क्या आप नियमित योगाभ्यास करते हैं? क्या मौसम के अनुकूल प्राणायाम करते हैं? प्राणायाम योग की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। इसका अभ्यास प्रत्येक मौसम मे किया जा सकता है। लेकिन कुछ अभ्यास मौसम के अनुसार करने चाहिए। ऐसे अभ्यास अधिक लाभदाई होते हैं। कुछ प्राणायाम अभ्यास शरद ऋतु मे तथा कुछ गर्मी के मौसम में लाभकारी होते हैं। इनका अभ्यास मौसम के अनुरूप ही करना चाहिए। मौसम के अनुकूल प्राणायाम कैसे करे? और इनको करना क्यों जरूरी है? प्रस्तुत लेख में इसके बारे में विस्तार से बताया जाएगा।
प्राणायाम का अनुकूल मौसम
हमारे शरीर में ऊर्जा का भण्डार है। लेकिन यह सुषुप्त (Sleeping) अवस्था में होता है। योग इस ऊर्जा को जागृत कर सकता है। यह ऊर्जा हमारे शरीर को मौसम के दुष्प्रभाव से बचाती हैं। इसके लिए प्राणायाम विशेष लाभकारी होता है। अत: योगाभ्यास मे आसन के साथ प्राणायाम का अभ्यास भी करना चाहिए।
यह अभ्यास प्रत्येक मौसम में लाभदायी होता है। लेकिन इसके कुछ अभ्यास मौसम के अनुसार किये जाने चाहिएं। कुछ अभ्यास एक मौसम में लाभदायी होते हैं, उनका अभ्यास अवश्य करना चाहिए। कुछ अभ्यास उस मौसम में हानिकारक हो सकते हैं, इसलिए उनका अभ्यास नही करना चाहिए। ये अभ्यास कोन से हैं, आगे इसका विस्तार से वर्णन किया जाएगा।
अनुकूल मौसम क्या है?
नियमित योगाभ्यास से हमारे शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है। शरीर की ऊर्जा ही हमें मौसम के कुप्रभाव से बचाती है। प्राणायाम प्रत्येक मौसम में किया जाने वाला अभ्यास है। लेकिन जो अभ्यास किसी विशेष मौसम में लाभकारी होते हैं, उनको अनुकूल अभ्यास कहा गया है। उस मौसम में इनका अभ्यास अवश्य करना चाहिए।
आइये देखते है किये प्राणायाम कोनसे हैं?
मौसम के अनुकूल प्राणायाम क्यो?
अर्थात् योग के सिद्ध हो जाने से कोई भी द्वंद्व (सर्दी-गर्मी, सुख-दुख आदि) प्रभावित नही करते हैं। इसका भावार्थ है कि 'सिद्ध-योगी' को मौसम प्रभावित नही करता है। उसके के लिए सभी मौसम अनुकूल होते हैं। इस लिए वे सभी अभ्यास प्रत्येक मौसम मे कर लेते है। उनकी ऊर्जा जागृत अवस्था में होती है। इसलिए कोई भी मौसम उनको प्रभावित नही करता है।
लेकिन सामान्य योग-अभ्यासी को मौसम प्रभावित कर सकता है। इस लिए प्राणायाम करते समय मौसम को ध्यान मे रखना जरूरी है। एक सामान्य अभ्यासी को मौसम के अनुसार ही प्राणायाम करने चाहिएं। क्योंकी कुछ प्राणायाम सर्दी मे, और कुछ गर्मी मे अनुकूल होते है।
मौसम के प्रतिकूल (विपरीत) प्राणायाम से हानि
मौसम के उलट प्राणायाम करना उचित नही है। इनको प्रतिकूल प्राणायाम कहा गया है। इनका अभ्यास हानिकारक हो सकता है। जो प्राणायाम हमारे शरीर को गर्मी देते है उनको गर्मी के मौसम मे करना हानिकारक हो सकता है।
इसी प्रकार कुछ प्राणायाम शरीर को शीतलता देने वाले होते हैं। अत: इनको शरद ऋतु मे करने करने से हानि हो सकती है। इसलिए यह हमेशा ध्यान रहे की मौसम से प्रतिकूल (उलट) कोई अभ्यास न करें।
सर्दियों मे अनुकूल प्राणायाम
शरद ऋतु में हमारे शरीर को अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। अत: इस मौसम मे शरीर को गर्मी देने वाले अभ्यास ही करने चाहिएं।
ये प्राणायाम गर्मी के मौसम मे वर्जित हैं। इनको केवल शरद ऋतु मे ही करना लाभकारी है। आइये देखते है कि शरद ऋतु मे कौन से प्राणायाम लाभकारी हैं।
1. भस्त्रिका
- पद्मासन या सुखासन मे बैठें।
- रीढ व गरदन को सीधा रखें।
- दोनो हाथ घुटनों पर रखें।
- दोनों नासिकाओ से श्वास ले और छोडें। श्वास लेना और छोङना तीव्र गति से करें।
- पहले धीमि गति से आरम्भ करे। धीरे धीरे गति बढाएँ।
- यथा शक्ति क्रिया को करें।
- धीरे-धीरे गति को धीमी करे।
- यथा शक्ति क्रिया करने के बाद वापिस आएँ। श्वास सामान्य करे।
भस्त्रिका के बाद उज्जायी प्राणायाम अवश्य करें। यह भस्त्रिका के लाभ मे वृद्धि करता है। (देखें :- उज्जायी प्राणायाम कैसे करें?)
लाभ :--- शरद ऋतु में शरीर को ऊर्जा देता है।
- कफ, वात व पित्त का संतुलन रखता है।
2. सूर्य भेदी
यह प्राणायाम सूर्य नाड़ी को प्रभावित करता है। सूर्य नाड़ी शरीर को गर्मी (ऊर्जा) देती है। इस प्राणायाम में दांई नासिका से लम्बा गहरा श्वास लेना है। और यथा शक्ति श्वास रोकने के बाद बांई नासिका से श्वास छोड़ना है।
- पद्मासन या सुखासन मे बैठें।
- कमर व गरदन को सीधा रखें।
- बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा मे तथा दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनाये।
- तीसरी उँगली से बाँयी नासिका बन्ध करें।
- दाँयी नासिका से लम्बा गहरा श्वास भरें।
- यथा शक्ति श्वास को रोकें। और बाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
- यह एक चक्र पूरा हुआ। दूसरी आवर्ति के लिए फिर दाँयी नासिका से पूरक और बाँयी नासिका से रेचक करें।
- इसी प्रकार 4 या 5 आवर्तियाँ करें।
- अंत में श्वास सामान्य करें।
लाभ :--
- सूर्य नाङी प्रभावित होती है।
- शरीर को गर्मी मिलती है।
- चंद्रनाङी के साथ संतुलन स्थापित करती है।
- निम्न रक्त-चाप (Low-BP) मे लाभकारी है।
- कफ-दोष मे प्रभावी है।
गर्मियों मे अनुकूल प्राणायाम
गर्म मौसम में हमे शीतलता की जरुरत होती है।इस लिए इस मौसम में शीतलता देने वाले अभ्यास अवश्य करने चाहिए। इस मौसम के कुछ लाभदायी प्राणायाम इस प्रकार हैं :-
1. शीतली प्राणायाम
- पद्मासन या सुखासन की स्थिति मे बैठें।
- दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में रखें।
- आँखे कोमलता से बंद करें।
- जीभ को थोङा बाहर निकालें। जीभ को दोनो तरफ से मोङते हुए नली का आकार दें।
- जीभ की नली से श्वास भरें।
- पूरा श्वास भरने के बाद यथा शक्ति श्वास को रोकें।
- गरदन झुका कर ठोढी सीने से लगाए (जालंधर बंध)।
- यथा शक्ति रुकने के बाद गरदन को सीधा करें।नासिका से श्वास बाहर छोङे।
- यह एक आवर्ती पूरी हई। दूसरी आवर्ती के लिए जीभ की नली से फिर श्वास भरें। यथा शक्ति आंतरिक कुम्भक मे रुकें। और नासिका से श्वास बाहर निकाले।
- इस प्रकार 5 आवर्तियाँ करे। या सामर्थ्य के अनुसार करें।
यह शरीर को शीतलता देने वाला प्राणायाम है।
2. शीतकारी प्राणायाम
- पद्मासन या सुविधापूर्वक स्थिति में बैठें।
- हाथ ज्ञान मुद्रा में और आँखे कोमलता से बंद रखें।
- ऊपर व नीचे के जबङो (दाँतों) को दबाव डालते हुए बंध करें।
- जीभ को तालु से लगाएँ। होठ खुले रखें।
- दाँतो के बीच से श्वास खीँच कर पूरक करे।
- पूरी तरह श्वास भरने के बाद यथा शक्ति आंतरिक कुम्भक तथा जालंधर बंध लगाएँ।
- सामर्थ्य के अनुसार रुकने के बाद गरदन को सीधा करे। और नासिका से श्वास खाली करे।
- यह एक आवर्ति पूरी हुई। इसी प्रकार सुविधा के अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें।
- अंत मे श्वास सामान्य करें।
3. चंद्रभेदी प्राणायाम
यह चंद्रनाड़ी को प्रभावित करने वाला उत्तम प्राणायाम है। यह नाड़ी शरीर को शीतलता देती है। यह गर्मी के मौसम मे एक अनुकूल प्राणायाम है।
विधि :--
- पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठें।
- बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा मे रखें।
- दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनायें।
- अंगूठे से दाँयी नासिका को बंद करें। बाँयी नासिका (चंद्रनाङी) से लम्बा गहरा श्वास भरें।
- पूरी तरह श्वास भरने के बाद बाँयी नासिका भी बंद करें।
- भरे श्वास मे यथा शक्ति रुके।
- क्षमता के अनुसार रुकने के बाद दाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
- यह एक आवर्ती पूरी हुई। दूसरी आवर्ती के लिए फिर बाँये से श्वास भरें। यथा शक्ति श्वास रोके और दाँये से खाली करें।
- इसी प्रकार अवश्यकता केअनुसार अन्य आवर्तियाँ करें।
- अंत में श्वास सामान्य करें।
- चंद्रनाथङी प्रभाव में आती है।
- शरीर को शीतलता मिलती है।
- सूर्यनाडी के साथ संतुलन कायम करती है।
- शरीर के पित्त दोष मे लाभकारी है।
- उच्च-रक्तचाप (High BP) मे लाभकारी है।
निम्न रक्त-चाप (Low BP) वाले व्यक्ति इस को न करें। यह प्राणायाम कफ दोष मे भी हानिकारक हो सकता है।
सभी मौसम मे किये जाने वाले प्राणायाम
जो प्राणायाम गर्मियों में वर्जित है, उनको इस मौसम में न करें। तथा सर्दी में वर्जित है, उनको सर्दी मे न करें। बाकी सभी प्राणायाम प्रत्येक मौसम मे कर सकते हैं। कुछ मुख्य प्राणायाम जो प्रत्येक मौसम मे किये जा सकते हैं :--
1. कपालभाति क्रिया।
मुख्यत: यह एक शुद्धि क्रिया है। लेकिन इसे प्राणायाम के तौर पर भी किया जा सकता है। यह क्रिया प्रत्येक मौसम में की जा सकती है। यह कपाल भाग को प्रभावित करती है।
- इस क्रिया को करने के लिए पद्मासन मे बैठना उत्तम है। पद्मासन मे नही बैठ सकते है तो किसी आरामदायक स्थिति मे बैठें।
- कमर व गरदन को सीधा रखें। हाथ घुटनो पर और आँखे कोमलता से बंद रखें।
- सामान्य गति से श्वास का पूरक करे और तीव्र गति से रेचक करें। पेट को अंदर की ओर करते हुए श्वास का रेचक करे। ध्यान केवल श्वास छोङने पर केंद्रित करे।
- यथा शक्ति क्रिया को करे के बाद वापिस आएँ। श्वास सामान्य करें।
- कपाल भाति के बाद अनुलोम विलोम अवश्य करें।
- इस क्रिया को प्रत्येक मौसम में किया जा सकता है।
- कपाल भाग की शुद्धि के लिए उत्तम क्रिया है।
- लंग्स एक्टिव होते हैं।
- कफ, वात और पित्त में संतुलन रहता है।
2. अनुलोम विलोम।
इस प्राणायाम की विधि बहुत सरल है।
- पद्मासन मे बैठना उत्तम है। पद्मासन मे नही बैठ सकते है तो सुखासन या कोई भी आरामदायक स्थिति में बैठें।
- बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा मे रखे।
- दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बना कर अंगूठे से दाँयी नासिका को बंद करें।
- बाँयी नासिका से लम्बा गहरा श्वास भरें।
- बाँयी नासिका को बंद करें। दाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
- पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद दाँयी तरफ से श्वास भरे।
- पूरा श्वास भरने के बाद बाँयी तरफ से श्वास खाली करें।
- यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार अन्य आवर्तियाँ करें।
- अंत में श्वास सामान्य करें।
- कपालभाति के लाभ मे वृद्धि करता है।
- मस्तिष्क प्रभावित होता है।
- श्वसनतंत्र सुदृढ होता है।
- सूर्यनाङी और चंद्रनाङी में संतुलन कायम होता है।
3. भ्रामरी
यह भी एक सरल प्राणायाम है। इसको प्रत्येक ऋतु मे किया जा सकता है।
विधि :--
- पद्मासन या सुविधाजनक स्थिति में बैठें।
- दोनो हाथों को कोहनियों से मोङें।
- दोनो हथेलियाँ चेहरे के सामने लेआएँ।
- पहली दो उंगलियाँ आँखों के सामने रखें।
- नीचे की दो उँगलियाँ नासिका के नीचे होठो के सामने रखें।
- दोनो अंगूठों से दोनो कान के छिद्र इस प्रकार बंद करें कि बाहर की आवाज सुनाई न दे।
- लम्बा गहरा श्वास भरें (श्वास का पूरक करें)।
- कण्ठ से उं.उं.उं.--- की ध्वनि का गुंजन करें। मुँह को बंद रखे।
- ध्वनि तब तक करे जब तक कि श्वास पूरी तरह खाली (रेचक) हो जाए।
- श्वास पूरी तरह खाली होने पर फिर श्वास का पूरक करें। तथा श्वास के रेचक होने तक गुंजन करें।
- सुविधा के अनुसार आवर्तियाँ करें।
- यह ध्यान रहे कि केवल अपने गुंजन की आवाज ही सुनाई दे।
- श्रवण -शक्ति में वृद्धि होती है।
- शाँति का अनुभव होता है।
- मस्तिष्क प्रभाव में आता है।
4. नाङीशौधन।
- पद्मासन या सुविधापूर्वक स्थिति में बैठें।
- बाँया हाथ ज्ञान मुद्रा मे रखें।
- दाँये हाथ से प्राणायाम मुद्रा बनाकर अंगूठे से दाँयी नासिका बंद करें।
- बाँयी नासिका से लम्बा गहरा श्वास भरें।
- पूरी तरह शवास भरने के बाद बाँयी नासिका को भी बंद करें।
- श्वास रोक कर आंतरिक कुम्भक लगाएँ।
- श्वास को क्षमता के अनुसार रोकने के बाद दाँयी तरफ से श्वास खाली करे।
- पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद दाँयी नासिका से श्वास का पूरक करें।
- पूरी तरह श्वास भरने के बाद दाँयी नासिका को बंद करे। और बाँयी तरफ से श्वास खाली (रेचक) करें।
- यह एक आवर्ती पूरी हुई।
- इसी तरह क्षमता के अनुसार अन्य आवर्तियाँ करें।
- प्राणिक नाङियों का शौधन होता है।
- फेफङे (Lungs) सक्रिय होते है।
- श्वसन प्रणाली सुदृढ होती है।
- शरीर को Oxygen पर्याप्त मात्र मे मिलने से हृदय को पुष्टि मिलती है।
यदि श्वासों की स्थिति ठीक नही है तो कुम्भक न लगाएँ। श्वास रोगी तथा हृदय रोगी इसको न करें।
सारांश :--
योगाभ्यास में मौसम के अनुकूल प्राणायाम करने चहाए। अपने प्राणायाम ग्रुप मे कम से कम एक प्राणायाम मौसम के अनुकूल अवश्य करना चहाए। मौसम के प्रतिकूल (उलट) क्रिया हानिकारक हो सकती है। अत: जिस मौसम मे जो क्रिया वर्जित है उसे नही करनी चहाए।
Disclaimer :--
किसी प्रकार का रोग उपचार हमारा उद्देश्य नहीं है। हमारा उद्देश्य केवल योग के प्रति जागृति पैदा करना है। सभी योग क्रियाएँ अपने शरीर की क्षमता अनुसार करें।