स्वास्थ्य के लिये योग को एक उत्तम विधि माना जाता है। प्राणायाम योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। "आसन" के बाद इसका अभ्यास अधिक लाभदायी होता है। योगभ्यास में यह एक श्वसन अभ्यास है। यह श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है तथा प्राण ऊर्जा की वृद्धि करता है। इसका नियमित अभ्यास रक्तचाप (BP) को नियंत्रित करता है। शरीर पर प्राणायाम के प्रभाव बहुआयामी हैं। प्रस्तुत लेख मे आगे इन सब का वर्णन किया जाएगा।
विषय सुची :
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शरीर पर प्राणायाम के प्रभाव Effects of Pranayama
स्वास्थ्य के लिए प्राणायाम का बहुत अधिक महत्व है। यह शरीर पर व्यापक प्रभाव डालने वाली क्रिया है। इसके प्रभाव बहुआयामी हैं। यह श्वास, प्राण, रक्तचाप, हृदय, लंग्स तथा पाचन क्रिया को स्वस्थ रखने वाला अभ्यास है। प्राणायाम के प्रभाव क्या हैं, यह जानने के लिये प्राणायाम के विषय मे जानना जरूरी है।
प्राणायाम क्या है?
"प्राणायाम" अष्टांगयोग का चौथा चरण है। "आसन" के बाद इसका अभ्यास किया जाना चाहिए। यह श्वास पर आधारित क्रिया है। इसमें सही विधि से श्वास लेना, रोकना व श्वास छोड़ना सिखाया जाता है।
प्राणायाम का अर्थ :
प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ है, प्राणों को आयाम देना। इस क्रिया मे प्राण-शक्ति को एक निश्चित आयाम दिया जाता है। यह शरीर के लिये ऊर्जादायी होता है।
प्राणायाम के प्रभाव
प्राणायाम का शरीर पर प्रभाव बहुआयामी होता है। यह श्वसनतंत्र के अवरोधो को दूर करता है। शरीर के रसायनिक तत्वों तथा रक्तचाप को संतुलित रखता है। पेट के अंगों को सक्रिय करके पाचनतंत्र को सुदृढ करता है।प्राणायाम के प्रभाव को आगे विस्तार से समझ लेते हैं।
1. श्वसन प्रणाली पर प्रभाव :- "श्वास" जीवन का मुख्य आधार है। प्राणायाम श्वास पर आधारित क्रिया है। नियमित प्राणायाम का अभ्यास लंग्स को एक्टिव रखता है। यह श्वसनतंत्र को सुदृढ करता है। इसका नियमित अभ्यास श्वसन-रोगों से बचाव करने मे सहायक होता है।
2. हृदय पर प्रभाव :- इस क्रिया से शरीर में आक्सीजन की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा मे होती है। रक्त संचार की स्थिति उत्तम होती है। ये सब हृदय को स्वस्थ रखने मे सहायक हाते हैं।
3. प्राण ऊर्जा पर प्रभाव :- प्राणायाम का मुख्य प्रभाव प्राण-ऊर्जा पर पड़ता है। प्राणायाम इस ऊर्जा की वृद्धि तथा संरक्षण करता है, और शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है।
4. रक्त चाप (BP) का सन्तुलन :- प्राणायाम रक्तचाप को प्रभावित करने वाली क्रिया है। इसका नियमित अभ्यास रक्त चाप (BP) को सन्तुलित बनाये रखता है।
5. रासायनिक तत्वों का सन्तुलन :- यह क्रिया शरीर के कफ, वात व पित्त को सन्तुलित रखती है। यह शरीर के रसायन निर्माण को नियन्त्रित करती है। इसका नियमित अभ्यास मधुमेह (सुगर) नियन्त्रण मे सहायक होता है।
6. पाचन क्रिया पर प्रभाव :- प्राणायाम पेट के आन्तरिक अंगों को प्रभावित करता है। यह किडनी, लीवर, पेनक्रियाज तथा आंतों को स्वस्थ रखता है। इसका नियमित अभ्यास पाचनतंत्र को सुदृढ करता है।
प्राणायाम की सावधानियां :
प्राणायाम शरीर के लिये लाभदायी क्रिया है। इसको सभी व्यक्ति अपनी शारीरिक स्थिति के अनुसार कर सकते हैं। लेकिन इसका अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चाहिए।
• क्षमता :- प्राणायाम का अभ्यास अपने श्वासों की क्षमता के अनुसार करना चाहिए। बलपूर्वक अभ्यास न करें। नए अभ्यासी आरम्भ मे कठिन प्राणायाम न करें।
• कुम्भक का प्रयोग :- यदि श्वास की स्थिति ठीक है, तो "कुम्भक" का प्रयोग करें। श्वास की स्थिति ठीक नही है तो बिना कुम्भक का सरल प्राणायाम ही करें।
(श्वास को कुछ देर रोकने की स्थिति को कुम्भक कहा जाता है।)
• रोग की स्थिति मे :- श्वास रोगी व हृदय रोगी कठिन प्राणायाम न करें। चिकत्सक की सलाह से सरल प्राणायाम करें। गम्भीर रोगी प्राणायाम न करें।
लेख सारांश :
प्राणायाम शरीर के लिए ऊर्जादायी होता है। इसके प्रभाव व्यापक हैं।
Disclaimer :
यह लेख चिकित्सा हेतू नही है। इसका उद्देश्य प्राणायाम के विषय मे जानकारी देना है। प्राणायाम का अभ्यास केवल स्वस्थ व्यक्ति को करना चाहिए। अस्वस्थ होने पर अभ्यास न करें तथा चिकित्सक से सलाह लें।