हमारे शरीर में लाखों की संख्या में नाड़ियां हैं। इन मे बहत्तर हजार प्राणिक नाड़ियां बताई गई है। इन के द्वारा पूरे शरीर में प्राणों का संचार होता है। लेकिन कई बार इन में अवरोध (रुकावट) आ जाते हैं। 'नाड़ी शोधन' इन अवरोधों को दूर करने के लिए एक महत्व पूर्ण प्राणायाम है। प्राणिक नाड़ियां तथा इनके अवरोध क्या हैं? नाड़ी शोधन प्राणायाम क्या है, और इसका अभ्यास कैसे करना चाहिये? प्रस्तुत लेख में इसका विस्तार से वर्णन किया जायेगा।
(इस लेख का English Version देखे:- What is Nadi Sodhan?)
लेख का विषय :-
- नाड़ी शोधन प्राणायाम क्या है?
- प्राण-संचार तथा अवरोध
- नाड़ी शोधन की विधि
- लाभ व सावधानियां
नाड़ी शोधन : लाभ (Health Benefits) और सावधानियां
यह योग की एक महत्वपूर्ण क्रिया है। इस प्राणायाम से हमारा श्वसनतंत्र सुदृढ होता है। यह अभ्यास प्राणिक नाड़ियों का शुद्धिकरण करता है। इसी लिए इस को नाड़ी शोधन प्राणायाम कहा गया है। इसका अभ्यास कैसे किया जाता है, यह जानने से पहले प्राणिक नाड़ियों के विषय मे समझ लेते हैं।
प्राणिक नाड़ियां क्या हैं?
हमारे शरीर मे लाखों की संख्या में सुक्ष्म-नाड़ियां है। ये पूरे शरीर मे फैली हुई हैं। इन में 72,000 प्राणिक नाड़ियां होती हैं। ये पूरे शरीर मे प्राणों का संचार करती हैं। ये इतनी सूक्ष्म है कि हम इनको किसी यंत्र की सहायता से भी नही देख सकते। इनमे प्राण का प्रवाह होता है इसलिए इनको प्राणिक नाड़ियां कहा गया है।
प्राणिक-नाड़ियों मे अवरोध
शरीर में प्राणों का संचार बिना किसी बाधा के आए होते रहना चाहिए। यह स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। लेकिन कई बार इन नाड़ियों मे अवरोध उत्पन्न हो जाते है। जब कभी इनमे कोई अवरोध उत्पन्न होता है तो शरीर मे विकार आ जाता है और यह रोगग्रस्त हो जाता है। प्राणायाम का अभ्यास इन अवरोधों को हटाता है। इस अभ्यास को नाड़ी शोधन कहा गया है।
विशेष :--- प्राणायाम करने से पहले यह देखे कि श्वांस दोनो नासिकाओं से आ रही है या कोई अवरोध है। बन्द नासिका के अवरोध को दूर करने के लिए जलनेति करें।
नाड़ी शोधन कैसे करें? इसकी सावधानी व लाभ
योगाभ्यास मे पहले आसनों का अभ्यास करें। आसन का अभ्यास करने के बाद प्राणायाम करें। प्राणायाम-अभ्यास में अन्य प्राणायाम करने के बाद अंत मे इसका अभ्यास करना उत्तम है। अत: इसको अंत मे किया जाना चाहिए।
प्राणायाम विधि :
- पद्मासन या सुखासन मे बैठ जाएं। बायां हाथ बांए घुटने पर ज्ञान मुद्रा में (अंगूठा और पहली उंगली के पोर को मिला कर बाकी तीन उंगलियां सीधी ) रखे।
- दांया हाथ प्राणायाम मुद्रा मे रखें (अंगूठे के साथ वाली दो उंगलियां मोड़ लें और दो उंगलियां सीधी रखें। हाथ को नासिका के पास इस प्रकार स्थित करे कि अंगूठा दांई नासिका के पास और उंगली बांई नासिका के पास हो )।
- अंगूठे से दांई नासिका बंध करें और बांई नासिका से लम्बा गहरा सांस भरें।
- पूरी तरह श्वास भरने के बाद बांई नासिका भी बंद कर लें और कुछ देर सांस को अन्दर रोकें। यह आंतरिक कुम्भक है। अपनी क्षमता के अनुसार आन्तरिक कुम्भक में रुकें।
- अपनी क्षमता के अनुसार रुकने के बाद धीरे धीरे दांई तरफ से सांस खाली करें।
- पूरी तरह श्वास खाली होने के बाद दांई तरफ से श्वास को भरें। पूरी तरह सांस भरने के बाद दांई नासिका को बन्ध करें। कुछ देर भरे सांस की स्थिति मे रुकें।
- यथा शक्ति रुकने के बाद धीरे धीरे बांई तरफ से श्वास को खाली कर दें।
- यह एक आवर्ती हुई। इस प्रकार अन्य आवर्तियां करे। नये साधक आरम्भ में दो या तीन आवर्तियां ही करें। धीरे-धीरे अभ्यास बढाएं।
- भरे सांस की स्थिति मे क्षमता के अनुसार ही रुके। नये साधक सांस को बल पूर्वक ना रोके। भरे सांस मे रुकने का अभ्यास धीेरे धीेरे बढाएं।
( विधि सरल शब्दों मे :-- इस प्राणायाम में बांई नासिका से लम्बा श्वास भरें। यथा शक्ति श्वास रोकें। और दांई तरफ से श्वास को खाली कर दें। दांये से श्वास भरें। यथा शक्ति रुकें और बांई तरफ से श्वास को खाली कर दें।)
अनुपातिक अभ्यास :- प्राणायाम के नियमित साधक इस अभ्यास को एक निश्चित अनुपात से करते हैं। लेकिन यह लेख योग के नए अभ्यासियों (Beginners) के लिए है।
प्राणायाम की सावधानियां :
इस प्राणायाम को सभी स्त्री-पुरुष, युवा-वृद्ध सरलता से कर सकते है। प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक क्षमता तथा अवस्था अलग-अलग होती है। इस लिये सभी को इस बात का ध्यान रखना चाहिए। इस क्रिया को अपनी क्षमता के अनुसार करें।
- हृदय-रोगी, अस्थमा पीड़ित तथा अधिक वृद्ध व्यक्ति कुम्भक ना लगाएं केवल अनुलोम विलोम प्राणायाम करें।
- नये अभ्यासी श्वास को अपनी क्षमता के अनुसार रोकें। श्वास रोकने मे बल प्रयोग न करें। धीरे-धीरे अभ्यास को बढाएं।
- प्राणायाम करते समय रीढ व गरदन को सीधा रखें। कमर को झुका कर न बैठें।
- यदि घुटने मोड़ कर बैठने मे परेशानी है तो कुर्सी पर बैठ कर अभ्यास करें। लेकिन पीठ को सीधा रखें।
- आरम्भ में एक या दो आवर्तियां ही करें।
नाड़ी शोधन के लाभ :
यह एक सरल और लाभकारी प्राणायाम है। इस अभ्यास से कई लाभ होते हैं। इन मे मुख्य लाभ इस प्रकार हैं :--
- प्राणिक-नाड़ियों का शुद्धिकरण होता है।
- श्वसन-प्रणाली सुदृढ होती है।
- अस्थमा जैसे रोगों मे लाभ मिलता है।
- हृदय को मजबूती मिलती है।
- Oxygen पर्याप्त मात्रा मे मिलने से प्राण-शक्ति की वृद्धि होती है।
- कुम्भक लगाने से Oxygen शरीर मे ठहरती है। इसलिये शरीर का Oxygen Level ठीक रहता है।
- शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) में वृद्धि होती है।
प्राणिक नाड़ियों में आने वाले अवरोधों को नाड़ी शोधन प्राणायाम से दूर किया जा सकता है। इस प्राणायाम से श्वसन क्रिया सुचारु होती है। प्राण-शक्ति की वृद्धि होती है। हृदय को मजबूती मिलती है। शरीर की Immunity बढती है।
Disclaimer :- यह लेख किसी प्रकार के रोग उपचार का दावा नही करता है। इस लेख का उद्देश्य प्राणायाम के लाभ व सावधानियों की जानकारी देना है। लेख मे बताये गये नियम व सावधानियों का पालन करें।