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पिछले लेख मे हम पढ चुके हैं कि बाह्य कुम्भक प्राणायाम क्या है? बाह्य कुम्भक के बाद आभ्यन्तर कुम्भक का अभ्यास करना चाहिए। आभ्यन्तर कुम्भक प्राणायाम क्या है? इस अभ्यास की विधि, लाभ व सावधानियां क्या हैं? प्रस्तुत लेख मे ये सब विस्तार से बताया जायेगा।
(बाह्य कुम्भक के विषय मे जानने के लिये पढें :- बाह्य प्राणायाम क्या है?)

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आभ्यन्तर कुम्भक प्राणायाम :

महर्षि पतंजलि ने "प्राणायाम" को परिभाषित करते हुये "कुम्भक" को ही वास्तविक प्राणायाम बताया है। इस सम्बंध मे वे एक सूत्र देते हैं :- 

"तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।" अर्थात् श्वास प्रश्वास का गति विच्छेद ही प्राणायाम है। (यहां श्वास लेने व छोड़ने की गति को कुछ देर रोकने की अवस्था को गति विच्छेद कहा है। यह गति विच्छेद ही कुम्भक है।)

अगले सूत्र मे महर्षि पतंजलि तीन प्रकार के प्राणायाम का वर्णन करते हैं :-
"बाह्य आभ्यान्तर स्तम्भवृत्ति देश काल संख्याभि परिदृष्टो दीर्घ सूक्ष्म:।"
इस सूत्र मे तीन प्रकार के प्राणायाम का वर्णन आता है :-
1. बाह्य वृत्ति प्राणायाम :- अपनी क्षमता अनुसार कुछ देर खाली श्वास की स्थिति मे रुकना बाह्य वृत्ति प्राणायाम है।
2. आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम :- श्वास को अपनी क्षमता अनुसार अन्दर रोकना आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम है।
3. स्तम्भ वृत्ति प्राणायाम :- यथा स्थिति श्वास को कुछ देर रोकना स्तम्भ वृत्ति प्राणायाम है।

"बाह्य वृत्ति प्राणायाम" के विषय मे हम पिछले लेख मे जान चुके हैं। आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम क्या है, इस विषय को समझ लेते हैं।

आभ्यन्तर कुम्भक प्राणायाम की विधि, लाभ व सावधानियां :

प्राणायाम मे "श्वास" की तीन स्थितियां बताई गई है :-
1. रेचक :- श्वास को बाहर निकालना।
2. पूरक :- श्वास को अन्दर लेना।
3. कुम्भक :- श्वास को रोकना।

कुम्भक तीन प्रकार के बताये गये हैं :-

1. बाह्य कुम्भक :- श्वास की रेचक स्थिति मे कुछ देर रुकना बाह्य कुम्भक है। इसको बाह्य वृत्ति भी कहा जाता है।
2. आन्तरिक कुम्भक :- श्वास की पूरक स्थिति मे कुछ देर रुकना आन्तरिक कुम्भक है। इसे आभ्यन्तर वृत्ति भी कहा जाता है।
3. कैवेल्य कुम्भक :- बिना किसी प्रयास के श्वास का यथा स्थिति मे कुछ देर ठहरना कैवेल्य कुम्भक है। इसे स्तम्भ वृत्ति भी कहा जाता है।

आभ्यन्तर प्राणायाम की विधि :

बाह्य प्राणायाम के साथ आभ्यन्तर प्राणायाम भी करना चाहिए।

 बाह्य प्राणायाम के बाद धीरे-धीरे श्वास को अन्दर भरें।
 पूरा श्वास भरने के बाद मूल बन्धजालन्धर बन्ध लगाये। श्वास को अपनी क्षमता के अनुसार कुछ देर रोकेंं।

(मूल बन्ध :- गुदा भाग को संकुचित करके ऊपर की ओर खींचना। जालधंर बन्ध :- गर्दन को आगे की ओर झुका कर ठोडी को कण्ठ के साथ लगाना)

 अपनी क्षमता के अनुसार भरे-श्वास की स्थिति मे रुकने के बाद गर्दन को सीधा करें। धीरे-धीरे श्वास को खाली करें। श्वास को सामान्य करें।
 यह एक आवर्ती हुई। अन्य आवर्तियां अपनी क्षमता अनुसार करें।

आभ्यन्तर कुम्भक के लाभ :

आभ्यन्तर प्राणायाम के अभ्यास से फेफड़ों मे वायु पूरी तरह भर जाती है। अधिकतम वायु भरने के कारण ये फैल जाते है। फैलने और सिकुड़ने की क्रिया से लंग्स की स्थिलता दूर होती है। और ये एक्टिव हो जाते हैं। इस प्राणायाम के और भी कई लाभ हैं :-

इस अभ्यास से फेफड़े स्वस्थ रहते हैं।
यह अभ्यास शरीर ऑक्सिजन की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा मे करता है।
 श्वसनतंत्र सुदृढ होता है।
• यह शरीर के लिये ऊर्जादायी है। बन्धों का प्रयोग करने से ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होकर ऊपर उठती है।
 इसका नियमित अभ्यास रक्तचाप (BP) को संतुलित रखता है।
• यह ध्यान के लिये एकाग्रता को बढाता है।

सावधानियां :

यह प्राणायाम केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है। यह अभ्यास सावधानी से किया जाना चहाये।

इस अभ्यास को अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार करना चाहिए।
श्वास रोकने के लिये अनावश्यक बल प्रयोग न करें।
दूसरी आवर्ती आरम्भ करने से पहले श्वासों को सामान्य करें। लगातार अभ्यास न करें।

यह प्राणायाम कुछ व्यक्तियों के लिये वर्जित है, अत: इन व्यक्तियों को यह अभ्यास नही करना चाहिए :-

• श्वास रोगी।
• हृदय रोगी।
• कमजोर श्वसनतंत्र वाले व्यक्ति।
• नये अभ्यासी।
• उच्च रक्तचाप वाले व्यक्ति।
• गर्भवती महिलाएं।
• रजस्वला महिलाएं (पीरियड्स में)।

इन व्यक्तियों के लिये कुम्भक का अभ्यास हानिकारक हो सकता है। अत: ये व्यक्ति कुम्भक न लगाएं।

सारांश :-

बाह्य वृत्ति प्राणायाम के साथ आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम भी करें। यह लाभदायी क्रिया है। लेकिन यह अभ्यास केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है।

Disclaimer :-

यह लेख किसी रोग-उपचार के लिये नही है। यह केवल प्राणायाम की जानकारी के लिये है। लेख मे बताया गया अभ्यास अपनी क्षमता से अधिक न करें। ऐसा करना हानिकारक भी हो सकता है।

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