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आभ्यन्तर कुम्भक प्राणायाम :
महर्षि पतंजलि ने "प्राणायाम" को परिभाषित करते हुये "कुम्भक" को ही वास्तविक प्राणायाम बताया है। इस सम्बंध मे वे एक सूत्र देते हैं :-
"तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।" अर्थात् श्वास प्रश्वास का गति विच्छेद ही प्राणायाम है। (यहां श्वास लेने व छोड़ने की गति को कुछ देर रोकने की अवस्था को गति विच्छेद कहा है। यह गति विच्छेद ही कुम्भक है।)
"बाह्य वृत्ति प्राणायाम" के विषय मे हम पिछले लेख मे जान चुके हैं। आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम क्या है, इस विषय को समझ लेते हैं।
आभ्यन्तर कुम्भक प्राणायाम की विधि, लाभ व सावधानियां :
प्राणायाम मे "श्वास" की तीन स्थितियां बताई गई है :-
1. रेचक :- श्वास को बाहर निकालना।
2. पूरक :- श्वास को अन्दर लेना।
3. कुम्भक :- श्वास को रोकना।
कुम्भक तीन प्रकार के बताये गये हैं :-
1. बाह्य कुम्भक :- श्वास की रेचक स्थिति मे कुछ देर रुकना बाह्य कुम्भक है। इसको बाह्य वृत्ति भी कहा जाता है।
2. आन्तरिक कुम्भक :- श्वास की पूरक स्थिति मे कुछ देर रुकना आन्तरिक कुम्भक है। इसे आभ्यन्तर वृत्ति भी कहा जाता है।
3. कैवेल्य कुम्भक :- बिना किसी प्रयास के श्वास का यथा स्थिति मे कुछ देर ठहरना कैवेल्य कुम्भक है। इसे स्तम्भ वृत्ति भी कहा जाता है।
आभ्यन्तर प्राणायाम की विधि :
बाह्य प्राणायाम के साथ आभ्यन्तर प्राणायाम भी करना चाहिए।
(मूल बन्ध :- गुदा भाग को संकुचित करके ऊपर की ओर खींचना। जालधंर बन्ध :- गर्दन को आगे की ओर झुका कर ठोडी को कण्ठ के साथ लगाना)
आभ्यन्तर कुम्भक के लाभ :
आभ्यन्तर प्राणायाम के अभ्यास से फेफड़ों मे वायु पूरी तरह भर जाती है। अधिकतम वायु भरने के कारण ये फैल जाते है। फैलने और सिकुड़ने की क्रिया से लंग्स की स्थिलता दूर होती है। और ये एक्टिव हो जाते हैं। इस प्राणायाम के और भी कई लाभ हैं :-
सावधानियां :
यह प्राणायाम केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है। यह अभ्यास सावधानी से किया जाना चहाये।
यह प्राणायाम कुछ व्यक्तियों के लिये वर्जित है, अत: इन व्यक्तियों को यह अभ्यास नही करना चाहिए :-
इन व्यक्तियों के लिये कुम्भक का अभ्यास हानिकारक हो सकता है। अत: ये व्यक्ति कुम्भक न लगाएं।
सारांश :-
बाह्य वृत्ति प्राणायाम के साथ आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम भी करें। यह लाभदायी क्रिया है। लेकिन यह अभ्यास केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये है।
Disclaimer :-
यह लेख किसी रोग-उपचार के लिये नही है। यह केवल प्राणायाम की जानकारी के लिये है। लेख मे बताया गया अभ्यास अपनी क्षमता से अधिक न करें। ऐसा करना हानिकारक भी हो सकता है।