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योग भारतीय ऋषियों द्वारा बताई गई एक उत्तम विधि है। प्राचीन काल में यह आध्यात्म का विषय रहा है। लेकिन आधुनिक समय में स्वास्थ्य के लिए इसका अभ्यास किया जाता है। आसन योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह अष्टांग योग का तीसरा चरण है। यह शरीर के अंगों को मजबूती देने वाला तथा आंतरिक अंगों को सक्रिय करने वाला अभ्यास है। इसको पतंजलि योग में विस्तार से परिभाषित किया गया है। पतंजलि योग में आसन क्या है, प्रस्तुत लेख में इनको विस्तार से बताया जाएगा।

आसन

लेख में जानकारियां :

  • योग में आसन क्या है?
  • आसन की परिभाषा पतंजलि योगसूत्र मे।
  • आसन और व्यायाम।
  • आसन कैसे करें?

योग मे आसन क्या है? What is asana in yoga?

पतंजलि योग में अष्टांग योग को संपूर्ण योग कहा गया है। इसके आठ अंग बताए गए हैं :-

  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. धारणा
  7. ध्यान
  8. समाधि
आसन इसका तीसरा चरण है। यह योग का एक शारीरिक अभ्यास है। शरीर को प्रभावित करने वाली यह महत्वपूर्ण क्रिया है। इस क्रिया से शरीर के आन्तरिक व बाह्य अंग सुदृढ होते हैं। आसन क्या है, इसका अभ्यास कैसे करना चाहिए ये सब जानने के लिए इसकी परिभाषा को समझना होगा।

आसन की परिभाषा, पतंजलि योगसूत्र में :

महर्षि पतंजलि ने अपने "योगसूत्र" में आसन को विस्तार से परिभाषित किया है। दूसरे अध्याय इसको परिभाषित करने के लिए वे एक सूत्र देते हैं :

स्थिरसुखम् आसनम्।।2.46।।

इस सूत्र का अर्थ  यह है कि "स्थिरता से और सुखपूर्वक जिस स्थिति (पोज) में हम ठहरते हैं, वह आसन है।"

साधारण शब्दों मे इसका अर्थ यह कि स्थिति मे सरलता और सुख पूर्वक ठहरना ही आसन है। इस सूत्र में आसन की दो  विशेषताएं बताई गई हैं :-- 

1. स्थिरता
2. सुख पूर्वक

महर्षि पतंजलि द्वारा दिए गए इस सूत्र में दो शब्द विशेष महत्व रखते हैं :

स्थिर: और सुखम्। 

इनका क्या अर्थ है? तथा आसन मे इनका क्या महत्व है ? आइए इनको क्रमश: समझ लेते हैं।

1. 'स्थिरता' क्या है?

महर्षि पतंजलि के अनुसार आसन मे स्थिरता का महत्व है। लेकिन स्थिरता क्या है? अभ्यास करते समय जल्दबाजी न करें। धीरे-धीरे आसन की पूर्ण स्थिति मे जाएं। पूर्ण-स्थिति में पहुंच कर कुछ देर रुकें। क्षमता अनुसार कुछ देर तक रुकने के बाद धीरे धीरे वापिस आ जाएं।

अभ्यास की पूर्ण-स्थिति में रुकना ही स्थिरता है। आसन का अभ्यास करने से लाभ तो मिलता है। लेकिन पूरा लाभ "स्थिति" मे रुकने से ही प्राप्त होता है। अत: आसन की स्थिति में स्थिरता से रुकने का प्रयास करना चाहिए।

कितनी देर रुकें? :-- प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की क्षमता अलग-अलग होती है। आसन की पूर्ण-स्थिति मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकें। इसके लिए बल प्रयोग न करें। शरीर के साथ अधिक बल प्रयोग करना हानिकारक हो सकता है।

नए साधक :-- यदि आप पहली बार आसन कर रहे है। और आसन की  पूर्ण स्थिति तक नही पहुंच पाते हैं, तो ऐसे मे क्या करें? आसन करते समय शरीर को जहां कष्ट का अनुभव होने लगे वहीं रुक जाएं। उस स्थिति से आगे न जाएं। बल प्रयोग न करें। और यंही से वापिस आ जाएं। अभ्यास को धीरे-धीरे आगे बढायें।

2. 'सुख पूर्वक' क्या है?

आसन की परिभाषा मे दूसरा शब्द आता है : 'सुखम्'। इसका भी गहरा अर्थ है। इसका अर्थ है कि आसन सरलता से किये जांएं। जिस आसन को करने मे सुख की अनुभूति हो वही आसन करें। कठिन आसन न करें।

कठिन आसन अधिक लाभकारी है, ऐसा बिलकुल नही है। सरल आसन अधिक लाभकारी होते हैं। अत: सुखपूर्वक किए जाने वाले आसन ही करें। यह ध्यान रहे कि सरलता से किया गया अभ्यास ही लाभदायी होता है। बलपूर्वक कठिन आसन करना हानिकारक हो सकता है।

जिस अभ्यास को करने मे सुख की अनुभूति हो, वह अवश्य करें। और उसकी स्थिति मे अधिक रुकें। (नये अभ्यासी योगसन करते समय कुछ गलतियां करते हैं। ये गलतियां हानिकारक हो सकती हैं। देखें :- योगाभ्यास मे होने वाली सामान्य गलतियाँ। )

आसन और व्यायाम :         

साधारण तौर पर योगासन को व्यायाम मान लिया जाता है। यह पूर्ण सत्य नही है। आसन और व्यायाम दोनों मे बहुत बङा फर्क है। दोनो क्रियाएं शरीर को स्वस्थ रखने के लिए की जाती है। लेकिन योगासन, व्यायाम नही है।

"योग आसन" क्या है, "व्यायाम" क्या, और इन दोनो मे अन्तर क्या है? इसको समझ लेते हैं।

योग आसन :

• योग एक आध्यात्मिक क्रिया है। 'आसन' योग का एक अंग है। यह शरीर के सभी आंतरिक व बाह्य अंगो को प्रभावित करता है। इसके लाभ व्यापक है। यह सरलता से किए जाने वाली क्रिया है।

इसका अभ्यास युवा, वृद्ध सभी व्यक्ति अपनी शारीरिक क्षमता अनुसार कर सकते हैं। 

• इस के प्रभाव सर्वांगीण हैं। यह शरीर के आंतरिक व बाह्य सभी अंगो को प्रभावित करता है। इसका अभ्यास मन-मस्तिष्क को भी प्रभावित करता है।

व्यायाम :

• व्यायाम एक तीव्रता से किये जाने वाली तथा शरीर थका देने वाली क्रिया है। व्यायाम से केवल शरीर के बाह्य अंग ही प्रभावित होते है। इस से केवल शरीर के मासपेशियां सुदृढ होती हैं।

• इसके प्रभाव सीमित हैं। यह केवल बाह्य शरीर को प्रभावित करता है। इसके कोई विशेष नियम नही होते हैं। योग आसन की अपेक्षा व्यायाम के लाभ सीमित हैं।

• व्यायाम केवल स्वस्थ युवा ही कर सकते हैं। इस क्रिया को वृद्ध व्यक्ति नही कर सकते है। इस मे तनाव आने की आशंका रहती है।

आसन कैेसे करें? आसन की सावधानियां :

योग आसन के कुछ नियम व सावधानियां होती है। सावधानी व नियमपूर्वक किया गया अभ्यास ही लाभदाई होता है। अत: अभ्यास करते समय इन को ध्यान मे रखना चाहिए।

अनुशासन :

योग में अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण है। पतंजलि "योग सूत्र" में भी इसको महत्व दिया गया है। इसका पहला सूत्र "अथ योग अनुशासनम्" है। इसका अर्थ है "अब योग अनुशासन आरम्भ करते हैं।" अर्थात् योग में अनुशासन पहला नियम है। अत: आसन करते समय कुछ नियम पालन अवश्य करना चाहिए।

नियम :

  • सुबह का समय योगाभ्यास के लिए उत्तम है। 
  • सुबह स्नान आदि नित्य क्रियाओं से निवृत होकर योगाभ्यास करें।
  • खाना खाने के तुरंत बाद योगाभ्यास न करें। 
  • आसन-प्राणायाम सही क्रम से करें।

आसन सही क्रम से करें :

सभी आसन सही क्रम से करने चाहिए। सही क्रम से किए गये आसन अधिक लाभदायी होते है। योगाभ्यास मे पहले आसन का अभ्यास करना चाहिये। आसन करने के बाद कुछ देर विश्राम करें। विश्राम के बाद प्राणायाम करें। और अंत मे ध्यान करें।

आसन भी सही क्रम से किये जाने चाहिये। आसन का सही क्रम :- 

1. खड़े हो कर :- सब से पहले खड़े हो कर सूक्ष्म क्रिया करें। आसनों मे सब से पहले सूर्य नमस्कार आसन करें।उसके बाद अन्य आसन करें।

देखें :- सूर्य नमस्कार आसन।

2. बैठ कर :- खड़े हो कर आसन करने के बाद बैठ जाएं। और बैठने की स्थिति मे आसन करे। इस स्थिति मे किये जाने वाले मुख्य आसन :-

• कटिचक्रासन
• पश्चिमोत्तान आसन
• अर्ध मत्स्येन्द्र आसन
• गोमुखासन

3. वज्रासन की स्थिति मे :- बैठने की स्थिति मे कुछ आसन करने के बाद वज्रासन मे आ जाएं। कुछ आसन इस पोज मे बैठ कर करें। वज्रासन पोज मे किये जाने वाले आसन :-

• उष्ट्रासन
• शशांक आसन
• सुप्त वज्रासन
• बालासन

4. पेट के बल लेट कर :-  वज्रासन पोज के आसन करने के बाद पेट के बल लेट जाएं। कुछ आसन इस पोज मे करे। इस पोज मे किये जाने वाले मुख्य आसन :-

• भुजंग आसन
• धनुरासन
• सलभ आसन

5. पीठ के बल लेट कर :- पेट के बल लेट कर कुछ आसन करने के बाद पीठ के बल सीधे लेट जाये। कुछ आसन इस पोज मे करें। इस पोज के मुख्य आसन :

• सर्वांग आसन
• मत्स्य आसन
• हलासन
• मकरासन
• पादोत्तान आसन

अधिक जानकारी के लिये देखें :- आसन प्राणायाम का सही क्रम क्या है

सरल आसन करे :

अपने शरीर की क्षमता के अनुसार ही अभ्यास करें। क्षमता से अधिक और कठिन अभ्यास न करें। आसन को धीरे-धीरे आरम्भ करें और पूर्ण स्थिति में पहुंच कर रुकने का प्रयास करे। कुछ देर रुकने के बाद, धीरे-धीरे वापिस आ जाएं। यदि आसन की पूर्ण स्थिति तक नही पहुंच सकते है तो अधिक प्रयास न करें।  

जिस आसन के अभ्यास में सरलता लगे वही आसन करें।सरलता से किये जाने वाले आसन ही लाभकारी होते है। आसन करते समय जहां कष्ट का अनुभव हो वही पर रुक जाएं और वापिस आ जाएं।

आसन में एकाग्रता :

आसन के अभ्यास में एकाग्रता बनाए रखें। अत: अभ्यास करते समय आंखें कोमलता से बन्द रखें। "प्रवीण साधक" आसन करते समय "चक्रों" पर ध्यान को केन्द्रित करते हैं। लेकिन नए व्यक्ति 'ध्यान' को शरीर के अंगों पर केन्द्रित करें या प्रभावित अंगों पर ध्यान केंद्रित करें।

योग आसन मे ध्यान की एकाग्रता का महत्व है। यह शरीर को प्रभावित करता है। अत: अभ्यास करते समय ध्यान को एकाग्र रखें।

पूरक आसन भी करें :

कुछ आसनों के पूरक-आसन होते हैं। इनको विपरीत आसन भी कहा जाता है। इनका अभ्यास अवश्य करें। इनका अभ्यास पहले किये गये आसन के लाभ को बढा देते हैं। 

विपरीत आसन :-- यदि एक पोज में दांई तरफ झुकते हैं तो अगले पोज में बांई तरफ भी झुकें। यदि एक पोज में आगे की ओर झुकते है तो अगले पोज में इसके विपरीत पीछे भी झुकेंगे। ऐसा करने से आसनों का बैलेंस बना रहता है।

देखें--- पूरक आसन क्या है?

अंत में शवासन करें :

अभ्यास के अंत मे शवासन अवश्य करें। यह विश्राम करने का आसन होता है। इस अभ्यास को करने के लिए पीठ के बल लेट जाएं। दोनो पैरों मे थोड़ा फासला रखें। हाथ शरीर के साथ दांए-बांए, हथेलियां खुली हुई रखें। 

शरीर को ढीला छोड़ दें। ध्यान पूरे शरीर पर केंद्रित रखें। लम्बे, गहरे श्वास लेते छोड़ते हुए कुछ देर इसी स्थिति मे रुकें।      

सारांश :

योगासन अपने शरीर की क्षमता के अनुसार करें। सरल आसन करें। अभ्यास की पूर्ण स्थिति में रुकने का प्रयास करें।   

(आसन व प्राणायाम के लिए हमारे अन्य लेख देखें) 

Disclaimer :- आसन प्रत्येक व्यक्ति के लिये लाभदायी है। लेकिन अपनी अवस्था व शारीरिक क्षमता के अनुसार अभ्यास करने चाहिये। लेख मे बताए गये आसन केवल स्वस्थ व्यक्तियो के लिये है। अस्वस्थ व्यक्ति आसन न करें। वृद्ध व्यक्ति कठिन आसन न करें।

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