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हमारा शरीर ऊर्जा (Energy) का विशाल भण्डार है। प्रकृति ने हमें पर्याप्त मात्रा मे ऊर्जा प्रदान की है। यह हमे प्रत्येक मौसम के कुप्रभाव से बचाती है, तथा दैनिक कार्य करने के लिए शरीर को सशक्त बनाए रखती है। लेकिन साधारणतया यह सुप्त अवस्था मे होती है। योग इसे जागृत करता है। Yoga for Energy, क्या है? ऊर्जा के लिये योगासन का महत्व क्या है? योगासन इस को कैसे प्रभावित करते हैं? इस लेख में इन सब के विषयों का वर्णन किया जायेगा।

विषय सुची :-

  • ऊर्जा के लिये योगासन का महत्व
  • हस्त पादोत्तान आसन
  • कटि चक्रासन
  • शशांक आसन
  • शीर्षासन
  • सर्वांगासन
  • हलासन

शारीरिक ऊर्जा : योगासन का महत्व।Yoga for Energy.

हमारे शरीर के लिए शारीरिक-ऊर्जा का विशेष महत्व है। यह एक प्रकार की शक्ति है, जो शरीर को दैनिक कार्य करने की क्षमता देती है। यह सभी प्रकार के मौसम को सहन करने की शक्ति देती है। लेकिन कई कारणों से यह एनर्जी कम होने लगती है। इसका कम होना, शरीर को प्रभावित करता है। ऐसा होने पर शरीर मौसम के प्रभाव में आता है और रोग ग्रस्त होने लगता है। अतः इस ऊर्जा-शक्ति का संरक्षण जरूरी है।

इस को संरक्षित करने के लिये योगासन बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये शरीर की Energy को सुदृढ़ करते हैं। नियमित योगासन शारीरिक-ऊर्जा को जागृत करते हैं। ये रक्त-चाप सामान्य को रखते हैं, शरीर के आन्तरिक व बाह्य अंगो को सक्रिय करते हैं। आन्तरिक अंगों के प्रभाव मे आने से कफ, वात व पित्त तथा अन्य तत्व सन्तुलित रहते हैं। वैसे तो सम्पूर्ण योग ही ऊर्जादायी होता है, लेकिन प्रस्तुत लेख मे कुछ महत्वपूर्ण ऊर्जादायी योगासनों का वर्णन किया जायेगा। 

1. हस्त पादोत्तान आसन :

योगाभ्यास आरम्भ करने से पहले शरीर को "वार्म-अप" करें। इसके लिये एक स्थान पर खड़े होकर जॉगिंग करें। 2-3 मिनट तक इस क्रिया करने के बाद विश्राम की स्थिति मे आ जाएं। कुछ सैकिंड विश्राम के बाद ताड़ासन और हस्त पादोत्तान आसन का अभ्यास करें।

ताड़ासन :- दोनो पैरों एक साथ रखें। दोनों हाथ सीधे कमर के साथ रखें। दोनों हाथ धीरे-धीरे ऊपर उठाएं। हाथ ऊपर जाने के बाद श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर खींचे।

हस्त पादोत्तान आसन की विधि

1. ताड़ासन के बाद हाथो व गरदन को थोड़ा सा पीछे की ओर झुकाये।

2. श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे झुकें। हाथों को सीधा व खींच कर रखें। माथा घुटनों के पास ले जाने का प्रयास करें। घुटने सीधे रखें। हाथों को पैरों के दांए-बांए रखने का प्रयास करें। श्वास सामान्य करें। स्थिति मे कुछ देर रुकें।

3. अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापसी आरम्भ करें। श्वास भरते हुए धीरे-धीरे कमर को सीधा करें। हाथों मे खिंचाव बनाये रखें। पूरी तरह कमर सीधी होने के बाद हाथों को ऊपर की ओर खींचे। और दोनो हाथो को दांए-बांए से नीचे ले आएँ। आसन पर बैठ जाएं। विश्राम करें।

हस्त पादोत्तान आसन का प्रभाव 

• यह शरीर को ताजगी व ऊर्जा देने वाला आसन है। ताड़ासन से सभी अंगों मे खिंचाव आता है। खिंचाव आने से सभी अंग सक्रिय हो जाते हैं।

• आगे झुकने से कमर, रीढ व रीढ पर स्थित नाड़ी तंत्र प्रभाव मे आता है। सिर के नीच झुकने से रक्त का प्रवाह मस्तिष्क की ओर होता है।

• पैरो की मासपेशियां प्रभाव मे आती है। यह घुटनो व पैरो के लिये प्रभावी आसन है।

आसन की सावधानियां :

• इस आसन मे पैरों की दूरी अपनी सुविधा के अनुसार रखे। एड़ी, पंजे व घुटने मिला कर इस आसन को करना उत्तम है।

• इस आसन को करते समय घुटनों को सीधा रखें। हाथों मे खिंचाव बनाये रखें।

• धीरे-धीरे आगे झुकें। जब आगे झुका सम्भव न हो या पीड़ा का अनुभव हो, तो रुक जाएं। और अधिक झुकने का प्रयास न करें।

• माथा घुटनों के पास नही पहुंच रहा है। और हाथ नीचे नही टिक रहे है तो अधिक प्रयास न करें।

• आसन को अपनी क्षमता के अनुसार करें। सरलता से किया गया आसन ऊर्जा दायी होता है। क्षमता से अधिक करना हानिकारक हो सकता है।

यह आसन किसको नही करना चाहिए?

यह रीढ व कमर को प्रभावित करने वाला आसन है। कुछ व्यक्तियों के लिये यह आसन वर्जित है।

  • रीढ के विकार से प्रभावित व्यक्ति।
  • कमर रोग से पीड़ित।
  • पेट के गम्भीर रोगी।
  • गर्भवती महिलाएं।
  • ऐसे व्यक्ति जिनकी कोई सर्जरी हई है।

2. कटिचक्रासन :

ऊर्जा के के लिये योगासन मे यह महत्वपूर्ण आसन है। यह रक्त-संचार को सामान्य रखने मे सहायक होता है। यह बैठ कर किया जाने वाला आसन है।

आसन की विधि :

1. दोनों पैरो को सीधा करें। दोनो पैरों के बीच मे अधिकतम दूरी बनाएं। दांई ओर झुकते हुए माथा दांए घुटने के पास ले जाये। बांए हाथ से दांए पंजे को पकड़ने का प्रयास करें। दांया हाथ पीछे पीठ की ओर ले जायें।

2. ऊपर उठें। फिर बांई ओर झुकें। माथा बांए घुटने के पास ले जाएं। दांए हाथ से बांया पंजा पकड़ने का प्रयास करें। बांया हाथ पीठ की ओर ले जाएं।

3. इसी प्रकार गति पूर्वक दांए-बांए घुटनो की ओर झुकते हुए अभ्यास को करें। अपनी क्षमता के अनुसार आसन करे। आसन पूरा करने के बाद वापिस पूर्व स्थिति मे आ जाये।

4. पैरों का अन्तर कम करें। हाथों को पीछे टिकाएं। गरदन को पीछे की ओर ढीला छोड़ दें। कुछ सैकिंड विश्राम करें।

आसन का प्रभाव :

• इस आसन से कमर, रीढ व पैरों की मासपेशियां प्रभाव मे आती हैं। यह शरीर को ताजगी व ऊर्जा देने वाला आसन है।

• यह आसन पेट के आन्तरिक अंगों को प्रभावित करता है। यह कब्ज दूर करने मे सहायक होता है। इस आसन से पाचनतंत्र सुदृढ होता है।

• पेट के आन्तरिक अंग प्रभाव मे आने से शरीर का रसायन निर्माण संतुलित रहता है। इस आसन को करने से रक्त-चाप (BP) सामान्य रहता है।

• रीढ पर स्थित नाड़ी तंत्र प्रभावित होता है। नाड़ी तंत्र के प्रभावित होने से शरीर के अंग सक्रिय रहते हैं।

आसन की सावधानियां :

• इस आसन को करते समय घुटनों को सीधा रखें। अपने शरीर की क्षमता का ध्यान रखें। आसन को सरलता से करें। बलपूर्वक आसन न करें।

• सरलता से जितना आगे झुक सकते हैं, उतना ही झुकें। अधिक प्रयास न करें। 

• यह गति पूर्वक किया जाने वाला आसन है। आसन की गति अपनी क्षमता के अनुसार रखें।

यह आसन किसको नही करना चाहिए?

यह आसन कुछ व्यक्तियों के लिये वर्जित है। अत: इन व्यक्तियों को यह नही करना चाहिए।

  • रीढ व कमर की परेशानी वाले व्यक्ति।
  • आंत रोग से पीड़ित व्यक्ति।
  • पेट के गम्भीर रोगी।
  • ऐसे व्यक्ति जिनकी कोई सर्जरी हुई है।
  • गर्भवती महिलाएं।
  • महिलाएं माहवारी पीरियड्स मे।

3. वज्रासन व शशांक आसन :

शशांक आसन शरीर को ऊर्जा देने वाला आसन है। यह वज्रासन की स्थिति मे बैठ कर किया जाने वाला आसन है।

वज्रासन :-  दोनो पैरों को मोड़ कर घुटनों के बल बैठ जायें। दोनो घुटने मिला कर रखें। दोनो एड़ियों के बीच मे मध्य भाग को टिका कर बैठें। रीढ व गरदन को सीधा रखें। दोनों हाथ घुटनो पर रखें।

शशांक आसन की विधि :

1. वज्रासन की स्थिति मे बैठें। धीरे-धीरे दोनो हाथों को ऊपर उठाये। श्वास भरते हुए हाथों को ऊपर की ओर खींचें। श्वास छोड़ते हुए आगे झुकें।

2. आगे झुकते हुए हथेलियां व कोहनियां नीचे टिकाये। माथा घुटनों के पास ले जायें। श्वास को सामान्य करते हुए स्थिति मे कुछ देर रुकें।

3. क्षमता के अनुसार रुकने के बाद श्वास भरते हुए धीरे-धीरे कमर को सीधा करें। कमर सीधा होने के बाद हाथो को ऊपर की ओर खींचें। खिंचाव देने के बाद हाथो को नीचे ले आये। दोनो हाथो को घुटनों पर रखें।

आसन की सावधानियां :

• वज्रासन मे बैठते समय रीढ व गरदन को सीधा रखें। रीढ को झुका कर न बैठें।

• धीमी गति से आगे झुके और धीमी गति से ऊपर उठें। अपनी क्षमता के अनुसार आगे झुकें। आगे झुकने मे बल प्रयोग न करें।

• आगे झुकते समय जब पीड़ा का अनुभव हो तो वहां पर रुक जाएं। यहां कुछ देर रुके और वापिस आ जाये।

• आसन को सरलता से जितना हो सके उतना ही करें। अधिक बल प्रयोग न करें। आसन की पूर्ण स्थिति मे कुछ देर रुकने का प्रयास करें।

यह आसन किसको नही करना चाहिए?

यह आसन कुछ व्यक्तियों के लिये वर्जित है। इसलिये इनको यह आसन नही करना चाहिए।

  • यदि घुटने मोड़ कर बैठने मे परेशानी है तो यह आसन न करें।
  • ऐसे व्यक्ति जिनके घुटनो की सर्जरी हुई है। वे इस आसन को न करें।
  • आंत रोगी और पेट के गम्भीर रोगी।
  • रीढ की परेशानी वाले व्यक्ति।
  • गर्भवती महिलाएं।

4. शीर्षासन :

शीर्षासन ऊर्जा देने वाला एक महत्वपूर्ण आसन है। यह कठिन आसन माना जाता है। लेकिन यह एक लाभदायी आसन है। आरम्भ मे इसे दीवार या किसी पेड़ का सहारा लेकर किया जा सकता है।

इस आसन को सावधानी के साथ किया जाना चाहिए। आईए इसकी विधि, प्रभाव व सावधानियों के बारे मे जान लेते हैं।

(जो व्यक्ति इस आसन को नही कर सकते हैं, वे "सर्वांगासन" या "हलासन" करें।)

शीर्षासन कैसे करें?

1. दीवार या पेड़ के साथ आसन (योगा मैट) बिछाएं। घुटने मोड़ कर वज्रासन की स्थिति मे बैठे। चेहरा दीवार की तरफ रखें।

2. आगे झुकते हुए दोनो कोहनियां नीचे टिकाएं। सिर को दोनो कोहनियों के बीच मे टिकाये। धीरे से धड़ भाग को ऊपर उठाएं। पीठ को दीवार के साथ लगाये।

3. धीरे-धीरे पैरों को ऊपर की ओर ले जाये। दीवार का सहारा लेकर दोनो पैरो को ऊपर की ओर सीधा करे। शरीर का वजन भुजाओं पर रखें। सिर पर अधिक दबाव न आने दें। स्थिति मे कुछ देर रुके।

4. अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापिस आना आरम्भ करें। पहले घुटनो को मोड़ें। धीरे-धीरे पैरों को नीचे ले आये। वज्रासन की स्थिति मे बैठ जाये। पीठ के बल लेट कर शवासन मे विश्राम करें।

शीर्षासन का प्रभाव

• यह शरीर को ऊर्जा देने वाला आसन है। इस आसन मे पैरों को ऊपर तथा सिर व धड़ भाग को नीचे किया जाता है। पृथ्वी के गुरुत्व बल के कारण शरीर का रक्त प्रवाह हृदय तथा मस्तिष्क की ओर हो जाता है।

• हृदय तथा मस्तिष्क की ओर रक्त-प्रवाहित होने से दोनो को मजबूती मिलती है। यह शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है।

शीर्षासन की सावधानियां :

• यह आसन सावधानी से करें। नये योग अभ्यासी जो इस आसन को पहली बार कर रहे हैं, वे सहारा लेकर ही करे। सन्तुलन बनाने के लिये दूसरे व्यक्ति की सहायता लें।

• आसन की पूर्ण स्थिति मे धीरे-धीरे जाएं और धीरे-धीरे वापिस आ जाएं। आसन की स्थिति मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकें।

• आसन करते समय यह सुनिश्चित करें कि शरीर का भार कोहनियों पर रहे। सिर व गरदन पर दबाव न आने दें। पैरों का सन्तुलन बना कर रखें। वापसी मे पैरों को धीरे से नीचे टिकाये।

शीर्षासन किस को नही करना चाहिए?

यह आसन कुछ व्यक्तियों के लिये वर्जित है। इस लिये यह आसन इनको नही करना चाहिए।

  • अधिक वजन वाले व्यक्ति।
  • कन्धों व गरदन के रोग पीड़ित।
  • हृदय रोगी, श्वास रोगी तथा आंत व पेट के गम्भीर रोगी।
  • ऐसे व्यक्ति जिन की अभी हाल ही मे सर्जरी हुई है।
  • गर्भवती महिलाएं।
  • अधिक वृद्ध व्यक्ति।
  • High BP वाले व्यक्ति चिकित्सक की सलाह से करें।

5. सर्वांगासन :

ऊर्जा के लिये योगासन मे दूसरा आसन है, सर्वांगासन। यह एक महत्वपूर्ण आसन है। इस आसन से शीर्षासन के लाभ प्राप्त होते हैं। इस लिये जो व्यक्ति शीर्षासन नही कर सकते हैं वे सर्वांगासन करें। यह सभी अंगो को प्रभावित करने वाला आसन है।


सर्वांगासन कैसे करें?

1. पीठ के बल सीधे लेट जाएं। दोनो पैरों को एक साथ मिला कर रखें। दोनो हाथ सीधे कमर के साथ, हथेलियां नीचे की ओर  रखें।

2. घुटने सीधे रखते हुए, धीरे-धीरे दोनो पैरों को ऊपर उठाएं। पंजे सीधे व तने हुए रखें। पैरों की दिशा आसमान की तरफ होने के बाद थोड़ा रुकें।

3. कुछ देर रुकने के बाद पैरों को पीछे सिर की ओर ले जाये। पैरों को सिर की ओर नीचे टिकाने का प्रयास करें।सरलता से पैर जितना नीचे पहुंच सकते है, वहाँ कुछ देर रुकें।

4. कुछ देर रुकने के बाद धीरे-धीरे पैरो को ऊपर करें। दोनो हाथो को पीठ के नीचे रखें। हाथो का सहारा लेकर पीठ को ऊपर उठाएं। पैरों को आसमान की तरफ करे। पंजों को खींच कर रखें। कन्धों पर शरीर का सन्तुलन बनाये। स्थिति मे रुकें।

5. आसन की पूर्ण स्थिति मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकें। कुछ देर रुकने के बाद वापिस आना आरम्भ करें। धीरे से पीठ को नीचे टिकाएं। हाथों को पीठ से हटाएं।

6. घुटनों  को सीधा रखते हुए धीरे-धीरे पैरों को नीचे ले कर आये। नीचे आने के बाद पैरों को धीरे से नीचे टिकाएं। दोनो पैरो के बीच थोड़ी दूरी बनाये। शरीर को ढीला छोड़ दें। कुछ देर विश्राम करें।

(सर्वांगासन की अधिक जानकारी के लिये देखे :- सर्वांगासन कैसे करें?)

सर्वांगासन का प्रभाव :

• यह सभी अंगों को प्रभावित करने वाला आसन है। रक्त-संचार पर इसका मुख्य प्रभाव पड़ता है। गुरुत्व बल से रक्त का संचार हृदय तथा मस्तिष्क की ओर हो जाता है।

• हृदय तथा मस्तिष्क के लिये यह उत्तम आसन है। इस आसन से शीर्षासन के सभी लाभ मिलते हैं।

सर्वांगासन की सावधानियां :

• इस आसन में पैरों को धीमी गति से ऊपर उठाये। घुटनों को सीधा रखें। पंजे खिचे हुए रखें।

• अपनी क्षमता के अनुसार पैरो को पीछे ले जाएं। पैरों को बलपूर्वक नीचे टिकाने का प्रयास न करें। सरलता से जितना कर सकते है उतना ही करें।

• आसन की पूर्ण स्थिति मे अपनी क्षमता के अनुसार रुकें। धीमी गति मे आसन से वापिस आएँ। वापसी मे घुटनों को सीधा रखें। पैरों को धीरे से नीचे टिकाएं। पैरों को ऊपर से न गिराएं।

सर्वांगासन किसको नही करना चाहिए?

जो व्यक्ति शीर्षासन नही कर सकते है उनके लिये यह सरल आसन है। लेकिन कुछ व्यक्तियों के लिये यह हानिकारक हो सकता है। इस लिये इन व्यक्तियों को यह आसन नही करना चाहिए।

  • रीढ की परेशानी वाले व्यक्ति।
  • हृदय व श्वास रोगी।
  • कन्धो व गरदन के रोग से पीड़ित।
  • आंत व पेट के गम्भीर रोगी।
  • ऐसे व्यक्ति जिनकी हाल ही मे सर्जरी हुई है।
  • गर्भवती महिलाएं।
  • उच्च रक्त चाप वाले व्यक्ति चिकित्सक की सलाह से करें।

6. हलासन :

ऊर्जा के लिये योगासन में तीसरा मुख्य आसन है, हलासन। यह रीढ, कमर, पीठ व पेट के लिये प्रभावी आसन है। यह रक्त-संचार तथा हृदय के लिये महत्वपूर्ण आसन है।


हलासन कैसे करें?

1. इस आसन की विधि सर्वांगासन से मिलती जुलती है। इसको लगभग सर्वांगासन की तरह ही किया जाता है।

2. पीठ के बल लेटें। दोनों पैरो को आपस मे मिला कर रखें। हाथों को कमर के साथ रखें। हथेलियां नीचे की ओर रखे।

3. घुटने सीधे रखते हुए धीरे-धीरे दोनो पैर ऊपर उठाएं। पैरों के ऊपर उठने के बाद थोड़ा रुकें।

4. कुछ देर रुकने के बाद पैरों को पीछे सिर की ओर ले जाएं। घुटने व पंजों को सीधा रखें। पैर के पंजों को नीचे टिकाने का प्रयास करें। पूर्ण स्थिति मे क्षमता अनुसार रुकें।

5. अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद वापसी आरम्भ करें। धीरे-धीरे पीठ को नीचे टिकाएं। पीठ नीचे टिकने के बाद पैरों को धीरे-धीरे नीचे लेकर आये। घुटने सीधा रखें। पैर धीरे से नीचे टिकाये।

6. पैर नीचे टिकाने के बाद दोनो पैरो मे उचित दूरी बनाएं। शरीर को ढीला छोड़ें। विश्राम करे और आये हुए तनाव को दूर करे।

हलासन  का प्रभाव :

• इस आसन को करने से रक्त-संचार की उत्तम स्थिति होती है। यह रक्त-चाप को सामान्य रखता है। यह हृदय को मजबूती देने वाला आसन है।

• हलासन कमर, रीढ तथा रीढ पर स्थित नाड़ी तंत्र को प्रभावित करता है। यह ऊर्जादायी आसन है।

हलासन की सावधानियां :

• इस आसन को धीमी गति से करें। दोनो पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं। घुटनों को सीधा रखें। पंजे सीधे तथा खिचे हुए रखें।

• पैरों को पीछे सिर की ओर ले जाने मे अधिक बल प्रयोग न करें। आसन को सरलता से करें। नये अभ्यासी (Beginners) आसन की पूर्ण स्थित मे जाने का अधिक प्रयास न करें।

• आसन की स्थिति से धीरे-धीरे  वापिस आएँ। घुटने सीधे रखते हुए पैरों को नीचे ले कर आये। पैरों को धीरे से नीचे टिकाएं। पैरों को ऊपर से न गिराये।

हलासन किसको नही करना चाहिए?

यह आसन कुछ व्यक्तियों के लिये वर्जित है। उन के लिये यह हानिकारक हो सकता है। अत: इन व्यक्तियों को यह आसन नही करना चाहिए।

  • कमर व रीढ की परेशानी वाले व्यक्ति।
  • हृदय, श्वास, व आंत रोग पीड़ित व्यक्ति।
  • हाल ही मे हुई सर्जरी वाले व्यक्ति।
  • गर्भवती महिलाएं।

लेख सारांश :- 

ऊर्जा के लिये योगासन बहुत महत्वपूर्ण है। शीर्षासन, सर्वांगासन तथा हलासन विशेष लाभदायी आसन है। तीनो आसनों मे से कम से कम एक आसन अवश्य करना चाहिए। आसन करते समय अपनी क्षमता को ध्यान मे रखें।

Disclaimer :-

यह लेख किसी रोग के उपचार का दावा नही करता है। योग आसनों की जानकारी देना इस लेख का उद्देश्य है। लेख मे बताये गये आसन केवल स्वस्थ व्यक्तियों के लिये हैं। आसन करते समय अपनी शारीरिक क्षमता का ध्यान रखें। अस्वस्थ व्यक्ति चिकित्सक से सलाह लें।

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