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क्या आप जानते हैं कि हमारी नासिका के दो द्वार (Nostril) क्यो होते हैं? इन दोनो  का क्या महत्व है? सामान्यत: हम दोनो नथुनों से श्वास लेते-छोङते हैं। इन दोनों का हमारे लिए बहुत महत्व हैं। दाँये नथुने से श्वास लेने से शरीर की "सूर्य नाङी" प्रभावित होती है। और बाँये से श्वास लेने पर "चंद्र नाङी" प्रभाव में आती है। 

सूर्य नाङी शरीर को ऊर्जा (गर्मी) देती है। तथा चंद्र नाङी शीतलता देती है। दोनो मे संतुलन होना भी अवश्यक है। "सूर्यभेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम" दो महत्वपूर्ण प्राणायाम हैं। सूर्यभेदी 'सूर्य नाङी' को तथा चंद्रभेदी 'चंद्र नाङी' को प्रभावित करते हैं।

'सूर्यभेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम में अंतर'   क्या हैं? इनकी विधि, लाभ तथा सावधानियाँ क्या हैं? इस आलेख मे इन विषयों पर जानकारी दी जायगी।

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विषय सुची :-
  • सूर्यभेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम क्या हैं?
  • सूर्यभेदी की विधि, लाभ व सावधानियाँ।
  • चंद्रभेदी की विधि, लाभ व सावधानियाँ।
  • दोनों मे अंतर क्या है?

सूर्यभेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम क्या हैं?

हमारे शरीर में लाखों सूक्ष्म नाङियाँ हैं। इनमें 72,000 प्राणिक नाङियाँ हैं। इन 'प्राणिक- नाङियों'' से प्राणों का प्रवाह होता है। इन में तीन नाडियाँ मुख्य हैं। ये तीन नाङियाँ हैं --  ईङा, पिंगला और सुषुम्ना।

इन तीनों की स्थिति मेरूदण्ड (Spine) पर होती है। ईङा, चंद्र नाङी तथा पिंगला, सूर्य नाङी बताई गई हैं। चंद्रभेदी प्राणायाम से ईङा (चंद्र नाङी) प्रभावित होती है। पिंगला (सूर्य नाङी) को प्रभावित करने के लिये सूर्यभेदी प्राणायाम किया जाता है। सूर्यभेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम में अंतर क्या हैं ?

सूर्यभेदी प्राणायाम। Right nostril breathing.

सूर्यभेदी प्राणायाम से हमारी सूर्यनाङी प्रभाव में आती है। इसी को पिंगला नाङी कहा गया है। यह नाङी शरीर को गर्मी (ऊर्जा) देती है। यह प्राणायाम दाँयी नासिका (Right Nostril) से पूरक करके किया जाता है।

दाँयी नासिका (Right Nostril) का जुङाव सूर्य नाङी से है। अत: यह प्राणायाम दाँयी नासिका के पूरक से ही किया जाता है। आईये देखते हैं कि इस प्राणायाम की विधि क्या है?

सूर्यभेदी प्राणायाम की विधि।

नियमित अभ्यासी को यह प्राणायाम बंध व कुम्भक के साथ करना चहाए। लेकिन नये अभ्यासी (Beginners) इस प्राणायाम को बिना कुम्भक ही करें। इस की विधि को ठीक प्रकार से करने के लिए दो श्रेणियो मे रखते हैं।
  1. नये (Beginners) अभ्यासी।
  2. नियमित (Regular) अभ्यासी। 

नये (Beginners) अभ्यासी :--

जो व्यक्ति योग अभी आरम्भ कर रहे है। नये (Beginner) हैं, इस प्राणायाम को सावधानी से करें। हृदय रोगी, उच्च रक्तचाप (High BP) वाले व्यक्ति इस प्राणायाम को न करें।

  • पद्मासन या सुखासन में बैठें। (जो व्यक्ति  नीचे नही बैठ सकते है, वे  कुर्सी पर बैठ कर  करें।)
  • गरदन व रीढ (Spine) को सीधा रखें। आँखें कोमलता से कर लें।
  • बाँया हाथ ज्ञानमुद्रा मे रखें। दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनाएँ। (प्राणायाम मुद्रा के लिए अंगूठे के साथ वाली पहली व दूसरी उँगलियों को मोङ ले। अंगूठा नासिका दाँयी तरफ तथा तीसरी उँगली नासिका के बाँयी तरफ रहे।)
  • उंगली से बाँयी नासिका पर हल्का दबाव डाल कर बाँयी नासिका बंध करें।
  • दाँयी नासिका से लम्बा गहरा श्वास भरें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद अंगूठे से दाँयी नासिका बंद करें। बाँयी तरफ से श्वास पूरी तरह खाली करे।
  • यह एक चक्र पूरा हुआ। दूसरी आवर्ती के लिए फिर से दाँयी ओर से श्वास का पूरक करे। तथा बाँयी ओर से रेचक करें।
  • नये अभ्यासी (Beginners) आरम्भ मे 3 या 4 आवर्ती करें।
  • धीरे-धीरे अभ्यास को बढाएँ।
नियमित (Regular) अभ्यासी :--

नियमित अभ्यास करने वाले, तथा स्वस्थ श्वासों वाले व्यक्ति बंध व कुम्भक लगा कर प्राणायाम करें।

  • पद्मासन या सुखासन में बैठें।
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें। 
  • आँखे कोमलता से बंद करें।
  • बाँया हाथ बाँये घुटने पर ज्ञान मुद्रा में रखें।
  • दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बना कर नासिका के पास ले जाएँ।
  • बाँयी नासिका को बंद करके दाँयी नासिका से लम्बा, गहरा श्वास भरें। 
  • पूरा श्वास भरने पर दाँयी नासिका को भी बंद करें। मूल बंध लगाएँ (निष्कासन अंगो का संकोचन)। गरदन को झुका कर ठोडी सीने से लगाएँ (जलंधर बंध)। यथा शक्ति भरे श्वास में रुकें (आंतरिक कुम्भक)।
  • क्षमता के अनुसार रुकने के बाद बंधो को हटाएँ। और बाँयी तरफ से श्वास खाली कर दें।
  • खाली श्वास मे क्षमता के अनुसार रुके। त्रि बंध भी लगा सकते हैं। 
  • यह एक चक्र पूरा हुआ। एक चक्र पूरा करने के बाद श्वासों को सामान्य करें। श्वास सामान्य होने के बाद दूसरी आवर्ती करें।  
  • दूसरे चक्र के लिए उसी प्रकार फिर दाँये से श्वास का पूरक करे। यथा शक्ति श्वास रोके। और बाँये से श्वास को खाली कर दें।
  • आरम्भ मे तीन-चार आवर्तियाँ करें। धीरे-धीरे अभ्यास को बढाएँ।

सूर्यभेदी प्राणायाम के लाभ।

  • यह शरीर को ऊर्जा देता है।
  • रक्त प्रवाह व प्राण संचार करता है।
  • निम्न रक्तचाप (Low BP) मे लाभकारी है।
  • पाचन क्रिया मे सहायक है।
  • कफ दोष मे प्रभावी है।
  • यह चंद्र नाङी को भी संतुलित करता हैं।

सावधानियाँ।

  • सूर्यभेदी प्राणायाम गर्मी के मौसम मे नही करना चहाए।
  • नये व्यक्ति कुम्भक का प्रयोग न करें।
  • हृदय रोगी तथा उच्च रक्तचाप (High BP) वाले व्यक्ति इस प्राणायाम को न करें।
  • एक चक्र (आवर्ती) पूरा करने के बाद श्वास सामान्य करें।

चंद्रभेदी प्राणायाम। (Left nostril breathing). 

चंद्रभेदी प्राणायाम से चंद्रनाङी (ईङा नाङी) सक्रिय होती है। यह शीतलता देने वाली नाङी है। यह बाँये स्वर (Left Nostril) से प्रभावित होती है।

यह प्राणायाम सूर्य नाङी के विपरीत है। लेकिन यह सूर्य नाङी के साथ संतुलन स्थापित करता है। कई बार पिंगला नाङी (सूर्य नाङी) अधिक सक्रिय हो जाती है। इस कारण आने वाले अतिरिक्त ताप को संतुलित करता है।

आईये, देखते है कि चंद्रभेदी प्राणायाम की विधि क्या है।

चंद्रभेदी प्राणायाम की विधि।

यह प्राणायाम बाँयी नासिका (चंद्रनाङी) से किया जाता है। इस प्राणायाम को बंध व कुम्भक के साथ करना उत्तम है। नये अभ्यासी कुम्भक का प्रयोग न करें। आईये देखते हैं कि नये (Beginners) तथा नियमित अभ्यासी इसे किस प्रकार करें।

नये (Beginners) अभ्यासी :--

नये व्यक्ति (Beginners) कुछ सावधानियों को ध्यान मे रख कर यह क्रिया करें। कफ रोगी, अस्थमा पीङित तथा निम्न रक्तचाप (Low BP) वाले इसे न करें।

  • पद्मासन या सुखासन मे बैठें। नीचे बैठने मे असमर्थ व्यक्ति कुर्सी पर बैठकर करें।
  • पीठ व गरदन को सीधा रखें। आँखें कोमलता से बंध करें।
  • बाँया हाथ बाँये घुटने पर ज्ञान मुद्रा मे रखें।
  • दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बना कर नासिका के पास ले जाएँ।
  • दाँये हाथ के अंगूठे से दाँयी नासिका को बंद करें।
  • बाँयी तरफ से लम्बा, गहरा श्वास भरें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद धीरे-धीरे दाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
  • यह एक चक्र पूरा हुआ।
  • इसी प्रकार तीन आवर्तियाँ करें।
  • प्राणायाम के अंत मे श्वासो को सामान्य करें।
नियमित (Regular) अभ्यासी :--

नियमित अभ्यासी, तथा स्वस्थ-श्वासों वाले व्यक्ति बंध व कुम्भक का प्रयोग करें।

  • पद्मासन या सुखासन में बैठें। 
  • मेरूदण्ड (रीढ) व गरदन को सीधा रखें।
  • बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा में रखें। दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनाये।
  • दाँये हाथ के अंगूठे से दाँयी नासिका को बंद करें।
  • बाँयी नासिका से लम्बा, गहरा श्वास भरें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका को भी बंद करें।
  • मूल बंध और जलंधर बंध लगाएँ। भरे श्वास मे क्षमता के अनुसार रुकें।
  • कुछ देर रुकने के बाद बंधो को हटाएँ। दाँयी नासिका से श्वास का रेचक करें।
  • खाली श्वास मे यथा शक्ति रुकें। खाली श्वास मे त्रिबंध भी लगा सकते है। क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापिस आएँ।  
  • एक चक्र पूरा हुआ। श्वास सामान्य करे। इसी प्रकार अन्य आवर्तियाँ करें।

चंद्रभेदी प्राणायाम के लाभ।

  • यह शीतलता देता है।
  • मानसिक शाँति देता है।
  • उच्च रक्तचाप मे लाभकारी है।
  • पित्त दोष मे प्रभवी है।
  • सूर्य नाङी मे संतुलन कायम करता है।

सावधानियाँ।

  • इस प्राणायाम को शरद ऋतु में न करें।
  • नये व्यक्ति कुम्भक न लगाएँ। कुम्भक केवल स्वस्थ व्यक्ति ही लगाएँ।
  • निम्न रक्तचाप (Low BP) वाले व्यक्ति इसे न करें।
  • अस्थमा पीङित व कफ रोगी यह प्राणायाम न करें।
  • एक चक्र पूरा करने के बाद श्वास को सामान्य करें।

सूर्य भेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम मे अंतर क्या है?

ये दोनो प्राणायाम एक दूसरे के विपरीत भी है। तथा एक दूसरे के पूरक भी हैं। दोनो एक दूसरे को संतुलित भी रखते हैं। आईये, देखते हैं कि दोनो मे क्या अंतर है।

दोनो की प्रकृति में अंतर।

दोनो प्राणायाम की प्रकृति में अंतर है। एक की प्रकृति गर्म है तो दूसरे की शीतल है।

सूर्यभेदी :-- इस प्राणायाम की गर्म प्रकृति है। यह प्राणायाम सूर्यनाङी को प्रभावित करता है। सूर्य नाङी शरीर को गर्मी प्रदान करती है। यह शरीर के लिए अवश्यक ऊर्जा है।

चंद्रभेदी :-- यह शीतल प्रकृति का प्राणायाम है। यह शरीर को शीतलता देने वाला प्राणायाम है। इस को करने से चंद्र नाङी प्रभाव में आती है।

दोनो की विधि में अंतर।

दोनों प्राणायाम को करने की विधि में अंतर है। दोनों की विधि में अंतर :--

सूर्यभेदी :-- यह प्राणायाम दाँयी नासिका (Right Nostril) से आरम्भ किया जाता है। इसमें दाँये से पूरक और बाँये से रेचक करते हैं।

चंद्रभेदी :--- यह बाँयी नासिका (Left  Nostril) से आरम्भ किया जाता है। इस प्राणायाम में बाँये से पूरक और दाँये से रेचक किया जाता है।

दोनों को करने का मौसम अलग।

दोनो को कभी भी एक साथ नहीं करना चहाए।दोनों को करने का मौसम अलग-अलग हैं। मौसम के आधार पर दोनो में अंतर है।

सूर्यभेदी :-- यह प्राणायाम केवल सर्दियों मे किया जाना चहाए। यह गर्म प्रकृति का है इसलिए यह गर्मी के मौसम मे वर्जित है। सर्दियों के मौसम मे यह एक लाभकारी प्राणायाम है। 

चंद्रभेदी :-- यह शीत प्रकृति का प्राणायाम है। अत: इसे शीत ऋतु में नही करना चहाए। गर्मी के मौसम मे चंद्रभेदी एक उत्तम प्राणायाम है। गर्मी के मौसम का यह लाभकारी है।

दोनो के प्रभाव में अंतर।

दोनों प्राणायाम शरीर के लिए लाभकारी है। इन से शरीर पर पङने वाले प्रभाव मे भी अंतर है।

सूर्यभेदी :-- शरीर को गर्मी देता है। यह शरीर की ऊर्जा है। शरीर के रक्त प्रवाह, प्राण संचार तथा पाचन क्रिया मे सहायक है। यह निम्न - रक्तचाप (Low BP) मे लाभकारी है। यह शरीर के कफ दोष पर प्रभावी है।

चंद्रभेदी :-- यह शीतलता देने वाला प्राणायाम है। मानसिक तनाव दूर करने में सहायक है। पित्त दोष मे प्रभावकारी है। यह उच्च रक्तचाप (HighBP) में लाभकारी है।

सारांश :--

सूर्यभेदी और चंद्रभेदी प्राणायाम मे अंतर है। दोनो की प्रकृति अलग-अलग हैं। दोनो के प्रभाव अलग हैं। दोनो लाभकारी है। दोनो को एक साथ कभी भी नही करने चहाएँ। सूर्यभेदी शरद ऋतु मे करना चहाए। चंद्रभेदी गर्मी के मौसम मे लाभकारी है।


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