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उत्तम स्वास्थ्य के लिए स्वस्थ पाचन तंत्र का होना जरूरी है। यह शरीर को स्वस्थ रखने मे सहायक होता है। उत्तम पाचन-क्रिया के लिए आंतों का स्वच्छ और सुदृढ होना आवश्यक है। नियमित योग का अभ्यास कब्ज से राहत देता है और Digestive system को मजबूत करता है। इसके लिए योग में कुछ विशेष क्रियाएं बताई गई हैं। प्रस्तुत लेख में इन क्रियाओं और आसनों के बारे में विस्तार से बताया जायेगा।

विषय सुची :

  • पाचन तंत्र के लिए योग-क्रियाएं
  1. कुंजल क्रिया
  2. अग्निसार क्रिया
  • पाचन तंत्र के लिए 'योग-आसन'
  1. मर्कटासन 
  2. पादोत्तान आसन
  3. पवनमुक्त आसन


पाचन तंत्र (Digestive System) के लिए योग

पाचन क्रिया को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित आहार लें और नियमित योगाभ्यास करें। इस के लिए योग एक उत्तम विधि है। योग मे कई "आसन" व "क्रियाएं" बताई गई हैं। इन योग क्रिया और आसनों से पाचन शक्ति को सुदृढ किया जा सकता है। आइए इन योग-क्रियाओं और योग-आसनों के बारे में समझ लेते हैं।

पाचन तंत्र के लिए "योग-क्रिया"| "Yog-Kriya" for Digestive System.

योग मे कुछ लाभकारी योग-क्रिया बताई गई हैं।ये पाचन शक्ति को बढाने वाली क्रियाएं हैं। इन को नियमपूर्वक तथा बताई गई विधि के अनुसार करना चाहिए।

1. कुंजल क्रिया। Kunjal Kriya.

यह शरीर की  "शुद्धि क्रियाओं"  मे किए जाने वाली एक उत्तम 'योग-क्रिया' है। खाना खाने के बाद कभी-कभी अतिरिक्त अम्ल व पित्त आहार नली मे आ जाते है। इस कारण एसिडिटी, गले मे जलन व खट्टी डकार की परेशानी होने लगती है। इस अतिरिक्त अम्ल (Acid) तथा  विषाक्त तत्वों को 'कुंजल क्रिया' के द्वारा बाहर निकाला जा सकता है।

कुंजल क्रिया की विधि :-  यह बहुत सरलता से किये जाने वाली क्रिया है।

• यह क्रिया सुबह खाली पेट से करें। खाना खाने के बाद इसे न करें।

• एक पात्र (बर्तन) मे ताजा पानी लें। काग आसन (उकड़ू घुटने मोड़ कर) मुद्रा मे बैठ जायें। बांया हाथ पेट पर रखें। दांए हाथ मे पानी का पात्र पकड़ें।

• जितना पानी पीया जा सकता है उतना पानी पी लें। पात्र को नीचे रख दें।

• उठ कर खड़े हो जाएं। थोड़ा आगे की ओर झुकें। बांया हाथ पेट पर ही रखें। दांये हाथ की दो उंगलियो से जीभ के पिछले भाग को टच करें। पीये गये पानी को वमन (उल्टी) के द्वारा बाहर निकाल दे। प्रयास करें कि पीया गया सारा पानी बाहर आ जाये।

• पानी के साथ सभी विषाक्त तत्व बाहर आ जाते है।क्रिया करने के बाद साफ पानी से कुल्ला करें।

कुंजल क्रिया की सावधानियां :

1. यह एक सरल क्रिया है लेकिन इसको सावधानी के साथ करना चाहिए।
2. यह क्रिया महिने मे एक बार या दो बार ही करें। इसे रोज न करें।
3. यदि गले या आंत का कोई रोग है तो यह क्रिया चिकित्सक की सलाह से करें।
4. इस क्रिया को खाना खाने के बाद न करें। इसे सुबह के समय खाली पेट से ही करें।

कुंजल क्रिया का प्रभाव :-

  • भोजन नली मे आए  हुए अतिरिक्त अम्ल (Acid) व पित्त इस क्रिया से बाहर आ जाते हैं। 
  • अन्य विषाक्त पदार्थ भी पानी के साथ बाहर आ जाते है।
  • कण्ठ से लेकर आमास्य तक का शुद्धिकरण होता है। 
  • एसिडिटी के कारण जलन, खट्टी डकार आने जैसी पीड़ा से राहत मिलती है। 

2. अग्निसार क्रिया  Agnisar Kriya

पाचन तंत्र को बढाने वाली यह महत्वपूर्ण 'योग-क्रिया' है। इस क्रिया को पद्मासन या सुखासन मे बैठ कर किया जाना उत्तम है। इस क्रिया से आंतें व अन्य अंग प्रभावित होते हैं। जठराग्नि विशेष प्रभावित होती है।

अग्निसार क्रिया की विधि :-

  • पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठें।
  • दोनों हाथ घुटनों पर रखें। आँखें कोमलता से बंध करें।
  • रीढ व गर्दन को सीधा रखें।
  • लम्बा-गहरा श्वास भरें।
  • पूरी तरह श्वास भरने के बाद श्वास को खाली करें।
  • पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद पेट को पीछे की ओर खींचें। और ढीला छोड़ें। इसी प्रकार खाली श्वास मे पेट को आगे पीछे करते रहें।
  • श्वास मे घुटन अनुभव होने लगे तो श्वास का पूरक करे और फिर श्वास खाली करके दूसरी आवर्ती करें।
  • क्रिया को क्षमता के अनुसार करें।
खाली श्वास मे पेट को बार-बार पीछे की ओर खींचना व ढीला छोड़ना अग्निसार क्रिया है। इस क्रिया मे मूलबंधजालंधर बंध लगाना उत्तम है।

मूलबंध क्या है :- मल द्वार पर दबाव बना कर ऊपर की और खींच कर ठहरना, मूलबंध कहा गया है। 

(देेखें :- मूलबंध कैसे लगाएँ?)

जालंधर बंध क्या है :-  गरदन को थोड़ा आगे झुका कर ठोढी को कण्ठ के साथ लगाने की क्रिया को जालंधर बंध कहा गया है।


अग्निसार क्रिया की सावधानियां :

  • यह श्वास को बाहर रोक कर (रेचक स्थिति में) किये जाने वाली क्रिया है। इस लिये अपने श्वास रोकने की क्षमता का ध्यान रखें।
  • यदि श्वांसों की स्थिति ठीक नहीं है। श्वास रोग है या हृदय रोग है तो यह क्रिया न करें।
  • यदि आँत सम्बंधी कोई पीड़ा है या पेट की सर्जरी हुई है, तो इसे न करें।
  • गर्भवती महिलाओं के लिये यह क्रिया वर्जित है।
अधिक जानकारी के लिए देखें :- अग्निसार क्रिया क्या है?

पाचन तंत्र के लिए 'योग-आसन'। 'Yog-Asana' for Digestive System.

पाचन तंत्र के लिए योग मे कई आसन बताए ग‌ए हैं। ये सभी आसन आँतों को मजबूती देते हैं और पाचन-क्रिया को सुदृढ करते हैं। इन आसनों मे ये तीन प्रभावकारी आसन हैं। पाचन क्रिया को स्वस्थ रखने के लिए ये तीन आसन अवश्य करें।

1. मर्कटासन 

यह आँतों के लिये उत्तम आसन है। यह आसन आँतों मे जमा हुआ मल को निकालने मे सहायक होता है। इस  को नियमित करने से कब्ज (Constipation) मे राहत मिलती है। 

आसन की विधि :- 

  • बिछे हुए आसन (सीट) पर सीधे पीठ के बल लेट जाएं।
  • दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ें।
  • दोनों एड़ियां मध्य भाग (नितम्ब) से लगाएं।
  • घुटने, एड़ी व पँजे मिला कर रखें।
  • दोनो हाथों को दांए-बांए फैला दें।
  • दोनों हाथों को कंधों से सीधे रखें। हथेलियों का रुख ऊपर की ओर रखें। हाथों मे खिंचाव बनाये रखें।
  • श्वास भरें। भरे हुए श्वास मे दोनो घुटने दांई ओर नीचे टिकाएं। एड़ियां मध्य भाग से लगी रहें। गरदन को बांई ओर मोड़ें। हाथों को खींच कर रखें। अपनी क्षमता के अनुसार भरे श्वास में रुकें।
  • यथा शक्ति रुकने के बाद, श्वास खाली करते हुए वापिस आ जाएं। घुटने व गरदन को पहले वाली स्थिति मे ले आएं।
  • फिर श्वास भरें। भरे हुए श्वास में घुटने बांई तरफ और गरदन दांई तरफ मोड़े। हाथों को खींच कर रखें। भरे हुये श्वास मे रुकें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद श्वास खाली करते हुये वापिस आ जाएँ।
  • यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार तीन-चार या क्षमता के अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें।
  • आसन के अंत में हाथों को शरीर के साथ ले आँये। हथेलियों का रुख नीचे की ओर रखें।
  • दोनो पैरो को सीधा करते हुये थोड़ा ऊपर रखें।और धीरे-धीरे दोनो पैर नीचे ले आएँ।
  • नीचे आने के बाद दोनो पैरो के बीच थोड़ी दूरी बनाएँ।
  • श्वास सामान्य करके विश्राम करें।
आसन की सावधानियाँ :-

  • श्वास को अपनी क्षमता के अनुसार रोकें। यदि स्थिति मे अधिक रुकना है तो श्वास सामान्य रखते हुए रुकें।
  • आसन सरलता से करें। बलपूर्वक न करें
  • पैरो को धीरे धीरे नीचे ले कर आएं।
आसन का प्रभाव :-

इस आसन से आँते प्रभाव मे आती हैं। आँत मे जमा हुआ मल निष्कासित होता है। कब्ज से राहत मिलती है।

2. पादोत्तान आसन

पादोत्तान आसन पीठ के बल लेट कर किया जाने वाला उत्तम आसन है। यह आँतों को मजबूती देने वाला आसन है। इस आसन से आँते प्रभावित होती हैं। यह पाचन तंत्र को सुदृढ करता है।

आसन की विधि :-

  • बिछे हुए आसन (सीट) पर पीठ के बल लेटें।
  • दोनों पैरों को एक साथ मिला कर रखें।
  • दोनो हाथों को ऊपर सिर की ओर ले जाएं। श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर व पैरो को नीचे की ओर खींचे (ताड़ासन)। 
  • वापिस आये। श्वास सामान्य करें। हाथों को वहीं पर रखें।
  • फिर श्वास भरें। भरे हुए श्वास में घुटने सीधे रखते हुए दोनो पैर थोड़ा सा ऊपर उठाएँ (लगभग 3-4 इंच)। पँजो को सीधा रखे।
  • बाँये पैर को वही पर रखे (जमीन से 3-4 इंच ऊपर)। दाँये पैर को धुटना सीधा रखते हुए थोड़ा और ऊपर उठाएँ (लगभग दो फुट ऊपर)। दाँये पैर के साथ बाँया हाथ भी ऊपर उठाये। स्थिति मे यथा शक्ति रुकें।
  • क्षमता के अनुसार रुकने के बाद धीरे से हाथ व पैर नीचे ले आयें।
  • कुछ सैकेंड विश्राम करे और आये हुये तनाव को दूर करें।
  • स्थिति सामान्य होने के बाद यही क्रिया बाँये पैर व दाँये हाथ से करें। इसके लिये फिर से श्वास भरें। दोनो मिले हुये पैर 3-4 इंच ऊपर उठा कर रुकें। बाँया पैर व दाँया हाथ ऊपर उठाये। स्थिति मे कुछ देर रुकें।
  • यथा शक्ति रुकने के बाद धीरे से हाथ व पैर नीचे टिकाये।
  • आसन से आये हुये तनाव को दूर करने के लिये कुछ सैकिंड का विश्राम करें।
  • स्थिति सामान्य होने के बाद दोनो मिले हुए पैर और दोनो हाथ ऊपर उठाये। पैर के लगभग दो या तीन फिट ऊपर उठने के बाद रुक जाएँ। घुटने सीधे, पँजे खिंचे हुये रखें।
  • अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद धीरे-धीरे पैरों को नीचे लेकर आँये। पैरो को धीरे-धीरे नीचे टिकाये। पैरों को एकदम न जोर से न गिराएँ।
  • दोनो पैरों मे थोड़ी दूरी बनाये। शरीर को ढीला छोड़ कर विश्राम करें।
आसन की सावधानियाँ :-

  • यह तनाव वाला आसन है। अत: आसन की एक क्रिया करने के बाद तनाव को दूर करने के लिये कुछ सैकिंड का विराम जरूरी है।
  • इस आसन मे पैरो को ऊपर ले जाते समय घुटने सीधे रखें।
  • पैरों को नीचे लेकर आते समय धीरे से नीचे टिकाएँ। पैरो को तेजी से न पटकें।
  • आसन को अपनी क्षमता के अनुसार ही करें।
  • आँत के रोगी इस आसन को न करें।
  • यदि पेट की सर्जरी हुई है तो यह आसन नही करना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाये इस आसन को न करे।

आसन का प्रभाव :-

यह आसन आँतों को प्रभावित करने वाला उत्तम आसन है। इस को नियमित करने से आँत सुदृढ होती हैं। 

इस आसन को करने के बाद पवनमुक्त आसन अवश्य करना चाहिए।

3. पवनमुक्त आसन

पाचन तंत्र को बढाने वाला आसन है। यह दुषित वायु को निष्कासित करने वाला आसन है। पादोत्तान आसन के बाद इस आसन को अवश्य करना चाहिए।

आसन की विधि :-

  • बिछे हुये आसन (सीट) पर पीठ के बल लेटें।
  • दोनों पैर एक साथ मिलाएँ।
  • दाँया पैर मोङें।
  • दोनो हाथों से दाँये घुटने को पेट की ओर दबाँये। 
  • दाँया घुटना पेट के अधिकतम पास आने के बाद, नासिका को दाँये घुटने के पास लेकर ़आएँ। कुछ देर इस स्थिति में रुकें।
  • क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापिस आ जाएँ। दाँये पैर को सीधा करते हुए धीरे-धीरे नीचे टिकाएँ।
  • स्थिति को सामान्य करने के लिये कुछ सैकिंड का विश्राम करें।
  • यही क्रिया दूसरे पैर से करें। बाँया पैर मोङें। दोनों हाथों से घुटने को पेट की ओर दबाएँ। नाक को घुटने के पास ले जाँये। स्थिति मे कुछ देर रुकें।
  • क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापिस आ जाएँ। पैर सीधा करें। धीरे-धीरे पैर को निचे टिकाएँ।
  • स्थिति को सामान्य करने के लिये कुछ सैकिंड का विश्राम करें।
  • अन्तिम चरण मे दोनो पैरो को मोङे।
  • दोनो हाथो से घुटनो को पेट की ओर दबाएँ। नासिका को घुटनो के पास ले जाएँ। स्थिति मे  तुछ देर रुकें।
  • यथा शक्ति रुकने के बाद पीठ को नीचे टिकाएँ। पैरों को सीधा करें और धीरे-धीरे नीचे टिकाएँ।
  • दोनो पैरो मे थोड़ी दूरी बनाये। शरीर को ढीला छोङ कर विश्राम करें।
आसन की सावधानियाँ :-

  • आसन को क्षमता के अनुसार करें।
  • घुटने को पेट की ओर अपनी क्षमता के अनुसार दबाएँ। अधिक बल प्रयोग न करें।
  • घुटने मोड़ने मे परेशानी हो तो यह आसन न करें।
  • गर्भवती महिलाएँ व आँत रोगी इस आसन को न करें।
  • यदि पेट की सर्जरी हुई है तो यह आसन नही करना चाहिए।
आसन का प्रभाव :-

इस आसन से पेट की आँते प्रभावित होती हैं। दुषित वायु का निष्कासन होता है। यह पाचन शक्ति को बढाने वाला, तथा कब्ज मे राहत देने वाला आसन है।

सारांश :-

योग पाचन शक्ति को बढाने वाली क्रिया है। पाचन तंत्र के लिये संतुलित आहार ले तथा नियमित योग करें। पाचन तंत्र के लिये योग मे आसन व क्रियाएँ लाभकारी होती है।

Disclaimer :-

किसी प्रकार के रोग का उपचार करना लेख का उद्देश्य नही है। योग के लाभ से अवगत कराना ही लेख का उद्देश्य है। लेख मे बताये गये आसन व क्रियाएँ केवल स्वस्थ लोगों के लिये हैं। पेट मे किसी प्रकार की पीड़ा होने पर आसन न करें। 

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