रीढ (Spine) हमारे शरीर के लिए महत्वपूर्ण है। पूरा नाड़ी तन्त्र रीढ पर आधारित है। शरीर का सम्पूर्ण नियन्त्रण यहीं से होता है। यही स्थूल शरीर (Physical Body) का आधार है। अत: हमे इस की फिटनेस का ध्यान रखना चाहिए। इस लेख में हम यह बताएंगे कि रीढ का क्या महत्व है? तथा रीढ के लिए योग आसन (Yoga for spine) कैसे करें?
- रीढ का महत्व आधुनिक शरीर विज्ञान में।
- रीढ का महत्व योग में।
- रीढ (Spine) में विकार के कारण।
- रीढ (Spine) के आसन कैसे करें?
- रीढ के लिये आसन कोन से हैं?
रीढ का महत्व तथा योग आसन
रीढ को मेरूदण्ड तथा Spine भी कहा जाता है। यह हमारे शरीर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि शरीर पर मस्तिष्क का नियन्त्रण होता है। और यह नियन्त्रण रीढ, तथा इस से जुड़े नाड़ी तंत्र द्वारा किया जाता है। शरीर के सभी अंग इसी से नियंत्रित किए जाते हैं। इस मे विकार आने पर शरीर के अंग प्रभावित होते हैं। और इस कारण कई बार तो वे निष्क्रिय भी हो जाते है। शरीर के सभी अंगों की सक्रियता रीढ पर ही निर्भर है।
शरीर को स्वस्थ तथा अंगों को सक्रिय (एक्टिव) रखने के लिए स्पाइन की फिटनेस जरूरी है। योग आसन इसे लचीला (Flexible) बनाए रखते हैं तथा नाड़ी तंत्र को सक्रिय रखते हैं। अत: रीढ के लिए योग आसन Yoga for spine बहुत महत्वपूर्ण है।
रीढ (Spine) का क्या महत्व है?
"आधुनिक शरीर विज्ञान" तथा "योग" दोनो मे रीढ को महत्व दिया गया है। आधुनिक शरीर-विज्ञान के अनुसार यही शरीर का आधार है। तथा योगाभ्यास मे तो "सम्पूर्ण योग" ही इसी पर आधारित है। अत: योग मे रीढ के लिये योग आसन को महत्वपूर्ण बताया गया है।
रीढ का महत्व आधुनिक शरीर-विज्ञान में।
आधुनिक शरीर-विज्ञान मानता है कि Spine शरीर का एक महत्व पूर्ण अंग है। इसे मेरूदण्ड (Vertebral Column) या Backbone भी कहा गया है। यह हड्डियों का एक समुह है। इस समुह मे हड्डियों के 33 खण्ड हैं। ये आपस मे जुड़े हुए होते हैं। इसी के अन्दर एक मेरू नाल (Spinal canal) होती हैं। इस मेरू नाल मे मेरू रज्जू (Spinal cord) स्थित है। Spinal cord मस्तिष्क से जुड़ा होता है।
रीढ (मेरू दण्ड) मस्तिष्क के नीचे वाले भाग से आरम्भ होकर गुदा भाग तक जाता है। शरीर का तंत्रिका-तंत्र इसी से जुड़ा हुआ है। शरीर पर मस्तिष्क का नियंत्रण इसी तंत्रिका-तंत्र से किया जाता है। इस तंत्र मे जब भी कोई विकार आता है, तो इस से जुड़ा अंग प्रभावित होता है। कई बार तो वह प्रभावित अंग निष्क्रिय भी हो जाता है।
कई बार रीढ (Spine) के Vertebral मे सख्ती आ जाती है। इसको स्वस्थ व फिट रखने के लिए इसका Flexible होना जरूरी है। इस Flexibility के लिए आसन जरूरी हैं। आसन रीढ की सख्ती को खत्म करते हैं और इसे लचीला बनाते हैं।
रीढ का महत्व योग में। 'Spine' in Yoga.
योग के अनुसार सम्पूर्ण नाड़ी तंत्र तथा मस्तिष्क रीढ से जुड़ा हुआ है। प्राणिक नाड़ियों का जुङाव यही पर है। सभी 'सात-चक्रों' की स्थिति यही पर है। ये 'चक्र' शरीर में ऊर्जा का स्रोत हैं।
नाड़ी तंत्र :- हमारे शरीर मे 72000 (बहत्तर हजार) प्राणिक नाड़िया हैं। ये अति सूक्ष्म है। ये पूरे शरीर मे प्राणों का प्रवाह करती हैं। इन सबका जुङाव रीढ से है। इन मे तीन नाड़ियां मुख्य हैं :- ईडा, पिंगला तथा सुषुम्ना इन तीनों की स्थित यही पर ही हैं।
ईडा व पिंगला दोनो रीढ के दाएं बाएं तथा सुषुम्ना रीढ के बीचों-बीच स्थित है। इन तीनों का आरम्भ मूलाधार चक्र से होता है। यह चक्र रीढ के अन्तिम छोर पर है। ईडा रीढ के बाएं तथा पिंगला रीढ के दाएं से आरम्भ होती है। सुषुम्ना की स्थिति मध्य मे है।
रीढ पर सात चक्रों की स्थिति :- सात चक्रों की स्थिति इसी पर है। ये शरीर के ऊर्जा-केन्द्र हैं। ये सात चक्र हैं :-
- मूलाधार चक्र।
- स्वाधिष्ठान चक्र।
- मणिपुर चक्र।
- अनाहद चक्र।
- विशुद्धि चक्र।
- आज्ञा चक्र।
- सहस्रार चक्र।
रीढ (Spine) मे विकार के कारण।
- गलत तरीके से बैठना :- गलत ढंग से बैठना, रीढ मे विकार का कारण बनता है। कमर (Back Bone) को झुका कर बैठने से Spine पर गलत प्रभाव पड़ता है। बैठते समय कमर को सीधा रखना चाहिए। चेयर पर बैठते समय चेयर की 'बैक' सीधी रखनी चाहिए ।
- ड्राईविंग करते समय :- ड्राईविंग करते समय कमर (Back Bone) को झुका कर बैठना हानिकारक हो सकता है। विशेषत: दोपहिया वाहन (स्कूटर व मोटर-साईकिल) चलाते समय कमर को सीधा व तना हुआ रखें। दोपहिया वाहन चलाते समय कमर को झुका हुआ रखना और ढीला रखना हानिकारक होता है। ऐसा करने से झटका लगने पर रीढ को क्षति हो सकती है।
- गलत विधि से आसन करना :- आसन रीढ (Spine) के लिए लाभकारी होते हैं। लेकिन 'गलत विधि' से आसन करना हानिकारक हो सकता है। कठिन आसन करना, क्षमता से अधिक आसन करना, खाना खाने के बाद आसन करना तथा बलपूर्वक आसन आसन करना, ये सब हानिकारक होते है।
रीढ पर योग का प्रभाव।
योगाभ्यास में आसन, प्राणायाम तथा ध्यान तीनो महत्व पूर्ण क्रियाएं हैं। इन तीनो मे ही रीढ को महत्व दिया गया है। लेकिन योग आसन विशेष प्रभावी क्रिया हैं। आसन इस को लचीला बनाते है, और नाड़ी तंत्र को स्वस्थ रखते हैं। इसलिए Spine को फिट रखने के लिए नियमित योग करना चाहिए।
रीढ (Spine) के लिए नियमित आसन करने चाहिएं। लेकिन आसन सावधानी से करें। अपनी रीढ (Spine) की स्थिति के अनुसार ही आसन करें।
रीढ के आसनों मे सावधानियां
योगासन सावधानी से किए जाने चाहिए। असावधानी से किये गये आसन हानिकारक हो सकते हैं।
- यदि रीढ मे कोई विकार है तो चिकित्सक की सलाह से आसन करे।
- यदि कोई शाल्य क्रिया (सर्जरी) हुई है तो आसन नही करने चाहिएं।
- रीढ मे चोट लगने से तनाव है या क्षति (फ्रैक्चर) हुई है, तो आसन बिलकुल न करें। ऐसे मे चिकित्सा सहायता ले।
- सभी आसन अपने शरीर का क्षमता के अनुसार करें। क्षमता से अधिक आसन करना रीढ को हानिकारक होता हैै।
- आसन करते समय अपनी आयु का ध्यान रखें।वृद्ध व्यक्ति कठिन आसन न करे।
रीढ के आसन कैसे करें?
- समतल जगह पर दरी, चटाई या योगा-मैट बिछा कर आसन करें। ऊची-नीची जगह पर आसन नही करना चाहिए। समतल जगह पर ही आसन करें।
- आसन धीरे-धीरे आरम्भ करे और आसन की 'पूर्ण-स्थिति' मे पहुंच कर यथा शक्ति रुकें। कुछ देर रुकने के बाद धीरे-धीरे पूर्व-स्थिति मे वापिस आना चाहिए। तीव्र गति से आसन न करे।
- कोई भी आसन करते समय यदि आसन की पूर्ण स्थिति मे पहुंच ने मे परेशानी लगे तो अधिक बल प्रयोग न करें। यदि आप किसी आसन की पूर्ण-स्थिति तक नही पहुंच सकते है तो भी लाभ मिलेगा। जितना सरलता से आसन कर सकते है उतना ही करें।
- आसन करते समय जहां भी कष्ट अनुभव हो, तो वही पर रुक जाएं, वहां से आगे नहीं जाना चाहिए। तथा धीरे से वापिस आ जाएं। अपनी क्षमता से अधिक आसन न करें। आसन करते समय बल प्रयोग नही करना चाहिए।
- एक आसन करने के बाद उसका "विपरीत- आसन" अवश्य करें। अर्थात् यदि एक आसन में आगे झुकते हैं तो अगले आसन मे पीछे की तरफ भी झुकें। रीढ को दांई तरफ प्रभावित करते हैं तो उसे बांई तरफ भी प्रभावित करें।
- एक आसन करने के बाद दूसरे आसन मे जाने से पहले विश्राम करें। सभी आसन करनें के बाद शवासन अवश्य करें।
रीढ के लिए आसन। Yoga for spine.
रीढ के लिए आसन कोन से हैं? वैसे तो लगभग सभी आसन इस को प्रभावित करते हैं। लेकिन हम यहां उन आसनों का वर्णन करेगे जो विशेष प्रभाव डालते हैं। आसन करने से पहले रीढ के कुछ सुक्ष्म-व्यायाम करें।
सूक्ष्म आसन।
- सुक्ष्म आसन करने के लिए खड़े हो जाएं। दोनो पैर मिलाएं।
- दोनो हाथ ऊपर ले जा कर ऊपर की ओर खींचें। (ताड़ासन)
- ऊपर दोनो हाथो की उंगलियों से ग्रिप बनाये। दोनों मिले हुए हाथ सिर के साथ लगा कर रखें।
- मिले हुए हाथों को बांई तरफ झुकाएं। कुछ देर रुकने के बाद वापिस आएँ।
- दोनो हाथो को दांई ओर झुकाएं। कुछ देर रुकने के बाद वापिस आ जाएं। यह एक आवर्ती हुई। दो-तीन आवर्तियां करे।
- कुछ देर रुकने के बाद ऐड़ी-पंजे मिलाएं।
- दोनो हाथों को ऊपर ले जाएं। श्वास भरते हुए, हाथों को ऊपर की ओर खींचे।
- श्वास छोड़ते हुए आगे की ओर झुके। दोनो हाथ पैर के पंजों के पास ले जाएं। घुटने सीधे रखे।
- कुछ देर रुकने के बाद श्वास भरते हुए ऊपर उठें।
- हाथों को ऊपर की ओर खींचे।
- हाथो व गरदन को पीछे की ओर झुकाएं। रीढ को भी पीछे की तरफ सरलता से झुकाने का प्रयास करे।
- धीरे से वापिस आ जाएं। आसन पर पैर सीधे करके बैठ जाएं। दोनो हाथ पीछे टिका कर गरदन को पीछे ढीला छोड़ दें।
नाव आसन।
यह रीढ के लिए उत्तम आसन है। इस आसन को करते समय शरीर को ढीला न रखें। ऐड़ी पंजे तथा पूरे शरीर मे खिंचाव बना कर रखें।
विधि :-
- बैठ कर दोनों पैरों को सीधा करें। ऐड़ी-पंजे मिलाएं। रीढ को सीधा रखें। दोनों हाथ घुटनो पर रखें।आँखें कोमलता से बंध करें।
- दोनो हाथ घुटनों के पास रखते हुए मिले हुए पैरों को ऊपर उठाते हुए सिर की तरफ ले जाएं। और आगे की ओर आते हुए ऐड़ी नीचे टिकाएं।
- सरलता से पैरों को सिर की ओर अपनी क्षमता के अनुसार ले कर जाएं। पैरो को नीचे लेकर आने पर धीरे से नीचे टिकाएं।
- तीन-चार आवर्तियां करे या अपनी क्षमता के अनुसार करें।
- आसन के अंत मे पैरों को नीचे टिकाए। हाथ पीछे रखें गरदन को पीछे की तरफ ढीला छोड़ कर विश्राम करें।
उष्ट्रासन।
रीढ (Spine) के लिए यह एक महत्वपूर्ण योग आसन है। यह थोड़ा कठिन आसन है। लेकिन रीढ को सुदृढ करने वाला आसन है। यदि आप इस आसन को पहली बार कर रहे है तो सावधानी से करे। जितना सरलता से कर सकते है उतना ही करे। पूर्ण स्थिति तक जाने के लिए बल प्रयोग न करें।
विधि :-
- दोनों पैर मोड़ कर घुटनो के बल वज्रासन की स्थिति में बैठें।
- घुटनो का सहारा लेकर ऊपर उठें। घुटनों में सुविधा के अनुसार दूरी बनाये। पंजे घुटनों के समानान्तर रखे। पंजों को सीधा रखें।
- दोनो हाथ कमर पर ले आएँ। अंगूठे पीछे और उंगलियां आगे की ओर रखें।
- धीरे से गरदन को पीछे की ओर झुकाएं। (यदि यहां कोई परेशानी अनुभव हो, तो वापिस आ जाएं)।
- अंगूठों से पीठ पर दबाव बनाते हुए धीरे-धीरे रीढ को पीछे की झुकाये। (यदि परेशानी अनुभव हो, तो यहां से आगे न जाये। धीरे से वापिस आ जाएं।)
- पूरी तरह रीढ पीछे की ओर झुकने के बाद, बारी-बारी दोनो हाथ कमर से हटाएं। और दोनों हाथ ऐड़ियों पर ले आये। यह आसन की पूर्ण स्थिति है। यहां अपनी क्षमता के अनुसार रुके।
- यथा शक्ति रुकने के बाद वापस आना आरम्भ करें। दोनो हाथ बारी-बारी एड़ियों से हटा कर कमर पर ले आएँ। धीरे-धीरे रीढ को सीधा करे। और वज्रासन की स्थिति में बैठ जाएं। हाथ घुटनो पर तथा रीढ को सीधा रखें। कुछ देर विश्राम करे।
सावधानी :- यदि रीढ मे कोई परेशानी है तो यह आसन नही करना चाहिए। यदि आप पहली बार यह आसन कर रहे है तो पूर्ण स्थिति मे जाने का प्रयास न करें। सरलता से जितना कर सकते हैं उतना ही करें। आसन करते समय जहां पर भी कष्ट अनुभव होता है, वही से वापिस आ जाएं।
शशांक आसन।
विधि :-
- वज्रासन की स्थिति में बैठें। दोनो हाथ घुटनों पर और रीढ व गरदन को सीधा रखें।
- धीरे-धीरे दोनो हाथ ऊपर उठाएं। श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर खीचे।
- श्वास खाली करते हुए आगे की ओर झुकें। पहले हथेलियाँ, कोहनियाँ और माथा नीचे टिकाएँ। (यदि माथा नीचे तक नही पहुँचता हैं तो अधिक प्रयास न करें।)
- श्वास सामान्य करके कुछ देर रुकें।
- यथा शक्ति रुकने के बाद धीरे-धीरे ऊपर उठें।
- श्वास भरते हुए हाथो को ऊपर खींचे। श्वास खाली करते हुए हाथों को नीचे ले आएँ और हाथ घुटनों पर रखें।
भुजंग आसन।
भुजंग आसन रीढ के लिए प्रभावी योग आसन है। पेट के बल उल्टे लेट जाये। स्थिल आसन मे विश्राम करे। स्थिल आसन लिए दाँया हाथ-पैर को सीधा करे। गरदन को घुमा कर दाँया कान नीचे तथा बाँया कान ऊपर की ओर रखें। बाँया हाथ और पैर को मोङ कर रखे। श्वास सामान्य रखें।
भुजंग आसन की विधि :-
- भुजंग आसन के लिए पेट के बल आ जाएँ।
- माथा नीचे आसन पर लगाएँ। दोनो हाथ कोहनियो से मोङ कर, हथेलियो को गरदन के दाँये बाँये रखें।
- ऐङी व पँजे मिला कर रखें। पँजे सीधे रखें।
- गरदन को पीछे की तरफ मोङ कर सिर को ऊपर उठाए।
- सिर पूरी तरह ऊपर उठने के बाद सीना ऊपर उठाएं। हाथों पर दबाव कम से कम रखने का प्रयास करे। केवल रीढ के सहारे ऊपर उठने का प्रयास करें।
- स्थिति मे कुछ देर रुकने के बाद धीरे से वापिस आ जाएँ। पहले सीना नीचे टिकाएँ। उसके बाद माथा नीचे ले आएँ।
- बाँई ओर से स्थिल आसन मे आ जाएँ। और कुछ देर विश्राम करे।
सावधानी :- आसन क्षमता के अनुसार करें।
धनुरासन।
धनुरासन मे रीढ की स्थिति धनुषाकार हो जाती है। यह मेरुदण्ड की Flexibility बढाने वाला आसन है। अत: रीढ के लिये लाभदायी योग आसन है।
- पेट के बल आ जाएँ।
- दोनों पैर मोड़ कर पैर मध्य भाग के पास ले आये।
- दोनों हाथो से दोनो पैरो को पकड़े।
- श्वास भरते हुए आगे से सीना ऊपर उठाएँ।
- पीछे से मुड़ें हुए घुटनो को ऊपर उठाए।
- शरीर को आगे-पीछे से उठाते हुए मध्य भाग पर रुकें।
- स्थिति मे कुछ देर रुकने के बाद धीरे से वापिस आ जाएँ।
हलासन।
- पीठ के बल लेट जाये।
- हाथ दाँये-बाँये कमर के साथ, तथा हथेलियों की स्थिति नीचे की ओर रखें।
- दोनो पैर मिला कर रखें।
- घुटने सीधे रखते हुए दोनो पैर ऊपर उठाए।
- पैरो के समकोण (90 डिग्री) स्थिति पर आने के बाद रुके।
- हाथो पर दबाव डालते हुए दोनो पैर पीछे सिर की ओर ले जाए। घुटने सीधे रखें।
- स्थिति मे यथा शक्ति रुकें।
- कुछ देर रुकने के बाद धीरे-धीरे वापिस आ जाएँ।
- धीरे से पहले पीठ को नीचे टिकाएँ। पीठ नीचे टिकने के बाद घुटने सीधे रखते हुए धीरे-धीरे पैरो को नीचे लेकर आये।
- पैर नीचे आने के बाद दोनो पैरों के बीच गैप बना कर शरीर को ढीला छोङ दे। और विश्राम करें।
चक्रासन।
यह आसन हलासन का विपरीत आसन है। हलासन के बाद इस आसन को करना लाभकारी है। यह हलासन के लाभ को बढाता है। यह रीढ के लिये महत्वपूर्ण योगा आसन है।
विधि :-
- पीठ के बल लेटें। दोनो पैर मोङ कर ऐङिया मध्य भाग से लगाएँ।
- दोनो हाथ कोहनियों से मोङें। हथेलियो की दिशा कंधो की तरफ रखें।
- मध्य भाग व पीठ को ऊपर उठाएँ।
- पूरी तरह ऊपर उठने के बाद पैरो और हाथो से शरीर का बैलैंस बनाएँ।
- यथा शक्ति रुकने के बाद धीरे-धीरे वापिस आ जाएँ। और विश्राम करें।
अन्त में शवासन :- सभी आसनो के अन्त मे शवासन करें। पीठ के बल लेट जाये। शरीर को ढीला छोङ दें। श्वास सामान्य रखें। आये हुए तनाव को दूर करें। यह विश्राम की स्थिति है।
- अर्धमत्स्येन्द्र आसन।
- सर्वांग आसन।
- मर्कटासन।
- पवनमुक्त आसन।
सारांश :-
यह लेख किसी प्रकार के 'रोग उपचार' का दावा नही करता है। हमारा उद्देश्य केवल योग से मिलने वाले लाभ के बारे मे बताना है। लेख मे बताये गये आसन केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिए हैं। अस्वस्थ होने पर योग आसन न करें। चिकित्सक से सलाह लें।