या अवश्यकता अनुसार आवर्तियाँ करें।

प्राणायाम पूरा करने के बाद दाँया हाथ दाँये घुटने पर ज्ञान मुद्रा की स्थिति मे रखें। श्वासों को सामान्य करें।

चंद्रभेदी के लाभ।

यह गर्मी के मौसम मे किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण प्राणायाम है। इसके नियमित अभ्यास से शरीर को कई लाभ मिलते हैं। इनमे से मुख्य लाभ ये  हैं :--

1. चंद्रभेदी प्राणायाम शरीर को शीतलता देने वाला अभ्यास है। यह गर्मी के मौसम मे लाभदायी है।

2. यह उच्च रक्तचाप (HighBP) के लिये लाभदायी है।

3. पित्त को सन्तुलित करता है।

4. मन को एकाग्र करता है। मानसिक शान्ति देता है।

5. यह शरीर को ऊर्जा देने वाला अभ्यास है।

6. यह गर्मी के मौसम के कुप्रभाव से बचाव करता है। यह अभ्यास मौसमी ज्वर के लिये भी लाभदायी होता है।

चंद्रभेदी की सावधानियाँ।

यह लाभदायी प्राणायाम है, लेकिन इसका अभ्यास सावधानी से किया जाना चहाये। सावधानी से किया गया अभ्यास लाभदायी होता है।

• इस प्राणायाम का अभ्यास केवल गर्मी के मौसम मे ही करना चहाये।

• बैठने की स्थिति का चयन अपने शरीर की अवस्था के अनुसार करें। पद्मासन पोज मे बैठना उत्तम है। लेकिन सम्भव न हो को किसी आरामदायक पोज मे बैठें।

• कमर को झुका कर न बैठें। रीढ व गर्दन को सीधा रखें। आँखे कोमलता से बंध करें। ध्यान को श्वासों पर केंद्रित करें।

• श्वास का धीरे-धीरे बिना आवज किये पूरक करें। श्वास पूरा गहराई तक भरें। श्वास छोङते समय धीरे-धीरे पूरा श्वास खाली करें।

• बाँयी नासिका से श्वास भरने के बाद अपनी क्षमता अनुसार भरे श्वास मे कुछ देर रुकें। क्षमता से अधिक देर श्वास न रोकें। यदि श्वास रोकने मे कठिनाई है, तो केवल बाँये से श्वास भरें और बिना श्वास रोके दाँये से खाली करें।

चंद्रभेदी कब नही करना चहाये?

यह प्राणायाम कुछ अवस्थाओ मे वर्जित है। अत: इन स्थितियों में यह अभ्यास नही किया जाना चहाये। 

• चंद्रभेदी शीतलता देने वाला प्राणायाम है। इस लिये यह शरद ऋतु मे वर्जित है। सर्दी के मौसम मे इसका अभ्यास न करें।

• निम्न रक्तचाप (लो बीपी) वाले व्यक्ति के लिये यह अभ्यास हानिकारक हो सकता है। अत: ऐसे व्यक्ति को यह नही करना चहाए।

• कफ की प्रधानता वाले व्यक्ति को यह प्राणायाम नही करना चहाये।

• हृदय रोगी तथा श्वास रोगी को सावधानी से करना चहाये।

सारांश :--

योगाभ्यास मे चंद्रभेदी प्राणायाम एक महत्वपूर्ण श्वसन अभ्यास है। यह शरीर को शीतलता देने वाला प्राणायाम है। यह High BP के लिये लाभदायी है। इसका अभ्यास केवल गर्मी के मौसम मे ही किया जाना चहाये।

Disclaimer :--

यह लेख चिकित्सा हेतू नही है। यह लेख केवल योग की जानकारी के लिये है। लेख मे बताया गया अभ्यास केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है। रोग ग्रस्त व्यक्ति अपने चिकित्सक से अवश्य सलाह लें।

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