हमारे शरीर में अधिकतर रोगों का कारण पेट रोग ही होते हैं। इनमें कब्ज, गैस व एसिडिटी रोग मुख्य हैं। ये पेट रोग "गलत आहार" तथा "अनियमित" जीवन शैली के कारण होते हैं। यही रोग आगे चल कर अन्य रोगों का कारण बनते हैं। इन से बचने के क्या उपाय हैं? तथा पेट रोगों के लिए योग (Yoga for stomach diseases.) कैसे प्रभावी है, यह इस लेख का विषय है।
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विषय सुची :-
- पेट रोगों के लिए योग क्रियाएं
- कुंजल क्रिया।
- अग्निसार क्रिया।
- पेट रोगों के लिए योग आसन
- पश्चिमोत्तान आसन।
- शशांक आसन।
- पादोत्तान आसन।
- पवन मुक्त आसन।
- मर्कट आसन।
पेट रोग (उदर रोग) के योग
आज के जीवन मे अधिकतर लोग पेट रोगों से पीड़ित हैं। कब्ज, गैस व एसिडिटी ये सभी रोग अनियमित दिनचर्या के कारण होते है। इन से बचने के लिए योग मे कुछ "क्रियाएं" तथा "आसन" बताए गये हैं। इस लेख में हम कुछ लाभकारी क्रियाओं तथा आसनों के बारे मे बताएंगे।
पेट रोगों के लिए "योग क्रियाएं"
उदर रोगों से बचने के लिए योग मे क्रियाएं बताई गई हैं। ये पेट रोगों के लिए बहुत लाभकारी हैं। इनमे दो क्रियाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। आईए इनको विस्तार से समझ लेते हैं।
1. कुंजल क्रिया। Kunjal Kriya.
शरीर की शुद्धि के लिए योग में षट्कर्म बताये गये है। उन शुद्धि क्रियाओं मे यह एक क्रिया है। इस क्रिया के द्वारा हम आहार-नली मे आये हुए "अम्लीय पदार्थों" को बाहर निकालते है। आईए देखते है कि कुंजल क्रिया क्या है? और यह क्यो जरूरी है?
कुंजल क्रिया क्यो? :- हमारे शरीर मे अम्ल (Acid) का निर्माण होता है। अम्ल (Acid) हमारे शरीर के लिए एक महत्वपूर्ण रसायन है। यह भोजन के पाचन मे सहायक होता है। लेकिन इस का निर्माण सीमित मात्रा मे होना चाहिए। गलत खान-पान से ये अम्लीय पदार्थ अधिक मात्रा मे बन जाते हैं।
कई बार ये अम्लीय पदार्थ (Acid) हमारी 'आहार-नली' मे आ जाते हैं। इस कारण गले मे जलन लगती है। खट्टी डकार आने लगती है। मन खराब हो जाता है। तथा उल्टी (वमन) करने का मन करता है। इसी को Acidity कहा गया है। इस अतिरिक्त "अम्ल" को हम कुंजल क्रिया से बाहर निकालते हैं।
कुंजल क्रिया की विधि :- कुंजल क्रिया की विधि बहुत सरल है। इसके लिये एक बरतन (लोटा या गिलास) मे सादा पानी ले। यदि सर्दी का मौसम है तो हल्का गर्म कर लें।
- बांया हाथ पेट पर रखें। घुटने मोड़ कर (ऊकड़ू) बैठ जाये। (यदि घुटने मोड़ कर बैठने मे परेशानी हो तो कुर्सी पर बैठे)
- दांएं हाथ से पानी का पात्र पकड़े। जितना पानी पी सकते हैं, पी लें। पानी पीने के बाद पात्र को एक तरफ रख दें।
- बांया हाथ पेट पर रखे हुए खड़े हो जाएं। कमर से आगे की ओर झुकें।
- मुह खोल कर जाएं हाथ की पहली दो उंगलियों को जीभ के पिछले भाग (कंठ) के पास ले जाये। जो पानी पीया था वह उल्टी (वमन) द्वारा बाहर निकाल दें।
- आहार-नली मे आया हुआ अम्ल (Acid) पानी के साथ बाहर आ जायेगा।
- पानी से गरारे करते हुए कुल्ला करें।
- यह क्रिया रोजाना नही करनी चाहिए। क्योंकि उल्टी (वमन) के साथ कुछ पाचक-रस भी बाहर आ जाते हैं। इस को महिने मे एक बार या अवश्यकता के अनुसार ही करें।
- अधिक वृद्ध व्यक्तियों को यह नही करनी चाहिए।
- आंत के रोगी व गले के रोगी चिकित्सक की सलाह से ही करें।
- यह क्रिया केवल सुबह खाली पेट ही करनी चाहिए। खाना खाने के बाद इसे नही करना चाहिए।
2. अग्निसार क्रिया
योगाभ्यास मे यह पेट के लिए एक उत्तम क्रिया है। इस क्रिया से हमारा अग्नाशय प्रभावित होता है। पाचनतंत्र मे वृद्धि होती है। यह क्रिया कब्ज मे लाभकारी है।
अग्निसार की विधि :-
- पद्मासन या सुखासन मे बैठें। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें। हथेलियां पलट कर घुटने पकड़ लें। रीढ व गरदन को सीधा रखें। आंखें कोमलता से बंध करें।
- लम्बा-गहरा श्वास भरें। श्वास को पूरी तरह खाली करें। मूल बंध लगाये। (निष्कासन अंगो का संकोचन करना मूल बँध कहा गया है। इसके लिए जननेन्द्रिय तथा मल-द्वार पर दबाव डालते हुए ऊपर की ओर खींचें।) गर्दन को हल्का सा आगे की ओर झुकाएं।
- मूल बंध लगाने के बाद खाली श्वास मे पेट को पीछे ले जाये और ढीला छोड़े। यथा शक्ति खाली श्वास पेट को आगे पीछे करें।
- क्षमता के अनुसार करने के बाद धीरे से गर्दन को सीधा करे। मूल बंध हटाएं। श्वास भरें। वापिस पूर्व स्थिति मे आ जाए। यह एक आवर्ती हुई।
- श्वास सामान्य होने के बाद, आरम्भ मे दो या तीन आवर्तियां ही करें। धीरे-धीरे अभ्यास को बढाएं।
क्रिया साधारण शब्दों में :- खाली श्वास में पेट को आगे-पीछे करना अग्निसार क्रिया है। यह क्रिया लगातार करें। इसको मूल बंध के साथ करना उत्तम है। लेकिन आरम्भ मे नये साधक बिना मूलबंध के भी कर सकते हैं।
सावधानियां :- यह क्रिया सावधानी से करें। कुछ व्यक्तियों के लिए यह क्रिया वर्जित (मना) है।
- श्वास रोगी, हृदय रोगी तथा आंत रोगी इस क्रिया को न करें।
- पेट की शाल्य क्रिया (सर्जरी) हुई है या पेट मे फोड़े जैसा कोई विकार है, तो इस क्रिया को बिलकुल न करें।
- श्वास अपनी क्षमता के अनुसार ही रोकें। श्वास मे घुटन होने से पहले ही श्वास का पूरक करे। सामान्य होने के बाद फिर श्वास खाली करें और क्रिया की दूसरी आवर्ती करें।
- नये व्यक्ति आरम्भ मे बिना मूलबंध के इस क्रिया को कर सकते हैं।
पेट रोगों के लिए "आसन"
योग मे लगभग सभी आसनों का प्रभाव सर्वांगीण होता है। अर्थात् रीढ के आसन करें या पेट के आसन करें, ये हमारे सभी अंगो को भी प्रभावित करते है। लेकिन यहां हम उन आसनों का वर्णन करेंगे जो पेट (Stomach) के आंतरिक अंगों को प्रभावित करते हैं। ये आसन पेट रोग मे प्रभावकारी है।
1. पश्चिमोत्तान आसन।
यह बैठ कर पीठ से आगे झुकने वाला आसन है। यह पेट तथा कमर के लिए एक उत्तम आसन है।
पश्चिमोत्तान आसन की विधि :-
- आसन (सीट) पर बैठ जाएं। पैरों को सीधा करें। घुटने सीधे रखें। एड़ी-पँजे व घुटने एक साथ मिला कर रखें।
- रीढ व गरदन को सीधा रखें। दोनो हाथ घुटनों पर रखें। आंखें कोमलता से बंध कर लें।
- धीरे-धीरे दोनो हाथ ऊपर उठाये। हाथ ऊपर जाने के बाद श्वास भरें। हाथों को ऊपर की ओर खींचें।
- श्वास खाली करते हुए आगे झुकें। दोनो हाथो से पैर के पंजे पकड़ने का प्रयास करें। माथा घुटनो से लगाने का प्रयास करें।
- कुछ देर खाली श्वास मे रुकें। यदि अधिक देर रुकना है तो श्वास सामान्य करके रुकें। क्षमता के अनुसार रुकने के बाद श्वास भरते हुए ऊपर उठें।
- ऊपर उठने के बाद हाथ ऊपर की ओर खींचें। धीरे-धीरे दोनो हाथ घुटनो पर ले आये। हाथों को पीछे टिकाएं, दोनो पैरो मे थोड़ी दूरी (गैप) बनाएं गर्दन पीछे ढीला छोड़ कर विश्राम करे।
2. शशांक आसन
यह वज्रासन की स्थिति में बैठ कर किया जाने वाला आसन है। यह पेट रोगों के लिये उत्तम आसन है।
आसन की विधि :-
- दोनों घुटने मोड़ कर घुटनों के बल, वज्रासन में बैठें। रीढ व गर्दन सीधी रखें। दोनो हाथ घुटनों पर रखें।
- एड़ियों मे दूरी, पैरों के अंगूठे एक दूसरे को टच करते हुए रखें। दोनो एड़ियों के बीच में मध्य भाग को टिका कर बैठें।
- श्वास भरते हुए दोनो हाथ ऊपर उठाएं। हाथों को ऊपर की ओर खींचें। श्वास खाली करते हुए आगे झुकें । हाथ सीधे और सिर के साथ लगा कर रखें।
- हाथ नीचे आने पर पहले हथेलियां, कोहनियां नीचे टिकाए। माथा घुटनों के पास ले जाये। श्वास सामान्य करके कुछ देर रुकें।
- यथा शक्ति रुकने के बाद श्वास भरते हुए ऊपर उठें। हाथों को ऊपर की ओर खींचें। हाथों को घुटनो पर ले आएं। श्वास सामान्य करें।
- आगे की ओर अपनी क्षमता के अनुसार झुकें।
- पेट का आकार बढा हुआ है तो आगे कम झुकें। धीरे-धीरे अभ्यास बढाएं।
- यदि माथा नीचे तक नहीं पहुंच रहा है तो, अधिक प्रयास न करें।
- आगे झुकते समय मध्य भाग एड़ियों से लगा रहे।
3. पादोत्तान आसन
पीठ के बल लेट कर किया जाने वाला यह उत्तम आसन है। इस आसन से पेट की आंतें प्रभावित होती हैं। इस आसन से पाचन तंंत्र सुदृढ होता है।
आसन की विधि :-
- आसन (सीट) पर पीठ के बल लेट जाएं। एड़ी, पंजे व घुटने एक साथ मिला कर रखें।
- यह आसन पहले चरण मे दांए व बांए पैर से बारी-बारी करें। दूसरे चरण में दोनों पैरों से एक साथ करें।
- दोनों हाथों को सिर की ओर ले जाएं। श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर तथा पैरों को नीचे की ओर खींचें। स्थिति मे कुछ देर रुकने के बाद श्वास सामान्य करे। हाथों को ऊपर ही रखें।
- फिर से श्वास भरें। दोनों मिले हुए पैरों को थोड़ा ऊपर उठाएं (लगभग तीन-चार इंच ऊपर उठाएं)।
- दांया पैर थोड़ा और ऊपर उठाएं। बांया हाथ ऊपर उठाएं। घुटना सीधा रखे। बांया पैर और दांया हाथ नीचे रखें।
- कुछ देर रुकने के बाद हाथ व पैर को नीचे ले आये। तनाव को दूर करे। स्थिति सामान्य करें।
- यही क्रिया बांये पैर और दांये हाथ से करें। बांया पैर व दाँया हाथ ऊपर ले जा कर रुकें।
- कुछ देर रुकने के बाद हाथ व पैर नीचे ले आये।
- कुछ सेकिंड विश्राम करें, आये हुए तनाव को दूर करें।
- फिर से श्वास भरें। घुटने सीधे रखते हुए दोनो पैर एक साथ धीरे-धीरे ऊपर उठाए। पैरो के लगभग दो फुट ऊपर उठने के बाद वही रुक जाएं। घुटने सीधे, पंजे खिच कर रखें। पैरो के साथ हाथ भी ऊपर उठाये। स्थिति मे कुछ देर रुके।
- वापिस आते समय पैर को धीरे से नीचे रखे। पैरों को जोर से न गिराये।
- पैरो मे दूरी बनाये। हाथ कमर के साथ रखे। शरीर को ढीला छोड़ कर कुछ देर विश्राम करें।
- इस आसन के बाद पवन मुक्त आसन अवश्य करें।
सावधानियां :-
- यदि पेट मे कोई सर्जरी हुई है, कोई आंत रोग है तो यह आसन न करें।
- यह आसन अपनी क्षमता के अनुसार करें।
- पैर को नीचे धीरे-धीरे लेकर आंएं।
- इसके बाद पवन मुक्त आसन अवश्य करें।
4. पवन मुक्त आसन
यह पहले किये गये "पादोत्तान आसन" के लाभ को बढाने वाला आसन है। इस आसन से दूषित वायु का निष्कासन होता है। इसलिए इसका नाम पवन मुक्त आसन है। यह एक सरल आसन है और पेट रोग (उदर रोग) के लिये लाभकारी आसन है।
पवन मुक्त आसन की विधि :-
- पीठ को बल लेटें। दोनों पैर मिलाये।
- इस आसन को पहले चरण मे दांए पैर व बांए पैर से बारी-बारी करें। दूसरे चरण में दोनों पैरो से एक साथ करें।
- दांया पैर मोड़े। दोनो हाथो से दांये घुटने को सीने (Chest) की ओर दबाएं। पीठ को उठाते हुए माथा घुटने के पास ले जाएं। स्थिति मे कुछ देर रुकें। और धीरे से वापिस पहले वाली स्थिति मे आ जाएं।
- यही क्रिया बायी तरफ से करें। बांया पैर मोड़ें। दोनो हाथों से बांया घुटना सीने की तरफ दबाएं। माथा घुटने के पास ले जाएं। स्थिति मे कुछ देर रुके। और धीरे-धीरे पूर्व-स्थिति मे वापिस आ जाये।
- अब इसी क्रिया को एक साथ दोनो पैरो से करें। दोनो पैर मोड़े। उंगलियों को आपस मे जोड़ कर ग्रिप बनाएं। दोनो घुटनो को सीने की ओर दबाएं। माथा या नाक घुटनो के पास ले जाएं। इस स्थिति मे कुछ देर रुकें।
- क्षमता के अनुसार रुकने के बाद धीरे से वापिस आएं। वापसी के लिए पहले पीठ व सिर को नीचे टिकाएं। दोनो हाथों को शरीर के साथ दांये बांये रखें। दोनो घुटने सीधे करते हुए धीरे-धीरे दोनो पैर एक साथ नीचे ले आएं।
- पैरों मे दूरी बनाएं। शरीर को ढीला छोड़ कर विश्राम करें। आसन से आये प्रभाव को अनुभव करें।
- आंत रोगी इस आसन को न करें।
- शाल्य क्रिया (सर्जरी) के बाद इस आसन को न करें।
- आसन अपनी क्षमता के अनुसार करें। शरीर को मोड़ने मे अधिक बल प्रयोग न करें।
- जितना सरलता से कर सकते है, उतना ही करें।
5. मर्कट आसन।
यह आसन भी एक सरल आसन है। कब्ज के लिए यह एक लाभकारी आसन है। यह आसन आंतों पर विशेष प्रभाव डालता है। यह पाचन-क्रिया को बढाने वाला आसन है।
आसन की विधि :-
- पीठ के बल लेटें। दोनो पैर मोड़े। एडियां नितम्बों के साथ लगाए। एड़ी, पंजे व घुटने मिला कर रखें।
- दोनो हाथ दाँये-बाँये फैला दें। दोनो हाथ कन्धों से एक लाईन मे आ जाएं। हाथों मे खिंचाव रखें।
- श्वास भरें। भरे हुए श्वास मे दोनो घुटने दांई ओर ले जा कर नीचे टिकाये। गर्दन को बाँई तरफ घुमाएं। हाथों को खींच कर रखें।
- श्वास खाली करते हुए घुटने बीच मे ले जाएं। गरदन को भी सीधा कर ले।
- फिर से श्वास भरें। और भरे श्वास मे घुटने बांई ओर तथा गरदन दांई ओर मोड़ें। कुछ देर रुकने के बाद वापिस आ जाये। यह एक आवर्ती हुई। इस प्रकार अन्य आवर्तियां करें।
- आसन के अंत में दोनो हाथों को शरीर के साथ रखें। घुटने सीधे करते हुए दोनो पैर धीरे से नीचे ले आएं। शरीर को ढीला छोड़ कर विश्राम करे।
आसन अपनी क्षमता के अनुसार करें। आँत के गम्भीर रोगी इस आसन को न करें।
पेट रोग अनियमित दिनचर्या तथा गलत आहार के कारण होते है। अत: पेट रोग से बचने के लिए संतुलित आहार तथा नियमित योग करना चाहिए।
"योग" शरीर के लिए एक लाभकारी क्रिया है। इसके साथ बताये गये निर्देशों तथा सावधानियों का पालन किया जाना चाहिए। प्रस्तुत लेख का उद्देश्य किसी रोग का उपचार करना नही है। हमारा उद्देश्य पाठको को योग के लाभ से अवगत कराना है। लेख में बताये गये आसन व क्रियाएं केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं।