"प्राणायाम" योग का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह एक श्वसन अभ्यास है। इसका नियमित अभ्यास शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है और श्वसन तंत्र को सुदृढ करता है। यह श्वास रोगों से बचाव करता है। यह अभ्यास हृदय तथा फेफड़ों को स्वस्थ रखने मे सहायक होता है। प्राणायाम अभ्यास सभी के लिए लाभदायी है। लेकिन इसका अभ्यास श्वांसों की क्षमता अनुसार ही किया जाना चाहिए। प्राणायाम कैसे करें, इसके लाभ व सावधानियां क्या हैँ, प्रस्तुत लेख मे इस के बारे मे विस्तार से बताया जायेगा।
विषय सूची :
- प्राणायाम अभ्यासी की तीन श्रेणियां
- प्राणायाम क्या है?
- यह अभ्यास कैसे करें?
- लाभ
- सावधानियां
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प्राणायाम का अभ्यास, इसके लाभ व सावधानियां
प्राणायाम श्वास पर आधारित क्रिया है। इसलिए यह अभ्यास अपने श्वांसों की स्थिति के अनुसार ही किया जाना चाहिए। इसका अभ्यास करने से पहले अपने श्वांसों की स्थिति का अवलोकन करें। उसी के अनुसार अभ्यास करें। श्वास की स्थिति के अनुसार प्राणायाम-अभ्यासी की तीन श्रेणियां हैं :-
योग के नियमित अभ्यासी तथा स्वस्थ व्यक्ति सभी प्राणायाम कर सकते हैं। ऐसे अभ्यासियों को बंध व कुम्भक सहित अभ्यास करना चाहिए। क्योंकि प्राणायाम के वास्तविक लाभ बंध व कुम्भक से प्राप्त होते हैं।
(श्वास को अपनी क्षमता अनुसार कुछ देर तक रोकने की स्थिति को कुम्भक कहा जाता है। इसकी सही विधि के बारे में जानने के लिए विस्तार से देखें :- बंध व कुम्भक क्या है? )
योगाभ्यास में पहले आसन का अभ्यास करें। आसन का अभ्यास करने के बाद कुछ देर विश्राम करें। विश्राम के बाद प्राणायाम अभ्यास करना चाहिए। योग के सभी अभ्यास अपने शरीर की क्षमता अनुसार करने चाहिए। नए अभ्यासी प्राणायाम अभ्यास में श्वास को बल पूर्वक अधिक देर तक न रोकें।
2. नए योग अभ्यासी व कमजोर श्वसन वाले :
नये योग-अभ्यासी आरम्भ मे सरल प्राणायाम करें। "कुम्भक" का प्रयोग न करें। पहले कुछ दिन बिना कुम्भक का प्राणायाम करें। धीरे धीरे इसका अभ्यास आरम्भ करे। पहले कम अवधि का कुम्भक लगाये। धीरे धीरे इसका समय बढाएं। श्वास रोकने मे अधिक बल प्रयोग न करें। सभी अभ्यास अपने शरीर की क्षमता के अनुसार ही करें।
3. श्वास रोगी :
श्वसन रोग से प्रभावित व्यक्ति चिकित्सक की सलाह के बिना कोई अभ्यास न करें। चिकित्सक की सलाह से तथा प्रशिक्षक के निर्देशन मे सरल प्राणायाम करें। श्वास रोकने वाले अभ्यास न करें। ऐसे अभ्यास हानिकारक हो सकते हैं। श्वसन रोगी के लिए सरल प्राणायाम लाभदायी होते हैं।
प्राणायाम क्या है और इसका अभ्यास कैसे करें?
प्राणायाम श्वास पर आधारित एक लाभदायी योग क्रिया है। योगाभ्यास में इसका क्रम आसन के बाद रखा गया है। इसलिए प्राणायाम से पहले योगासनों का अभ्यास अवश्य करे। आसन के बाद इसका अभ्यास करना चाहिए। प्राणायाम क्या है? इसके लाभ और सावधानियां क्या हैँ? इसको आगे विस्तार से समझ लेते हैं।
प्राणायाम की परिभाषा :
योगाभ्यास में प्राणायाम एक ऊर्जादायी अभ्यास है। यह दो शब्दो, 'प्राण' और 'आयाम' से मिल कर बना है। इसका अर्थ है प्राण शक्ति को आयाम देना। प्राण को एक निश्चित उंचाई तक ले जाना प्राणायाम है।
परिभाषा पतंजलि योग में :- महर्षि पतंजलि अपने योगसूत्र मे प्राणायाम को परिभाषित करते हुए एक सूत्र देते हैं :-
तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम:।
अर्थात् आसन के अभ्यास के बाद सांस लेने व छोड़ने की स्थिति को कुछ देर रोक देना प्राणायाम है। साधारण शब्दो मे यह कहा जा सकता है कि श्वास को अपनी क्षमता अनुसार कुछ देर रोकना ही प्राणायाम है। श्वास रोकने की स्थिति को कुम्भक कहा गया है।
प्राणायाम पतंजलि-योग में :
प्राणायाम अष्टांगयोग का चौथा चरण है। महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र मे इसको विस्तार से परिभाषित किया है। योगसूत्र 2.49 मे कुम्भक को वास्तविक प्राणायाम बताया है। लेकिन कुम्भक का प्रयोग नये अभ्यासी व श्वास रोगी को नही करना चाहिए।
नियमित योग अभ्यासी व सुदृढ श्वसन वाले व्यक्तियों को कुम्भक सहित प्राणायाम करना चाहिए। कुम्भक क्या है, आईए, इसको विस्तार से समझ लेते हैं।
- आन्तरिक कुम्भक :- श्वास को अन्दर रोकना।
- बाह्य कुम्भक :- श्वास को बाहर रोकना।
- कैवल्य कुम्भक :- यथा स्थिति मे कुछ देर रुकना।
पतंजलि योग मे चार प्रकार के प्राणायाम :
महर्षि पतंजलि ने चार प्रकार के प्राणायाम का वर्णन किया है। एक सूत्र मे तीन प्रकार के प्राणायाम का वर्णन करते हैं :--
अर्थात् बाह्य वृति, आभ्यन्तर वृत्ति व स्तम्भ वृत्ति ये तीन प्रकार के प्राणायाम है। इनका अभ्यास देश, काल व गणना पूर्वक करने से श्वास लम्बा व गहरा हो जाता है। इस सूत्र मे तीन प्रकार के प्राणायाम बताये गये हैं :-
1. बाह्यवृत्ति :- श्वास को बाहर निकाल कर कुछ देर खाली श्वास की स्थिति मे रुकना बाह्यवृत्ति प्राणायाम है। इसे बाह्य कुम्भक भी कहा गया है।
2. आभ्यन्तरवृत्ति :- श्वास को अन्दर भरके क्षमता अनुसार रुकना आभ्यन्तरवृत्ति प्राणायाम है।
3. स्तम्भवृत्ति :- श्वास की यथा स्थिति मे कुछ देर ठहरना स्तम्भवृत्ति प्राणायाम है।
चौथा प्राणायाम :
महर्षि पतंजलि अगले सूत्र मे चौथे प्राणायाम का वर्णन करते हैं :-
अर्थात् :- बाह्यवृत्ति व आभ्यन्तरवृत्ति के विषयों को त्याग कर किया गया प्राणायाम चौथा प्राणायाम है।
यह प्राणायाम केवल नियमित योग अभ्यासियों के लिये है। कमजोर श्वसन तथा नये अभ्यासी इस प्राणायाम को न करें। चतुर्थ प्राणायाम क्या है, यह विस्तार से समझ लेते हैं।
चतुर्थ प्राणायाम क्या है?
महर्षि पतंजलि अपने योगसूत्र मे चौथे प्रकार के प्राणायाम का वर्णन किया है। यह केवल नियमित प्राणायाम अभ्यासियों को ही करना चाहिए। चतुर्थ प्राणायाम को समझने के लिये योग सूत्र के 2.51वें सूत्र को समझना होगा :-
बाह्य आभ्यन्तरवृत्ति विषय: आक्षेपी चतुर्थ:।
जब हम श्वास लेने व छोड़ने की इच्छा के विपरीत प्राणायाम करते है, तो यह चौथा प्राणायाम हो जाता है। आईए इसको विस्तार से समझ लेते हैं :-
जब हम श्वास को बाहर निकाल कर खाली श्वास की स्थिति मे रुकते है, तो कुछ देर बाद श्वास लेने की इच्छा होती है। यदि उस इच्छा के अनुसार श्वास भर लेते हैं तो यह बाह्यवृत्ति प्राणायाम हो जायेगा। लेकिन इस इच्छा (विषय) के विपरीत श्वास भरने की बजाय श्वास को और बाहर की तरफ धकेलते हैं, तो यह चौथा प्राणायाम है।
इसी प्रकार जब हम श्वास को भर के कुछ देर रुकते है। तो कुछ देर बाद श्वास को बाहर निकालने की इच्छा होती है। यदि उस इच्छा अनुसार श्वास बाहर निकल देते हैं तो यह आन्तरिक प्राणायाम हो जायेगा। लेकिन इस इच्छा के विपरीत श्वास को थोड़ा और अन्दर की तरफ धकेलते हैं तो यह चौथा प्राणायाम है।
विस्तार से देखें :- चतुर्थ प्राणायाम क्या है?
प्राणायाम कैसे करें?
प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक स्थिति तथा श्वांसों की स्थिति अलग-अलग होती है। जैसा कि लेख मे पहले बताया गया है कि प्राणायाम अपने श्वास की अवस्था को देख कर ही किया जाना चाहिए। अत: प्राणायाम-अभ्यासी पहले अपने श्वास की स्थिति का अवलोकन करे और उसी के अनुसार प्राणायाम का चयन करे।
प्राणायाम की सामान्य विधि :
प्राणायाम का अभ्यास करने से पहले "आसन" का अभ्यास.करें। आसन का अभ्यास पूरा करने के बाद कुछ देर सीधे लेट कर शवासन मे विश्राम करें। विश्राम करने के बाद धीरे से उठ कर बैठ जाये और प्राणायाम आरम्भ करें।
बैठने की स्थिति :- बैठने की स्थिति का चयन अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार करें। पद्मासन की स्थिति मे बैठना उत्तम है। सुविधा जनक स्थिति मे बैठने के बाद दोनो हाथ घुटनों पर ज्ञान मुद्रा मे रखें। आंखें कोमलता से बंध करें।
श्वास-प्रश्वास :- अभ्यास का आरम्भ श्वास प्रश्वांस से करें। धीरे-धीरे लम्बा व गहरा श्वास भरें और धीरे धीरे श्वास को खाली करें। यह एक आवर्ती पूरी हुई। इसी प्रकार चार-पांच अन्य आवर्तियां करे। आवर्तियां पूरी करने के बाद श्वास सामान्य करे और आगे का अभ्यास करें।
अपनी अवश्यकता अनुसार अन्य प्राणायाम भी कर सकते है। अपनी क्षमता से अधिक कोई अभ्यास न करें। सभी प्राणायाम पूरे करने के बाद श्वांसों को सामान्य करे और कुछ देर शान्त मन से ध्यान मुद्रा मे बैठे।
प्राणायाम के लाभ और सावधानियां :
योग में यह एक ऊर्जादायी एवं लाभदायी अभ्यास है। लेकिन यह अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ करना चाहिए। सावधानी से किया गया अभ्यास लाभकारी होता है। असावधानी से किया गया अभ्यास हानिकारक हो सकता है। इस अभ्यास के लाभ और सावधानियां क्या हैँ, इसको विस्तार से समझ लेते हैं।
प्राणायाम-अभ्यास के लाभ :
- श्वसन रोग से बचाव : प्राणायाम का अभ्यास श्वसन रोगों से बचाव करता है। यह फेफड़ों को सक्रिय करता है और श्वसन तंत्र के अवरोधों (रूकावटों) को दूर करता है।
- रक्तचाप : इसका नियमित अभ्यास रक्त चाप को संतुलित रखता।
- हृदय को स्वास्थ रखता है : यह अभ्यास रक्त संचार को व्यवस्थित करता है। ऑक्सीजन लेवल को बनाये रखता है। यह हृदय के लिए लाभकारी है।
- ऊर्जादायी : प्राणायाम का अभ्यास शरीर की ऊर्जा का संरक्षण तथा वृद्धि करता है। यह शरीर को ऊर्जावान बनाए रखता है।
- एकाग्रता : यह अभ्यास मानसिक एकाग्रता देता है।
प्राणायाम-अभ्यास की सावधानियाँ :
यह अभ्यास कुछ सावधानियों के साथ किया जाना चाहिए। नियमपूर्वक तथा सावधानी से किया गया अभ्यास लाभकारी होता है। प्राणायाम अभ्यास मे इन बातों को ध्यान मे रखना चाहिए :-
- आसान का अभ्यास करने के बाद प्राणायाम करें।
- सुख पूर्वक आसान मे बैठें। रीढ़ व गर्दन को सीधा रखें।
- श्वास की क्षमता अनुसार अभ्यास करें।
- बल पूर्वक अभ्यास न करें।
- एक अभ्यास करने के बाद श्वासों को सामान्य करें। श्वास सामान्य होने के बाद अगला अभ्यास करें।
- श्वास रोगी कुम्भक का प्रयोग न करें।
- नये अभ्यासी आरम्भ में सरल अभ्यास करें।
- उच्च रक्तचाप में तीव्र गति से प्राणायाम न करें।
- नये अभ्यासी आरम्भ मे सरल प्राणायाम करें।
लेख सार :
प्राणायाम एक लाभदायी योग-क्रिया है। इसका अभ्यास अपने शरीर की क्षमता व श्वास की स्थिति के अनुसार ही किया जाना चाहिए। नियमित अभ्यासी कुम्भक सहित प्राणायाम करें और नये अभ्यासी बिना कुम्भक का सरल प्राणायाम करें। श्वास रोगी को बिना चिकित्सक की सलाह के कोई योग क्रिया नही करनी चाहिए।
Disclaimer :
यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार का दावा नही करता है। इसका उद्देश्य केवल प्राणायाम की जानकारी देना है। प्राणायाम का अभ्यास अपने श्वास की क्षमता के अनुसार किया जाना चाहिए। श्वास रोग की अवस्था में प्राणायाम नहीं करना चाहिए।