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'प्राणायाम' योग की एक उत्तम क्रिया है। इसके नियमित अभ्यास से श्वसन तंत्र सुदृढ होता है, Lungs एक्टिव रहते हैं तथा हृदय को मजबूती मिलती है। प्रस्तुत लेख, Pranayam for Lungs में एक विशेष प्राणायाम के बारे मे बताया जायेगा। यह है फेफङों के लिये उत्तम प्राणायाम, अभ्यान्तर आक्षेपी। इस प्राणायाम को करने की विधि, लाभ व सावधानियाँ क्या हैं? इस लेख मे इसका वर्णन किया जायेगा।

विषय सूची :-
  1. अभ्यान्तर आक्षेपी क्या है? 
  2. श्वास की तीन अवस्थाएँ।
  3. अभ्यान्तर आक्षेपी प्राणायाम कैसे करें?
  4. अभ्यान्तर  आक्षेपी प्राणायाम के लाभ।
  5. प्राणायाम का सावधानियाँ।

अभ्यान्तर आक्षेपी प्राणायाम

अभ्यान्तर आक्षेपी क्या है? लाभ व सावधानियाँ।

साधारणतया हम जो श्वास लेते और छोङते है वे बहुत छोटे-छोटे होते है। छोटे श्वास लेने के कारण हमारे लंग्स शिथित हो जाते है। और हमारा श्वसनतंत्र भी कमजोर पङ जाता है। कमजोर श्वसन तंत्र 'अस्थमा' तथा 'हृदय रोग' का कारण बनता है। प्राणायाम से लंग्स की स्थिलता दूर होती है और यह श्वसन तंत्र को मजबूती देता है।

प्राणायाम मे 'श्वास लेने' और 'श्वास छोङने' की सही विधि के बारे में बताया जाता है। प्राणायाम के अभ्यास 'श्वास' पर विशेष ध्यान दिया जाता है। श्वास लेते समय लम्बा और गहरा श्वास भरना चहाए। श्वास छोङते समय पूरा श्वास खाली कर देना चहाए। "लम्बे गहरे" श्वास हमारी प्राण शक्ति की वृद्धि करते है।

अभ्यान्तर आक्षेपी प्राणायाम हमारे श्वासो को लम्बा और गहरा करने मे सहायक होता है। इस के और भी कई लाभ है इसके बारे मे आगे बतायेगे। यह प्राणायाम कैसे किया जाता है, यह जानने से पहले 'श्वास' के बारे मे जानना जरूरी है। श्वास क्या हैं? और प्राणायाम मे श्वास की कितनी अवस्थाएँ हैं?

प्राणायाम मे श्वास की तीन अवस्थाएँ हैं :--

  • पूरक :-- श्वास लेना।
  • रेचक :- श्वास छोङना।
  • कुम्भक--श्वास रोकना। (कुम्भक दो प्रकार के है :--- 1. श्वास अन्दर रोकना। 2. श्वास को बाहर रोकना।)

प्राणायाम की प्रत्येक क्रिया मे हमे श्वास की तीनो आवस्थाओ को ध्यान मे रखना चहाए। कुम्भक के साथ बन्धों का भी प्रयोग करें। (देखे--बन्ध व कुम्भक)

अभ्यान्तर आक्षेपी प्राणायाम की विधि।

इस प्राणायाम को दो चरणों मे करें। पहले चरण में बाँयी तथा दाँयी नासिकाओ से बारी-बारी रुक-रुक कर श्वास का "पूरक" व "रेचक" करना होता है। 

दूसरे चरण मे दोनो नासिकाओं से विराम देते हुये श्वास का पूरक, तथा विराम देते हुये रेचक करना है।

(यदि इस प्राणायाम को एक चरण मे करना है तो केवल दूसरा चरण ही करें।)

प्राणायाम का पहला चरण।

  • इस प्राणायाम को करने के लिये पद्मासन या सुखासन मे बैठना उत्तम है। यदि नीेचे बैठने मे परेशानी है तो कुर्सी पर बैठे।
  • बाँया हाथ बाँये घुटने पर ज्ञानमुद्रा मे रखे। (ज्ञानमुद्रा--पहली उँगली और अँगूठे की पोर मिलाएँ। तीन उँगलियाँ  सीधी रखें)
  • रीढ व गरदन को सीधा रखें। आँखे कोमलता से बन्ध करे। दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनाएँ।
(प्राणायाम मुद्रा :- दाँये अँगूठे के साथ वाली दो उँगलियाँ मोङ लें। दो उँगलियाँ सीधी रखें।)

  • दाँये हाथ को नाक के पास इस प्रकार रखे कि अँगूठा नसिका के दाँयी तरफ और तीसरी उगँली नासिका के बाँयी तरफ रहे।
  • लम्बा-गहरा श्वास भरें। श्वास पूरी तरह भरने के के बाद श्वास बाहर छोङें। अँगूठे से दाँयी नासिका बन्द करे।
  • बाँयी नासिका से थोङा सा (एक तिहाई) श्वास भरें और रुकें। फिर थोङा सा (एक तिहाई) श्वास भरें और रुकें। फिर पूरा श्वास भरे, और बाँयी नासिका को भी बंध करें। अपनी क्षमता के अनुसार भरे श्वास मे रुकें। (यह आन्तरिक कुम्भक है)
  • आन्तरिक कुम्भक मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद दाँयी तरफ से थोङा सा (एक तिहाई) श्वास छोङे और रुकें। फिर थोङा सा (तिहाई) श्वास छोङे और रुकें। तीसरे क्रम मे पूरा श्वास खाली करे और कुछ देर खाली श्वास मे रुकें। (यह बाह्य कुम्भक है)
  • इसी प्रकार दाँँयी तरफ से दो बार रुकते हुए तीसरी बार पूरा श्वास भरें और आन्तरिक कुम्भक मे कुछ देर रुकें।
  • भरे श्वास मे क्षमता अनुसार रुकने के बाद बाँयी तरफ से दो ठहराव देते हुए तीसरी बार मे पूरा श्वास रेचक करें।  और बाह्य कुम्भक लगाएँ।
  • यह एक आवर्ती हुई। आरम्भ मे केवल एक ही आवर्ती करे। दाँया हाथ नीचे लेआये। श्वासों को सामान्य करे। श्वास सामान्य होने के बाद दूसरा चरण करें।

विधि, सरल शब्दों मे।

इस प्राणायाम मे पहले बाँयी नासिका से तीन बार मे रुकते हुए श्वास का पूरक करना है। भरे श्वास मे आंतरिक कुम्भक लगाना है। दाँयी तरफ से तीन विराम देते हुये श्वास का रेचक करना है और बाह्य कुम्भक  लगाना है।इसी प्रकार दाँयी तरफ से यही क्रिया दोहराएँ।

(सावधानी :-- यदि आप इस प्राणायाम को पहली बार कर रहे हैं, तो इसे कुछ दिनों तक बिना कुम्भक ही करें।)

प्राणायाम का दूसरा चरण।

इस विधि मे दोनो नासिकाओ से रुकते हुए श्वास का पूरक करना है। और रुकते हुए श्वास का रेचक करना है। "भरे श्वास" तथा "खाली श्वास" मे क्षमता के अनुसार कुम्भक मे ठहरना है।

  • श्वास सामान्य होने के बाद दूसरा चरण आरम्भ करें। दोनो हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा मे रखें। रीढ व गरदन को सीधा रखें। आँखे कोमलता से बंध करें।

  • दोनो नासिकाओं से थोङा सा (एक तिहाई) श्वास भरें और रुकें। फिर थोङा सा (एक तिहाई) श्वास भरें और रुके। तीसरी बार मे पूरा श्वास भरें, और भरे श्वास मे यथा शक्ति आन्तरिक कुम्भक में रुकें। मूल बंधजालंधर बंध लगाएँ।

मूल बंध :- गुदा (Anus) और जननेन्द्रिय पर दबाव बना कर ऊपर की ओर खींचना।
जालंधर बंध :- गरदन आगे की तरफ झुका कर ठोडी को कण्ठ से लगाना।

  • यथा शक्ति आन्तरिक कुम्भक मे रुकने के बाद गरदन को सीधा करें। भरे हुये श्वास को थोङा सा (एक तिहाई)  खाली करें, और रुकें। फिर थोङा श्वास छोङे (एक तिहाई), और रुकें। तीसरी बार मे पूरा श्वास खाली कर दें और खाली श्वास मे त्रिबन्ध लगाते हुए यथा शक्ति रुके (बाह्य कुम्भक मे)।
त्रिबंध :- तीनो बंध एक साथ लगाने को त्रिबंध कहा गया है। 1. मूल बंध :- दोनो अंगो का ऊपर की ओर संकोचन। 2. जालँधर बंध :- ठोडी को कण्ठ से लगाना। 3. उड्डियन बंध :-  पेट को पीछे की ओर खींचना।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। आरम्भ मे एक या दो आवर्तियाँ करें। धीरे धीरे अभ्यास को बढाएँ।

विधि सरल शब्दो मे।

इस विधि मे दोनो नासिकाओ से तीन बार मे रुकते हुए श्वास को भरते है। भरे श्वास मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकते है। तीन बार रुकते हुए श्वास को खाली करते है। खाली श्वास मे अपनी क्षमता के अनुसार त्रिबन्ध मे रुकते है।

(यदि आप यह प्राणायाम पहली बार कर रहे हैं। या योग के नये अभ्यासी हैं, तो कुम्भक का प्रयोग न करें।)

अभ्यान्तर आक्षेपी प्राणायाम के लाभ। Health benefits.

यह एक लाभकारी प्राणायाम है। नियमित अभ्यासी तथा श्वासो की उत्तम स्थिति वाले व्यक्तियों को यह प्राणायाम अवश्य करना चहाये।

  • इस प्राणायाम से श्वसन शक्ति मजबूत होती है। यह Lungs के अवरोधों को दूर करता है। यह फेफङों के लिये उत्तम प्राणायाम है। 
  • श्वास 'लम्बे व गहरे' होने के कारण आक्सीजन पर्याप्त मात्रा मे मिलती है। हृदय को मजबूती  मिलती है। 'आक्सिजन लेवल' सही मात्रा मे बना रहता है।
  • प्राणिक नाङियो का शोधन होता है। प्राणिक नाङियों के अवरोध दूर होते हैं। प्राण शक्ति (Prana Energy) की वृद्धि होती है।

  • 'प्राण शक्ति' ऊर्ध्वगामी (नीचे से ऊपर की ओर विचरण करने वाली होती है।)

  • इस के नियमत अभ्यास से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) की वृद्धी होतीौहै।

  • यह BP को सामान्य रखता है।

अभ्यान्तर आक्षेपी मे सावधानियाँ।

यह एक लाभकारी प्राणायाम है। लेकिन इसे सावधानी से किया जाना चहाये। यह प्राणायाम केवल नियमित अभ्यासियों के लिये है। नये व्यक्ति (Beginners) इस प्राणायाम को सावधानी से करें।

  • इस प्राणायाम को अस्थमा रोगी व हृदय रोगी बिलकुल न करे। ऐसे व्यकतियो के लिये यह हानिकारक हो सकता है। वे केवल अनुलोम विलोम करे।
  • नये व्यक्ति प्रशिक्षक की सलाह से करे। आरम्भ मे कुम्भक न लगाएँ। कुछ समय तक इस अभ्यास को बिना कुम्भक के ही करें। धीरे धीरे कुम्भक लगाएँ।
  • इस प्राणायाम को अपनी क्षमता के अनुसार करे। क्षमता से अधिक कुम्भक न लगाएँ।
  • यदि आपके श्वासो की स्थिती ठीक नही है, तो यह प्रणायाम न करे।
  • यदि आप इस प्राणायाम में तीन विराम देने मे असमर्थ है तो कम कर सकते है। अभ्यास को धीरे-धीरे बढाये।
  • श्वासो के साथ बल प्रयोग न करे। सरलता से जितना कर सकते है, उतना ही करे। सरलता से करना लाभदायी होता है और बलपूर्वक करना हानिकारक हो सकता है।

  • इस प्राणायाम को केवल नियमित अभ्यासी ही करें।

सारांश :-

यह एक लाभकारी प्राणायाम है। नियमित प्राणायाम करने वाले इस प्राणायाम को अवश्य करे। नये व्यक्ति इसे सावधानी से करे। "श्वास रोगी" तथा "हृदय रोगी" इस क्रिया को बिलकुल न करें।

 (यदि आसन प्राणायाम के विषय मे आप का कोई सुझाव या प्रश्न है तो अवश्य सम्पर्क करे)

Disclaimer :- यह प्राणायाम केवल नियमित साधको के लिये है। नये साधक किसी प्रशिक्षक के निर्देशन मे करें। लेख मे बताये गये नियम व सावधानियों को ध्यान मे रखें। यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार का दावा नही करता है। प्राणायाम की जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है।

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