योग और धर्म Yoga and religion में क्या सम्बंध है? क्या योग किसी एक धर्म विशेष के लिए है? क्या योग का किसी धर्म से विरोध है? इन सब को जानने से पहले हमे यह जानना होगा कि योग क्या है? और धर्म क्या है? योग और धर्म का सम्बंध क्या है?
आज के समय मे 'योग' सार्वभौमिक (Global) हो गया है। पूरा विश्व इसे "आध्यात्म" व "स्वास्थ्य" दोनो के लिये अपना रहा है। 11 दिसम्बर 2014 को UN भी योग को मान्यता दे चुका है। पूरा विश्व 21 जून को योग दिवस मनाता है। आगामी 21 जून 2023 को 9वाँ योग दिवस मनाया जायेगा।
देखें :- अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस का उद्देश्य।
योग और धर्म क्या है? Yoga and religion.
कुछ लोगो को यह गलतफहमी है कि योग केवल "एक धर्म विशेष" के लिए है। उन लोगों को यह आशंका रहती है कि योग करने से उनकी धार्मिक आस्था प्रभावित हो जायेगी। इस लेख में हम उनकी यह आशंका दूर करने का प्रयास करेगें। हम यह बताने का प्रयास करेगे कि योग और धर्म का क्या सम्बंध है?
- धर्म व योग की परिभाषा।
- योग क्या है?
- योग का उद्देश्य।
- क्या योग सब कर सकते है ?
"धर्म" व "योग" की परिभाषा।
आईये पहले जानते है कि धर्म क्या है? धर्म का शाब्दिक अर्थ है "Religion"या "मजहब"। हिन्दू (सनातन) संस्कृति मे इसका व्यपक अर्थ होता है। इस की चर्चा हम इस लेख मे आगे करेगें। पहले देखते है कि धर्म की परिभाषा क्या है?
धर्म की परिभाषा।
हिन्दू (सनातन) धर्म मे 'धर्म' की परिभाषा दी है-- "धार्यति इति धर्म:" इसका अर्थ है कि जो धारण (स्वीकार) करने योग्य धारणा (वस्तु) है, वही धर्म है। दूसरे शब्दों में इस का अर्थ है कि आप जिस सिद्धांत को अपनाना चाहते हैं वही धर्म है। जिस मान्यता को आप मानते हैं वह धर्म है।
धर्म का व्यापक अर्थ।
सनातन(हिन्दू) संस्कृति मे धर्म का मतलब 'Religion' या 'मजहब' नही होता। इस संस्कृति के अनुसार धर्म का मतलब होता है 'कर्तव्य'(Duty)। जैसे कि 'पुत्र-धर्म' माता-पिता के लिए पुत्र की Duty। पति धर्म-- एक पति का अपनी पत्नी के लिए कर्तव्य(Duty) इसी प्रकार सरकार (राजा) की Duty को 'राजधर्म' कहा गया है।
मानव धर्म।
कर्म करना भी हमारा धर्म है। सांसारिक कर्तव्यों को करना हमारा धर्म है। गीता मे श्रीकृष्णजी ने कर्मयोग के बारे में बताया है। गीता के अनुसार कर्म को पूरा करना मानव धर्म है।
योग क्या है? What is Yoga?
योग क्या है? योग कोई पूजा पद्यति (पूजा करने का ढंग) नही है। योग कोई अँधविश्वास नहीं है। योग 'विज्ञान-सम्मत' क्रिया है। यह एक 'शरीर-विज्ञान' है, जो भारत मे आदि काल से चलता आ रहा है। योग एक ऐसी क्रिया है जिस से शरीर को स्वस्थ व निरोग रखा जा सकता है।
योग सरल है, सुलभ है तथा सभी के लिये है। बच्चे, युवा वृद्ध, स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं। योग के लिये कोई धार्मिक भेद नही है। योग वैश्विक (पूरे विश्व का) है। यह शरीर को स्वस्थ रखने की उत्तम विधि है। चाहे आप किसी भी धर्म या मजहब को मानते हैं, आप स्वास्थ्य के लिये योग कर सकते हैं।
योग की उत्पत्ती।
'योग' भारत की विश्व को एक अनमोल देन है। भारत मे योग प्रचीन काल से चला आ रहा है। योग कब आरम्भ हुआ यह निश्चित करना कठिन है। योग प्राचीन है तथा सनातन है। आदि योगी शिवजी को माना गया है। धार्मिक ग्रंथों मे योग का उल्लेख मिलता है।
आरम्भ मे योग केवल भारत मे आश्रमो व गुरुकुलो तक सीमित था। बाद मे यह आम प्रचलन मे आया। आम जन तक पहुचाने का काम कई ऋषियो ने किया। इन मे महर्षि पतंजलि का योगदान महत्वपूर्ण है। आज पूरा विश्व योग से परिचित है।
ऋषि-मुनियों का श्रेय।
जो योग का ज्ञान अनेक धार्मिक ग्रंथो मे था उस को ऋषि-मुनियों ने एकत्रित किया। योग को परिभाषित करने तथा सरल रूप में आम जन-मानष तक पहुचाने का श्रेय ऋषि-मुनियों को जाता है।
इस मे महर्षि पतंजलि का विशेष योगदान रहा है। "अष्टाँगयोग" उन्ही की देन है। महर्षि पतँजलि द्वारा लिखे गये पतँजलि योगसूत्र को आज योग का आधार माना जाता है।
योग का उद्देश्य।
इसका अर्थ है कि दुनियाँ के सभी लोग (सभी धर्मो के) सुखी रहें। सभी स्वस्थ रहें। किसी धर्म को प्रचारित करना या किसी धर्म का विरोध करना योग का उद्देश्य बिलकुल नही है।
स्वास्थ्य ही योग का एकमात्र उद्देश्य है। योग किसी भी धर्म की भावनाओ का विरोध नही करता। योग केवल उस "परम शक्ति" से अपने आप को जोङने के लिये कहता है जिसे आप और हम सब मानते है।
क्या योग किसी धर्म को आहत करता है?
आज पूरा विश्व योग को अपना रहा है। भारत के कई योग गुरुओ ने विश्व को योग की शिक्षा दी है। प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयासो से योग को UNO से मान्यता मिली है। प्रत्येक 21जून को योग दिवस मनाया जाता है।
कुछ धर्म के लोगो को यह आशंका रहती है कि योग केवल हिन्दू धर्म के लिए है। उनके मन में यह आशंका भी रहती है कि योग से उनकी धार्मिक मान्यताएँ आहत हो जाएगी। इसी डर के कारण वे योग नही करते है। लेकिन ऐसा सोचना उचित नही है। योग किसी की धार्मिक भावनाओ को आहत नही करता है।
क्या सभी धर्मो के लोग योग कर सकते है?
यह सही है कि योग की क्रिया आध्यात्म के लिए की जाती है। लेकिन योग कही भी किसी की धार्मिक मान्यता को बदलने का प्रयास नही करता। आप चाहे किसी धर्म को मानते है, आप निसंकोच योग कर सकते है। आप योग को एक शारीरिक व्यायाम या एक्सरसाइज के रूप मे कर सकते है।
योगसाधना के लिए पहले आसन व प्राणायाम इस लिए किये जाते है ताकि शरीर स्वस्थ रहे।
आप चाहे निराकार साधना करते है, ईश्वर की पूजा करते है, खुदा की इबादत करते हैं, वाहेगुरु की अरदास करते हैं या गोड की प्रेयर करते है, यदि आपका शरीर स्वस्थ होगा तभी आप ऐसा कर पायेगे। योग शरीर को स्वस्थ रखने की क्रिया है।
सरल शब्दो मे यह कहा जा सकता है कि साधना, इबादत या प्रेयर से पहले हमे अपने शरीर को स्वस्थ और फिट रखना जरूरी है।
योग किसी धर्म का न तो प्रचार करता है, ना ही किसी धर्म का विरोध करता है। यह कोई पूजा पद्यति नही है। ना ही योग कोई अंधविश्वास है। यह एक विज्ञान सम्मत क्रिया है। एक आध्यात्मिक क्रिया तो है लेकिन यह किसी अन्य धर्म की मान्यता के विरुद्ध नही है। योग सब के लिए है। योग का उद्देश्य शारीरिक स्वास्थ्य है। सभी धर्मो को मानने वाले योग कर सकते है।